महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-1

द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (वैष्णव धर्म पर्व)

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महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-1 का हिन्दी अनुवाद


युधिष्ठिर का वैष्णव धर्म विषयक प्रश्न और भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा धर्म का तथा अपनी महिमा का वर्णन

जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन! पूर्वकाल में जब मेरे पितामह महाराज युधिष्ठिर का अश्वमेध-यज्ञ पूर्ण हो गया, तब उन्‍होंने धर्म के विषय में संदेह होने पर भगवान् श्रीकृष्ण से कौन-सा प्रश्‍न किया? वैशम्‍पायनजी ने कहा- राजन्! अश्‍वमेध-यज्ञ के बाद जब धर्मराज युधिष्‍ठिर ने अवभृथ-स्‍नान कर लिया, तब भगवान् श्रीकृष्‍ण को प्रणाम करके इस प्रकार पूछना आरम्‍भ किया। उस समय वसिष्ठ आदि तत्त्वदर्शी तपस्‍वी मुनिगण तथा अन्‍य भक्‍तगण उस परम गोपनीय उत्‍तम वैष्‍णव-धर्म को सुनने की इच्‍छा से भगवान् श्रीकृष्‍ण को घेरकर बैठ गये।

युधिष्‍ठिर बोले- 'भक्‍तवत्‍सल! मैं सच्‍चे भक्‍ति भाव से आपके चरणों की शरण में आया हूँ। भगवन्! यदि आप मुझे अपना प्रेमी या भक्‍त समझते हैं और यदि मैं आपके अनुग्रह का अधिकारी होऊं तो मुझसे वैष्‍णव-धर्मों का वर्णन कीजिये। मैं उनके सम्‍पूर्ण रहस्‍यों को यथार्थ रूप से जानना चाहता हूँ। मैंने मनु, वसिष्‍ठ, कश्यप, गर्ग, गौतम, गोपालक, पराशर, बुद्धिमान् मैत्रेय, उमा, महेश्‍वर और नन्‍दि द्वारा कहे हुए पवित्र धर्मों का श्रवण किया है तथा जो ब्रह्मा, कार्तिकेय, धूमायन, काण्‍ड, वैश्‍वानर, भार्गव, याज्ञवल्‍क्‍य और मार्कण्डेय के द्वारा भी कहे गये हैं एवं जो भरद्वाज और बृहस्पति के बनाये हुए हैं तथा जो कुणि, कुणिबाहु, विश्वामित्र, सुमन्तु, जैमिनि, शकुनि, पुलस्‍त्‍य, पुलह, अग्‍नि, अगस्त्य, मुद्गल, शाण्डिल्य, शलभ, बालखिल्‍यगण, सप्‍तर्षि, आपस्तम्ब, शंख, लिखित, प्रजापति, यम, महेन्‍द्र, व्‍याघ्र, व्‍यास और विभाण्डक के द्वारा कहे गये हैं, उनको भी मैंने सुना है। एवं जो नारद, कपोत, विदुर, भृगु, अंगिरा, क्रौंच, मृदंग, सूर्य हारीत, पिशंग, कपोत, सुबालक,उद्दालक, शुक्राचार्य, वैशम्पायन तथा दूसरे-दूसरे महात्‍माओं के द्वारा बताये हुए हैं, उन धर्मों का भी मैंने आद्योपान्‍त श्रवण किया है। परन्‍तु भगवन्! मुझे विश्‍वास है कि आपके मुख से जो धर्म प्रकट हुए हैं, वे पवित्र और पावन होने के कारण उपर्युक्‍त सभी धर्मों से श्रेष्‍ठ हैं। इसिलये केशव! अच्‍युत! आपकी शरण में आये हुए मुझ भक्‍त से आप अपने पवित्र एवं श्रेष्‍ठ धर्मों का वर्णन कीजिये।'

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- राजन! धर्मपुत्र युधिष्‍ठिर के इस प्रकार प्रश्‍न करने पर सम्‍पूर्ण धर्मों को जानने वाले भगवान श्रीकृष्‍ण अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न होकर उनसे धर्म के सूक्ष्‍म विषयों का वर्णन करने लगे- ‘उत्तम व्रत का पालन करने वाले कुन्‍तीनन्‍दन! तुम धर्म के लिये इतना उद्योग करते हो, इसलिये तुम्‍हें संसार में कोई वस्‍तु दुर्लभ नहीं है। राजेन्द्र! सुना हुआ, देखा हुआ, कहा हुआ, पालन किया हुआ और अनुमोदन किया हुआ धर्म मनुष्‍य को इन्द्र पर पहुँचा देता है। परंतप! धर्म ही जीव का माता-पिता, रक्षक, सुहृद, भ्राता, सखा और स्‍वामी है। अर्थ, काम, भोग, सुख, उत्तम ऐश्‍वर्य और सर्वोत्तम स्‍वर्ग की प्राप्‍ति भी धर्म से ही होती है। यदि इस विशुद्ध धर्म का सेवन किया जाय तो वह महान भय से रक्षा करता है। धर्म से ही मनुष्‍य को ब्राह्मणत्त्व और देवत्‍व की प्राप्‍ति होती है। धर्म ही मनुष्‍य को पवित्र करता है। युधिष्ठिर! जब काल-क्रम से मनुष्‍य का पाप नष्ट हो जाता है, तभी उसकी बुद्धि धर्माचरण में लगती है।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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