महाभारत आदि पर्व अध्याय 189 श्लोक 1-16

एकोननवत्‍यधिकशततम (189) अध्‍याय: आदि पर्व (स्‍वयंवर पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: एकोननवत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन और भीमसेन के द्वारा कर्ण तथा शल्‍य की पराजय और द्रौपदी सहित भीमसेन अर्जुन का अपने डेरे पर जाना

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! उस समय अपने मृगचर्म और कमण्‍डलुओं को हिलाते और उछालते हुए वे श्रेष्ठ ब्राह्मण अर्जुन से कहने लगे- ‘तुम डरना नहीं, हम (सब) लोग (तुम्‍हारी ओर से) शत्रुओं के साथ युद्ध करेंगे।' इस प्रकार की बातें करने वाले उन ब्राह्मणों से अर्जुन ने हंसते हुए से कहा- ‘आप लोग दर्शक होकर बगल में चुपचाप खड़े रहें। मैं (अकेला ही) सीधी नोक वाले सैकड़ों बाणों की वर्षा करके क्रोध में भरे हुए इन शत्रुओं को उसी प्रकार रोक दूंगा, जैसे मन्‍त्रज्ञ लोग अपने मन्‍त्रों (के बल) से विषैले सर्पों को कुण्ठित कर देते हैं।’ यों कहकर महाबली अर्जुन ने उसी स्‍वयंवर में लक्ष्‍यवेध के लिये प्राप्‍त हुए धनुष को झुकाकर (उस पर प्रत्‍यञ्चा चढ़ा दी और उसे हाथ में लेकर) भाई भीमसेन के साथ वे पर्वत के समान अविचल भाव से खड़े हो गये।

तदनन्‍तर कर्ण आदि रणोन्‍मत्‍त क्षत्रियों को आते देख वे दोनों भाई निर्भय हो उन पर उसी तरह टूट पड़े, जैसे दो (मतवाले) हाथी अपने विपक्षी हाथियों की ओर बढ़े जा रहे हों। तब युद्ध के लिये उत्‍सुक उन राजाओं ने कठोर स्‍वर में ये बातें कहों- ‘युद्ध की इच्‍छा वाले ब्राह्मण का भी रणभूमि में वध शास्‍त्रानुकूल देखा गया है।’ यों कहकर वे राजा लोग सहसा ब्राह्मणों की ओर दौड़े। महातेजस्‍वी कर्ण अर्जुन की ओर युद्ध के लिये बढ़ा। ठीक उसी तरह, जैसे हथिनी के लिये लड़ने की इच्‍छा रखकर एक हाथी अपने प्रतिद्वन्‍द्वी दूसरे हाथी से भि‍ड़ने के लिये जा रहा हो, महाबली मद्रराज शल्‍य भीमसेन से जा भीड़े। दुर्योधन आदि सभी (भूपाल) एक साथ अन्‍यान्‍य ब्राह्मणों के साथ उस युद्ध भूमि में बिना किसी प्रयास के (खेल-सा करते हुए) कोमलतापूर्वक (शीत) युद्ध करने लगे। तब तेजस्‍वी अर्जुन ने अपने धनुष को जोर से खींचकर अपनी ओर वेग से आते हुए सूर्यपुत्र कर्ण को कई तीक्ष्‍ण बाण मारे। उन दु:सह तेज वाले तीखे बाणों के वेगपूर्वक आघात से राधानन्‍दन कर्ण को मूर्च्‍छा आने लगी। वह बड़ी कठिनाई से अर्जुन की बढ़ा।

विजयी वीरों में श्रेष्‍ठ वे दोनों योद्धा हाथों की फुर्ती दिखाने में बेजोड़ थे। उनमें कौन बड़ा है और कौन छोटा- यह बताना असम्‍भव था। दोनों ही एक दूसरे को जीतने की इच्‍छा रखकर बड़े क्रोध से लड़ रहे थे। 'देखो, तुमने जिस अस्‍त्र का प्रयोग किया था, उसे रोकने के लिये मैंने यह अस्‍त्र चलाया है। देख लो, मेरी भुजाओं का बल!’ इस प्रकार शौर्यसूचक वचनों द्वारा वे आपस में बातें भी करते जाते थे। तदनन्‍तर अर्जुन के बाहुबल की इस पृथ्‍वी पर कहीं समता नहीं है, यह जानकर सूर्यपुत्र कर्ण अत्‍यन्‍त क्रोधपूर्वक जमकर युद्ध करने लगा। उस समय अर्जुन द्वारा चलाये हुए उन सभी वेगशाली बाणों को काटकर कर्ण बड़े जोर से सिंहनाद करने लगा। समस्‍त सैनिकों ने उसके इस अद्भुत कार्य की सराहना की। कर्ण बोला- विप्रवर! युद्ध में आपके बाहुबल से मैं (बहुत) संतुष्ट हूँ। आपमें थकावट या विषाद का कोई चिह्न नहीं दिखायी देता और आपने सभी अस्त्र-शस्त्रों को जीतकर मानो अपने काबू में कर लिया है। (आपकी यह सफलता देखकर मुझे बड़ी प्रसन्‍नता हुई है)।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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