त्र्यशीतितम (83) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! पवित्र मुस्कान वाली देवयानी ने जब सुना कि शर्मिष्ठा के पुत्र हुआ है, तब वह चिन्ता करने लगी। वह शर्मिष्ठा के पास गयी और इस प्रकार बोली। देवयानी ने कहा- 'सुन्दर भौंहों वाली शर्मिष्ठे! तुमने कामलोलुप होकर यह कैसा पाप कर डाला?' शर्मिष्ठा बोली- सखी! कोई धर्मात्मा ऋषि आये थे, जो वेदों के पारंगत विद्वान थे। मैंने उन वरदायक ऋषि से धर्मानुसार काम की याचना की। शुचिस्मिते! मैं न्यायविरुद्ध काम का आचरण नहीं करती। उन ऋषि से ही मुझे संतान पैदा हुई, यह तुमसे सत्य कहती हूँ। देवयानी ने कहा- भीरू! यदि ऐसी बात है, तो बहुत अच्छा हुआ। क्या उन द्विज के गोत्र, नाम और कुल का कुछ परिचय मिला है? मैं उनको जानना चाहती हूँ। शर्मिष्ठा बोली- शुचिस्मिते! वे अपने तप और तेज से सूर्य की भाँति प्रकाशित हो रहे थे। उन्हें देखकर मुझे कुछ पूछने का साहस ही नहीं हुआ। देवयानी ने कहा- शर्मिष्ठे! यदि ऐसी बात है; यदि तुमने ज्येष्ठ और श्रेष्ठ द्विज से संतान प्राप्त की है तो तुम्हारे ऊपर मेरा क्रोध नहीं रहा। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ये दोनों आपस में इस प्रकार बातें करके हंस पड़ी। देवयानी को प्रतीत हुआ कि शर्मिष्ठा ठीक कहती है; अत: चुपचाप महल में चली गयी। राजा ययाति ने देवयानी के गर्भ से दो पुत्र उत्पन्न किये, जिनके नाम थे यदु और तुर्वसु। वे दोनों दूसरे इन्द्र और विष्णु की भाँति प्रतीत होते थे। उन्हीं राजर्षि से वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा ने तीन पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम थे- द्रह्यु, अनु और पुरु। राजन्! तदनन्तर किसी समय पवित्र मुस्कान वाली देवयानी ययाति के साथ एकान्त वन में गयी। वहाँ उसने देवताओं के समान सुन्दर रूप वाले कुछ बालकों को निर्भय होकर क्रीड़ा करते देखा। उन्हें देखकर आश्चर्यचकित हो वह इस प्रकार बोली। देवयानी ने कहा- राजन्! ये देव बालकों के तुल्य शुभलक्षणसम्पन्न कुमार किसके हैं? तेज और रूप में तो ये मुझे आप ही के समान जान पड़ते हैं। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! राजा से इस प्रकार पूछकर उसने उन कुमारों से प्रश्न किया। देवयानी ने पूछा- बच्चों! तुम्हारे कुल का क्या नाम है? तुम्हारे पिता कौन हैं? यह मुझे ठीक-ठीक बताओ। मैं तुम्हारे पिता का नाम सुनना चाहती हूँ। सुन्दरी देवयानी के इस प्रकार पूछने पर उन बालकों ने पिता का परिचय देते हुए तर्जनी अंगुली से उन्हीं नृपश्रेष्ठ ययाति को दिखा दिया और शर्मिष्ठा को अपनी माता बताया। वैशम्पायन जी कहते हैं- ऐसा कहकर वे सब बालक एक साथ राजा के समीप आ गये; परंतु उस समय देवयानी के निकट राजा ने उनका अभिनन्दन नहीं किया- उन्हें गोद में नहीं उठाया। तब वे बालक रोते हुए शर्मिष्ठा के पास चले गये। उनकी बातें सुनकर राजा ययाति लज्जित- से हो गये। उन बालकों का राजा के प्रति विशेष प्रेम देखकर देवयानी सारा रहस्य समझ गयी और शर्मिष्ठा से इस प्रकार बोली। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज