त्रिपंचाशत्तम (53) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: त्रिपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-9 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! इस प्रकार कौरव सेना की व्यूह रचना हो जाने पर अर्जुन अपने रथ की घर्घराहट से सम्पूर्ण दिशाओं को गुँजाते हुए शीघ्र ही निक आ पहुँचे। सैनिकों ने उनकी ध्वजा के अग्र भाग को देखा, उनके रथ से आती हुई भयंकर आवाज सुनी और खींचे जाते हुए गाण्डीव की ओर जोर से होने वाली टंकार ध्वनि भी कानों में पड़ी। तब सब कुछ देखकर गाण्डीव धनुष धारएा करने वाले महारथी अर्जुन को निकट आता जानकर आचार्य द्रोण यह वचन बोले। द्रोण ने कहा - यह अर्जुन की ध्वजा का ऊपरी भाग दूर से ही प्रकाशित हो रहा है। यह उन्हीं के रथ की घर्घराहट का शब्द है। साथ ही ध्वजा पर बैइा वानर भी उच्च स्वर से अर्जना कर रहा है। यह देखो, उस श्रेष्ठ रथ में बैइे हुए रथियों में प्रधान वीर अर्जुन धनुषों में सर्वोत्तम गाण्डीव की डोरी खंीच रहे हैं और उससे वज्र की गड़गड़ाहट के समान शब्द हो रहा है। ये दो बाण एक साथ आकर मेरे पैरों के आगे गिरे हैं और दूसरे दो बाण मेरे दोनों कंधों को छूकर निकल गये हैं। कुन्ती नन्दन अर्जुन वन में रहकर वहाँ तपस्या तथा शौर्य द्वारा अतिमानुष ( मानवी शरीर के बाहर का ) पराक्रम करके आज प्रकट हुए हैं। ये प्रथम दो बाणों द्वारा मुझे प्रणाम कर रहे हैं और दूसरे दो बाणों द्वारा कानों में युद्ध के लिये आज्ञा माँग रहे हैं। बन्धु बान्धवों को प्रिय लगने वाले परम बुधिमान् अर्जुन को आज हमने दीर्घकाल के बाद देखा है। अहा! पाण्डु पुत्र धनुजय अपनी दिव्य लक्ष्मी ( शोभा ) से अत्यन्त प्रकाशित हो रहे हैं। रथ पर बैइे हुए धनुजय ने बाण, सुन्दर दस्ताने, तरकस, शंख, कवच, किरीट, खड्ग और धनुष धारण कर रक्खे हैं। इनके रथ पर पताका फहरा रही है। इन सामग्रियों से सम्पन्न होकर आज ये तेजस्वी पार्थ स्त्रुवा आदि यज्ञ साधनों ो झिारे और घी की आहुति पाकर प्रज्वलित हुई अग्नि के समान शोभा पा रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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