महाभारत महाप्रस्‍थानिक पर्व अध्याय 2 श्लोक 1-26

द्वितीय (2) अध्‍याय: महाप्रस्‍थानिक पर्व

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महाभारत: महाप्रस्‍थानिक पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 1-26 का हिन्दी अनुवाद


मार्ग में द्रौपदी, सहदेव, नकुल, अर्जुन और भीमसेन का गिरना तथा युधिष्ठिर द्वारा प्रत्‍येक के गिरने का कारण बताया जाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! मन को संयम में रखकर उत्तर दिशा का आश्रय लेने वाले योगयुक्‍त पांडवों ने मार्ग में महापर्वत हिमालय का दर्शन किया। उसे भी लाँघकर जब वे आगे बढ़े, तब उन्हें बालू का समुद्र दिखायी दिया। साथ ही उन्होंने पर्वतों में श्रेष्ठ महागिरि मेरू का दर्शन किया। सब पांडव योगधर्म में स्थित हो बड़ी शीघ्रता से चल रहे थे। उनमें द्रुपदकुमारी कृष्णा का मन योग से विचलित हो गया; अत: वह लड़खड़ाकर पृथ्‍वी पर गिर पड़ी। उसे नीचे गिरी देख महाबली भीमसेन ने धर्मराज से पूछा- "परंतप! राजकुमारी द्रौपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया था। फिर बताइये, कौन-सा कारण है, जिससे वह नीचे गिर गयी?" युधिष्ठिर ने कहा- "पुरुषप्रवर! उसके मन में अर्जुन के प्रति विशेष पक्षपात था; आज यह उसी का फल भोग रही है।"

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ऐसा कहकर उसकी ओर देखे बिना ही भरतभूषण नरश्रेष्ठ बुद्धिमान धर्मात्‍मा युधिष्ठिर मन को एकाग्र करके आगे बढ़ गये। थोड़ी देर बाद विद्वान सहदेव भी धरती पर गिर पड़े। उन्हें भी गिरा देख भीमसेन ने राजा से पूछा- "भैया! जो सदा हम लोगों की सेवा किया करता था और जिसमें अहंकार का नाम भी नहीं था, यह माद्रीनन्दन सहदेव किस दोष के कारण धराशायी हुआ है?" युधिष्ठिर ने कहा- "यह राजकुमार सहदेव किसी को अपने-जैसा विद्वान या बुद्धिमान नहीं समझता था; अत: उसी दोष से इसका पतन हुआ है।"

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ऐसा कहकर सहदेव को भी छोड़कर शेष भाइयों और एक कुत्ते के साथ कुन्तीकुमार युधिष्ठिर आगे बढ़ गये। कृष्णा और पांडव सहदेव को गिरे देख शोक से आर्त हो बन्धुप्रेमी शूरवीर नकुल भी गिर पड़े। मनोहर दिखायी देने वाले वीर नकुल के धराशायी होने पर भीमसेन ने पुन: राजा युधिष्ठिर से यह प्रश्न किया- "भैया! संसार में जिसके रूप की समानता करने वाला कोई नहीं था तो भी जिसने कभी अपने धर्म में त्रुटि नहीं आने दी तथा जो सदा हम लोगों की आज्ञा का पालन करता था, वह हमारा प्रियबन्धु नकुल क्‍यों पृथ्‍वी पर गिरा है?" भीमसेन के इस प्रकार पूछने पर समस्त बुद्धिमानों में श्रेष्ठ धर्मात्‍मा युधिष्ठिर ने नकुल के विषय में इस प्रकार उत्तर दिया- "भीमसेन! नकुल की दृष्टि सदा ऐसी रही है कि रूप में मेरे समान दूसरा कोई नहीं है। इसके मन में यही बात बैठी रहती थी कि एकमात्र मैं ही सबसे अधिक रूपवान हूँ। इसीलिये नकुल नीचे गिरा है। तुम आओ। वीर! जिसकी जैसी करनी है, वह उसका फल अवश्‍य भोगता है।"

द्रौपदी तथा नकुल और सहदेव तीनों गिर गये, यह देखकर शत्रुवीरों का संहार करने वाले श्वेतवाहन पांडुपुत्र अर्जुन शोक से संतप्‍त हो स्वयं भी गिर पड़े। इन्द्र के समान तेजस्वी दुर्धर्ष वीर पुरुषसिंह अर्जुन जब पृथ्‍वी पर गिरकर प्राणत्‍याग करने लगे, उस समय भीमसेन ने राजा युधिष्ठिर से पूछा- "भैया! महात्‍मा अर्जुन कभी परिहास में भी झूठ बोले हों, ऐसा मुझे याद नहीं आ‍ता। फिर यह किस कर्म का फल है, जिससे इन्हें पृथ्‍वी पर गिरना पड़ा?" युधिष्ठिर बोले- "अर्जुन को अपनी शूरता का अभिमान था। इन्होंने कहा था कि 'मैं एक ही दिन में शत्रुओं को भस्म कर डालूँगा'; किंतु ऐसा किया नहीं; इसी से आज इन्हें धराशायी होना पड़ा है। अर्जुन ने सम्पूर्ण धनुर्धरों का अपमान भी किया था; अत: अपना कल्‍याण चाहने वाले पुरुष को ऐसा कभी नहीं करना चाहिये।"

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! यों कहकर राजा युधिष्ठिर आगे बढ़ गये। इतने ही में भीमसेन भी गिर पड़े। गिरने के साथ ही भीम ने धर्मराज युधिष्ठिर को पुकारकर पूछा- "राजन! जरा मेरी ओर तो देखिये, मैं आपका प्रिय भीमसेन यहाँ गिर पड़ा हूँ। यदि जानते हों तो बताइये, मेरे इस पतन का क्‍या कारण है?" युधिष्ठिर ने कहा- "भीमसेन! तुम बहुत खाते थे ओर दूसरों को कुछ भी न समझकर अपने बल की डींग हाँका करते थे; इसी से तुम्हें भी धराशयी होना पड़ा है"। यह कहकर महाबाहु युधिष्ठिर उनकी ओर देखे बिना ही आगे चल दिये। एक कुत्ता भी बराबर उनका अनुसरण करता रहा, जिसकी चर्चा मैंने तुमसे अनेक बार की है।


इस प्रकार श्रीमहाभारत महाप्रस्‍थानिक पर्व में द्रौपदी आदि का पतन विषयक दूसरा अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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