महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 145 श्लोक 1-12

पंचत्‍वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

कुन्‍ती का कर्ण को अपना प्रथम पुत्र बताकर उससे पाण्‍डवपक्ष में मिल जाने का अनुरोध

  • कर्ण बोला- देवि! मैं राधा तथा अधिरथ का पुत्र कर्ण हूँ और आपके चरणों में प्रणाम करता हूँ। आपने किस लिये यहाँ तक आने का कष्‍ट किया है बताइये, मैं आपकी क्‍या सेवा करूँ? (1)
  • कुन्‍ती ने कहा- कर्ण! तुम राधा के नहीं, कुन्‍ती के पुत्र हो। तुम्‍हारे पिता अधिरथ नहीं हैं और तुम सूतकुल में नहीं उत्‍पन्‍न हुए हो। मेरी इस बात को ठीक मानो। (2)
  • तुम कन्‍यावस्‍था में मेरे गर्भ से उत्‍पन्‍न हुए प्रथम पुत्र हो। महाराज कुन्तिभोज के घर में रहते समय मैंने तुम्‍हें गर्भ में धारण किया था; अत: बेटा! तुम पार्थ हो। (3)
  • कर्ण! ये जो जगत में प्रकाश और उष्‍णता प्रदान करने वाले भगवान सूर्यदेव हैं, इन्‍होंने शस्‍त्रधारियों में श्रेष्‍ठ तुम-जैसे वीर पुत्र को मेरे गर्भ से उत्‍पन्‍न किया है। (4)
  • दुर्धर्ष पुत्र! मैंने पिता के घर में तुम्‍हें जन्‍म दिया था। तुम जन्‍मकाल से ही कुण्‍डल और कवच धारण किये देव-बालक के समान शोभासम्‍पन्‍न रहे हो। (5)
  • बेटा! तुम जो अपने भाइयों से अपरिचित रहकर मोहवश धृतराष्‍ट्र के पुत्रों की सेवा कर रहे हो, वह तुम्‍हारे लिये कदापि योग्‍य नहीं है। (6)
  • बेटा! धर्मशास्‍त्र में मनुष्‍यों के लिये यही धर्म का उत्‍तम फल बताया गया है कि उनके पिता आदि गुरुजन तथा एक मात्र पुत्र पर ही दृष्टि रखने वाली माता उनसे संतुष्‍ट रहें। (7)
  • अर्जुन ने पूर्वकाल में जिसका उपार्जन किया था और दुष्‍टों ने लोभवश जिसे हर लिया है, युधिष्ठिर की उस राज्‍य लक्ष्‍मी को तुम धृतराष्‍ट्र पुत्रों से छीनकर भाइयों सहित उसका उपभोग करो। (8)
  • आज उत्‍तम बन्‍धु जनोचित स्‍नेह के साथ कर्ण और अर्जुन के मिलन को कौरव लोग देखें और इसे देखकर दुष्‍टलोग नतमस्‍तक हों। (9)
  • कर्ण और अर्जुन दोनों मिलकर वैसे ही बलशाली हैं जैसे बलराम और श्रीकृष्‍ण। बेटा! तुम दोनों हृदय से संगठित हो जाओ तो इस जगत में तुम्‍हारे लिये कौन-सा कार्य असाध्‍य होगा? (10)
  • कर्ण! जिस प्रकार महान यज्ञ की वेदी पर देवगणों से घिरे हुए ब्रह्ममाजी सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार अपने पाँचों भाइयों से घिरे हुए तुम भी शोभा पाओगे। (11)
  • अपने श्रेष्‍ठ स्‍वभाव वाले बन्‍धुओं के बीच में तुम सर्वगुणसम्‍पन्‍न ज्‍येष्‍ठ भ्राता परम पराक्रमी कुन्‍तीपुत्र कर्ण हो। तुम्‍हारे लिये सूतपुत्र शब्‍द का प्रयोग नहीं होना चाहिये। (12)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्‍तर्गत भगवद्यानपर्व में कुन्‍ती और कर्ण की भेंट के प्रसंग में एक सौ पैंतालीसवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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