महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 67 श्लोक 1-19

सप्तषष्टितम (67) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

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महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: सप्तषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


परीक्षित को जिलाने के लिये सुभद्रा की श्रीकृष्ण से प्रार्थना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! कुन्ती देवी के बैठ जाने पर सुभद्रा अपने भाई श्रीकृष्ण की ओर देखकर फूट-फूटकर रोने लगी और दु:ख से आर्त होकर यों बोली- ‘भैया कमलनयन! तुम अपने सखा बुद्धिमान पार्थ के इस पौत्र की दशा तो देखो। कौरवों के नष्ट हो जाने पर इसका जन्म हुआ; परन्तु यह भी गतायु होकर नष्ट हो गया। द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने भीमसेन को मारने के लिये जो सींक का बाण उठाया था, वह उत्तरा पर, तुम्हारे सखा विजय पर और मुझ पर गिरा है।

दुर्धर्ष वीर केशव! प्रभो! वह सींक मेरे इस विदीर्ण हुए हृदय में आज भी कसक रही है; क्योंकि इस समय मैं पुत्रसहित अभिमन्यु को नहीं देख पाती हूँ। अभिमन्यु का बेटा जन्म लेने के साथ ही मर गया- इस बात को सुनकर धर्मात्मा राजा युधिष्ठिर क्या कहेंगे? भीमसेन, अर्जुन तथा माद्रीकुमार नकुल-सहदेव भी क्या सोचेंगे? श्रीकृष्ण! आज द्रोणपुत्र ने पाण्डवों का सर्वस्र लूट लिया। श्रीकृष्ण! अभिमन्यु पाँचों भाइयों को अत्यंत प्रिय था- इसमें संशय नहीं है। उसके पुत्र की यह दशा सुनकर अश्वत्थामा के अस्त्र से पराजित हुए पाण्डव क्या कहेंगे? शत्रुसूदन! जनार्दन! श्रीकृष्ण! अभिमन्यु जैसे वीर का पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ हो, इससे बढ़कर दु:ख की बात और क्या हो सकती है?

पुरुषोत्तम! श्रीकृष्ण! आज मैं तुम्हारे चरणों पर मस्तक रखकर तुम्हें प्रसन्न करना चाहती हूँ। बुआ कुन्ती और बहन द्रौपदी भी तुम्हारें पैरों पर पड़ी हुई हैं। इन सबकी ओर देखो। शत्रुमर्दन माधव! जब द्रोणपुत्र अश्वत्थामा पाण्डवों के गर्भ की हत्या करने का प्रयत्न कर रहा था, उस समय तुमने कुपित होकर उससे कहा था। ब्रह्मबन्धों! नराधम! मैं तेरी इच्छा पूर्ण नहीं होने दूँगा। अर्जुन के पौत्र को अपने प्रभाव से जीवित कर दूँगा। भैया! तुम दुर्धर्ष वीर हो। मैं तुम्हारी उस बात को सुनकर तुम्हारे बल का अच्छी तरह जानती हूँ। इसीलिये तुम्हें प्रसन्न करना चाहती हूँ। तुम्हारे कृपा-प्रसाद से अभिमन्यु का यह पुत्र जीवित हो जाय। वृष्णिवंश के सिंह! यदि तुम ऐसी प्रतिज्ञा करके अपने मंगलमय वचन का पूर्णत: पालन नहीं करोगे तो यह समझ लो, सुभद्रा जीवित नहीं रहेगी- मैं अपने प्राण दे दूँगी। दुर्धर्ष वीर! यदि तुम्हारे जीते-जी अभिमन्यु के इस बालक को जीवनदान न मिला तो तुम मेरे किस काम आओगे।

अजेय वीर! जैसे बादल पानी बरसाकर सूखी खेती को भी हरी-भरी कर देता है, उसी प्रकार तुम अपने ही समान नेत्र वाले अभिमन्यु के इस मरे हुए पुत्र को जीवित कर दो। शत्रुदमन केशव! तुम धर्मात्मा, सत्यवादी और सत्यपराक्रमी हो; अत: तुम्हें अपनी कही हुई बात को सत्य कर दिखाना चाहिए। तुम चाहो तो मृत्यु के मुख में पड़े हुए तीनों लोकों को जिला सकते हो, फिर अपने भानजे के इस प्यारे पुत्र को, जो मर चुका है, जीवित करना तुम्हारे लिये कौन बड़ी बात है। श्रीकृष्ण! मैं तुम्हारे प्रभाव को जानती हूँ। इसीलिये तुमसे याचना करती हूँ। इस बालक को जीवनदान देकर तुम पाण्डवों पर यह महान अनुग्रह करो। महाबाहो! तुम यह समझकर कि यह मेरी बहिन है अथवा जिसका बेटा मारा गया है, वह दुखिया है अथवा शरण में आयी हुई एक दयनीय अबला है, मुझ पर दया करने योग्य हो।'


इस प्रकार श्रीमहाभारतपर्व आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में सुभद्रा का वचन विषयक सरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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