महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 58 श्लोक 1-23

अष्‍टपंचाशत्तम (58) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: अष्‍टपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन का श्रीकृष्‍ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह तथा श्रीकृष्ण का उन्हें युद्धभूमि दिखाते और वहाँ का समाचार बताते हुए रथ को आगे बढ़ाना


संजय कहते हैं- राजन! इस प्रकार अर्जुन, कर्ण एवं पाण्डुपुत्र भीमसेन के कुपित होने पर राजाओं का वह संग्राम उत्तरोत्तर बढ़ने लगा। नरेश्वर! द्रोणपुत्र तथा अन्यान्य महारथियों को हराकर और उन पर विजय पाकर अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा- ‘महाबाहु श्रीकृष्ण! देखिये, वह पाण्ड‍व सेना भागी जा रही है तथा कर्ण समरांगण में बड़े-बड़े महारथियों को काल के गाल में भेज रहा है। ‘दशार्ह! इस समय मुझे धर्मराज युधिष्ठिर नहीं दिखायी दे रहे है। योद्धाओं में श्रेष्ठ श्रीकृष्ण! धर्मराज के ध्वज का भी दर्शन नहीं हो रहा है। ‘जनार्दन! इस सम्पू्र्ण दिन के ये तीन भाग ही शेष रह गये हैं। दुर्योधन की सेनाओं में से कोई भी मेरे साथ युद्ध नहीं कर रहा है। ‘अत: आप मेरा प्रिय करने के लिये वहीं चलिये, जहाँ राजा युधिष्ठिर हैं। वार्ष्णेय! भाइयों सहित धर्मपुत्र यधिष्ठिर को युद्ध में सकुशल देखकर मैं पुन: समरांगण में शत्रुओं के साथ युद्ध करूँगा’।

तदनन्तर अर्जुन ने कथनानुसार श्रीकृष्ण तुरंत ही रथ के द्वारा उसी ओर चल दिये, जहाँ राजा युधिष्ठिर और सृंजय महारथी मौजूद थे। वे मृत्यु को ही युद्ध से निवृत होने का निमित्त बनाकर आपके योद्धाओं के साथ युद्ध कर रहे थे। तदनन्तर जहाँ वह भारी जनसंहार हो रहा था, उस संग्रामभूमि को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण सव्यसाची अर्जुन ने इस प्रकार बोले ‘कुन्तीे नन्दन! देखो, दुर्योधन के कारण भरतवंशियों का तथा भूमण्डल के अन्य क्षत्रियों का महाभयंकर विनाश हो रहा है। ‘भरत नन्दणन! देखो, मरे हुए धनुर्धरों के ये सोने के पृष्ठ भागवाले धनुष और बहुमूल तरकस फेंके पड़े हैं। ‘सुवर्णमय पंखों से युक्त झुकी हुई गांठवाले बाण तथा तेल में धोये हुए नाराच केंचुल छोड़कर निकले हुए सर्पों के समान दिखायी दे रहे हैं। ‘भारत! हाथी के दांत की बनी हुई मूँठवाले सुवर्ण जटित खड्ग तथा स्वर्णभूषित कवच भी फेंके पड़े हैं। ‘देखो, ये सुवर्णमय प्रास, स्वर्णभूषित शक्तियाँ तथा सोने के बने हुए पत्रों से मढ़ी हुई विशाल गदाएं पड़ी हैं। ‘स्वर्णमयी ऋष्टि, हेमभूषित पट्टिश तथा सुवर्णजटित दण्डों से युक्त फरसे फेंके हुए हैं। ‘लोहे के कुन्तु (भाले), भारी मूसल, विचित्र शतघ्नियां और विशाल परिघ इधर-उधर पड़े हैं। ‘इस महासमर में फेंके गये इन चक्रों और तोमरों को भी देखो। विजय की अभिलाषा रखने वाले वेगशाली योद्धा नाना प्रकार के शस्त्रों को हाथ में लिये हुए ही अपने प्राण खो बैठे हैं; तथापि जीवित से दिखायी देते हैं। ‘देखो, सहस्रों के शरीर गदाओं के आघात से चूर-चूर हो रहे हैं। मूसलों की मार से उनके मस्तक फट गये हैं तथा हाथी, घोड़े एवं रथों से वे कुचल दिये गये हैं।

‘शत्रुसूदन! बाण, शक्ति, ऋष्टि, पदिृश, लोहमय परिघ, भयंकर लोह निर्मित कुन्त और फरसों से मनुष्यों, घोड़ों और हाथियों के बहुसंख्यक शरीर छिन्न-भिन्न होकर खून से लथपथ और प्राणशून्य हो गये हैं और उनके द्वारा रणभूमि आच्छादित दिखायी देती हैं। ‘भारत! चन्दन चर्चित, अंगदों और केयूरों से अलंकृत, सोने के अन्य आभूषणों से विभूषित तथा दस्तानों से युक्त वीरों की कटी हुई भुजाओं से युद्ध भूमि की अद्भुत शोभा हो रही है। ‘सांड के समान नेत्रों वाले वेगशाली वीरों के दस्ताजनों सहित आभूषण-भूषित हाथ कटकर गिरे हैं। हाथियों के शुण्डा दण्डों के समान मोटी जांघें खण्डित होकर पड़ी हैं तथा श्रेष्ठ चूड़ामणि धारण किये कुण्डल-मण्डित मस्तक भी धड़ से अलग होकर पड़े हैं। इन सबके द्वारा रणभूमि की अपूर्व शोभा हो रही है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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