दशाधिकशततम (110) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद
जो धर्मज्ञ पुरुष सदा माता-पिता की सेवा में लगे रहते हैं और दिन में कभी नहीं सोते हैं, वे सभी दु:खों से छूट जाते हैं। जो मन, वाणी, और क्रिया द्वारा कभी पाप नहीं करते हैं ओर किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुँचाते हैं, वे भी संकट से पार हो जाते हैं। जो रजोगुण सम्पन्न राजा लोभवश प्रजा के धन का अपहरण नहीं करते हैं और अपने राज्य की सब ओर से रक्षा करते हैं, वे भी दुर्गम दु:खों को लांघ जाते हैं। जो गृहस्थ प्रतिदिन अग्निहोत्र करते और ॠतुकाल में अपनी ही स्त्री के साथ धर्मानुकुल समागम करते हैं, वे दु:खों से छूट जाते हैं। जो शूरवीर युद्धस्थल में मृत्यु का भय छोड़कर धर्मपूर्वक विजय पाना चाहते हैं, वे सभी दु:खों से पार हो जाते हैं। जो लोग प्राण जाने का अवसर उपस्थित होने पर भी सत्य बोलना नहीं छोड़ते, वे सम्पूर्ण प्राणियों के विश्वासपात्र बने रहकर सभी दु:खों से पार हो जाते हैं।। जिनके शुभ कर्म दिखावे के लिये नहीं होते, जो सदा मीठे वचन बोलते और जिनका धन सत्कर्मों के लिये बंधा हुआ है, वे दुर्गम संकटों से पार हो जाते हैं। जो अनध्याय के अवसरों पर वेदों का स्वाध्याय नहीं करते और तपस्या में ही लगे रहते हैं, वे उत्तम तपस्वी ब्राह्मण दुस्तर विपति में छुटकारा पा जाते हैं। जो तपस्या करते, कुमारावस्था से ही ब्रह्मचार्य के पालन में तत्पर रहते हैं और विद्या एवं वेदों के अध्ययन सम्बन्धी व्रत को पूर्ण करके स्नान तक हो चुके हैं, वे दुस्तर दु:खों को तर जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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