त्रिपञ्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: त्रिपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
‘जो लोग अपने मृतक सम्बन्धियों को लेकर श्मशान में जाते हैं, और जो नहीं जाते हैं, वे सभी जीव-जन्तु अपनी आयु पूरी होने पर इस संसार से चल बसते हैं। ‘गीधों और गीदड़ों से भरे हुए इस भयंकर श्मशान में सब ओर असंख्य नरकंकाल पड़े हैं। यह स्थान सभी प्राणियों के लिये भयदायक है। यहाँ तुम्हें नहीं ठहरना चाहिये; ठहरने से कोई लाभ भी नहीं है। ‘अपना प्रिय हो या’ द्वेषपात्र। कोई भी कालधर्म में (मुत्यु) को पाकर कभी पुन: जीवित नहीं हुआ है। समस्त प्राणियों की ऐसी ही गति है। ‘जिसने इस मर्त्यलोक में जन्म लिया है, उसे एक-न-एक दिन अवश्य मरना होगा। काल द्वारा निर्मित पथ पर मरकर गये हुए प्राणी को कौन जीवित कर सकेगा। ‘सूर्य अस्ताचल को जा रहे हैं, जगत के सब लोग दैनिक कार्य समाप्त करके अब उससे विरत हो रहे हैं। तुम लोग भी अब अपने पुत्र का स्नेह छोड़कर घर लौट जाओ। नरेश्वर! तब गीध की बात सुनकर वे बन्धु-बान्धव जोर-जोर से रोते हुए अपने पुत्र को भूतल पर छोड़कर घर की ओर लौटने लगे। वे इध-उधर रो-गाकर इसी निश्चय पर पहुँचे कि अब तो यह बालक मर ही गया; अत: उसके दर्शन से निराश हो वहाँ से जाने के लिये तैयार हो गये। जब उन्हें यह निश्चित हो गया कि अब यह नहीं जी सकेगा, तो उसके जीवन से निराश हो वे सब लोग अपने बच्चे को छोड़कर जाने के लिये रास्ते पर आकर खडे़ हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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