महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 153 श्लोक 1-17

त्रिपञ्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: त्रिपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


मृतक की पुनर्जीवन-प्राप्ति के विषय में एक ब्राह्मण बालक के जीवित होने की कथा उसमें गीध और सियार की बुद्धिमता


युधिष्ठिर ने पूछा- ‘पितामह! क्या आपने कभी यह भी देखा या सुना है कि कोई मनुष्‍य मरकर फिर जी उठा हो! भीष्‍म जी ने कहा- कुन्तीनन्‍दन! प्राचीनकाल में नैमिषारण्‍य क्षेत्र में गीध और गीदड़ का जो संवाद हुआ था, उसे सुनो, वह पूर्वघटित यथार्थ इतिहास है। किसी ब्राह्मण को बड़े कष्ट से एक पुत्र प्राप्‍त हुआ था। वह बड़े-बड़े़ नेत्रोंवाला सुन्‍दर बालक बाल-ग्रह से पीड़ित हो बाल्‍यावस्‍था में ही चल बसा। जिसने युवावस्‍था में अभी प्रवेश ही नहीं किया था तथा जो अपने कुल का सर्वस्‍व था, उस मरे हुए बालक को लेकर उसके कुछ दुखी बान्‍धव शोक से व्याकुल हो फूट-फूटकर रोने लगे। उस मृत बालक को गोद में लेकर वे श्‍मशान की ओर चले। वहाँ पहुँचकर खड़े हो गये और अत्‍यंत दुखी होकर रोने लगे। वे उसकी पहले की बातों को बारंबार याद करके शोकमग्‍न हो जाते थे; इसलिये उसे श्‍मशान भूमि में डालकर लौट जाने में असमर्थ हो रहे थे। उनके रोने के शब्‍द से आकृष्ट होकर एक गीध वहाँ आया और इस प्रकार कहने लगा- ‘मनुष्‍यो! इस जगत में अपने इस इकलौते पुत्र को यहाँ छोड़कर लौट जाओ, देर मत करो। यहाँ हजारों स्त्री-पुरुष काल के द्वारा लाये जा चुके हैं और उन सबको उनके भाई-बन्‍धु छोड़कर चले जाते हैं। ‘देखो, यह सम्‍पूर्ण जगत ही सुख और दु:ख से व्‍याप्‍त है, यहाँ सबको बारी-बारी से संयोग और वियोग प्राप्‍त होते रहते हैं।

‘जो लोग अपने मृतक सम्‍बन्धियों को लेकर श्‍मशान में जाते हैं, और जो नहीं जाते हैं, वे सभी जीव-जन्‍तु अपनी आयु पूरी होने पर इस संसार से चल बसते हैं। ‘गीधों और गीदड़ों से भरे हुए इस भयंकर श्‍मशान में सब ओर असंख्‍य नरकंकाल पड़े हैं। यह स्‍थान सभी प्राणियों के लिये भयदायक है। यहाँ तुम्‍हें नहीं ठहरना चाहिये; ठहरने से कोई लाभ भी नहीं है। ‘अपना प्रिय हो या’ द्वेषपात्र। कोई भी कालधर्म में (मुत्‍यु) को पाकर कभी पुन: जीवित नहीं हुआ है। समस्‍त प्राणियों की ऐसी ही गति है। ‘जिसने इस मर्त्‍यलोक में जन्‍म लिया है, उसे एक-न-एक दिन अवश्‍य मरना होगा। काल द्वारा निर्मित पथ पर मरकर गये हुए प्राणी को कौन जीवित कर सकेगा। ‘सूर्य अस्‍ताचल को जा रहे हैं, जगत के सब लोग दैनिक कार्य समाप्‍त करके अब उससे विरत हो रहे हैं। तुम लोग भी अब अपने पुत्र का स्‍नेह छोड़कर घर लौट जाओ। नरेश्‍वर! तब गीध की बात सुनकर वे बन्‍धु-बान्‍धव जोर-जोर से रोते हुए अपने पुत्र को भूतल पर छोड़कर घर की ओर लौटने लगे। वे इध-उधर रो-गाकर इसी निश्‍चय पर पहुँचे कि अब तो यह बालक मर ही गया; अत: उसके दर्शन से निराश हो वहाँ से जाने के लिये तैयार हो गये। जब उन्‍हें यह निश्चित हो गया कि अब यह नहीं जी सकेगा, तो उसके जीवन से निराश हो वे सब लोग अपने बच्‍चे को छोड़कर जाने के लिये रास्‍ते पर आकर खडे़ हुए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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