महाभारत आदि पर्व अध्याय 125 श्लोक 1-19

पंचविंशत्‍यधिकशततम (125) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: पंचविंशत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

ऋषियों का कुन्‍ती और पाण्‍डवों को लेकर हस्तिनापुर जाना और उन्‍हें भीष्‍म आदि के हाथों सौंपना

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! राजा पाण्‍डु की मृत्‍यु हुई देख वहाँ रहने वाले, देवताओं के समान तेजस्‍वी सम्‍पूर्ण मन्‍त्रज्ञ महर्षियों ने आपस में सलाह की। तपस्‍वी बोले- महान् यशस्‍वी राजा पाण्‍डु अपना राज्‍य तथा राष्ट्र छोड़कर इस स्‍थान पर तपस्‍या करते हुए तपस्‍वी मुनियों की शरण में रहते थे। वे राजा पाण्‍डु अपनी पत्नी और नवजात पुत्रों को आप लागों के पास धरोहर रखकर यहाँ से स्‍वर्ग लोक को चले गये। उनके इन पुत्रों को, पाण्‍डु और माद्री के शरीर की अस्थियों को त‍था उन महात्‍मा नरेश की महारानी कुन्‍ती को लेकर हम लोग उनकी राजधानी में चलें। इस समय हमारे लिये यही धर्म प्रतीत होता है।

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- राजन्! इस प्रकार परस्‍पर सलाह करके उन देवतुल्‍य उदारचेता सिद्ध महर्षियों ने पाण्‍डवों को भीष्‍म एवं धृतराष्ट्र के हाथों सौंप देने के लिये पाण्‍डुपुत्रों को आगे करके हस्तिनापुर नगर में जाने का विचार किया। उन सब तपस्‍वी मुनियों ने पाण्‍डुपत्नी कुन्‍ती, पांचों पाण्‍डवों तथा पाण्‍डु और माद्री के शरीर की अस्थियों को साथ लेकर उसी क्षण वहाँ से प्रस्‍थान कर दिया। पुत्रों पर सदा स्नेह रखने वाली कुन्‍ती पहले बहुत सुख भोग चुकी थी, परंतु अब विपत्ति में पड़कर बहुत लंबे मार्ग पर चल पड़ी; तो भी उसने स्‍वदेश जाने की उत्‍कण्‍ठा अथवा महर्षियों के योगजनित प्रभाव से उस मार्ग को अल्‍प ही माना। यशस्विनी कुन्‍ती थोड़े ही समय में कुरुजांगल देश में जा पहुँची और नगर के वर्धमान नामक द्वार पर गयीं। तब तपस्‍वी मुनियों ने द्वारपाल से कहा- राजा को हमारे आने की सूचना दो! द्वारपाल ने सभा में जाकर क्षणभर में समाचार दे दिया। सहस्रों चारणों सहित मुनियों का हस्तिनापुर में आगमन सुनकर उस समय वहाँ के लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ।

दो घड़ी दिन चढ़ते-चढ़ते समस्‍त पुरवासी स्त्रियों और बालकों को साथ लिये तपस्‍वी मुनियों का दर्शन करने के लिये नगर से बाहर निकल आये। झुंड़-की-झुंड़ स्त्रियां और क्षत्रियों के समुदाय अनेक सवारियों पर बैठकर बाहर निकले। ब्राह्मणों के साथ उनकी स्त्रियां भी नगर से बाहर निकलीं। शूद्रों और वैश्‍यों के समुदाय का बहुत बड़ा मेला जुट गया। किसी के मन में ईर्ष्‍या का भाव नहीं था। सबकी बुद्धि धर्म में लगी हुई थी। इसी प्रकार शान्‍तनुनन्‍दन भीष्‍म, सोमदत्त, बाह्लिक, प्रज्ञाचक्षु राजर्षि धृतराष्ट्र, संजय तथा स्‍वयं विदुरजी भी वहाँ आ गये। देवी सत्‍यवती, काशिराजकुमारी यशस्विनी कौसल्‍या तथा राज घराने की स्त्रियों से घिरी हुई गान्‍धारी भी अन्‍त:पुर से निकल कर वहाँ आयीं। धृतराष्ट्र के दुर्योधन आदि सौ पुत्र विचित्र आभूषणों से विभूषित हो नगर से बाहर निकले। उन महर्षियों का दर्शन करके सबने मस्‍तक झुकाकर प्रणाम किया। फि‍र सभी कौरव पुरोहित के साथ उनके समीप बैठ गये। इसी प्रकार नगर तथा जनपद के सब लोग भी धरती पर माथा टेककर सबको अभिवादन और प्रणाम करके आस-पास बैठ गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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