महाभारत आदि पर्व अध्याय 204 श्लोक 1-18

चतुरधिकद्विशततम (204) अध्‍याय: आदि पर्व (विदुरागमन-राज्‍यलम्‍भ पर्व )

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महाभारत: आदि पर्व: चतुरधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


विदुर जी की सम्‍मति-द्रोण और भीष्‍म के वचनों का ही समर्थन

विदुर जी बोले- राजन्! आपके (हितैषी) बान्‍धवों का यह कर्तव्‍य है कि वे आपको संदेह रहित हित की बात बतायें। परन्‍तु आप सुनना नहीं चाहते, इसलिये आपके भीतर उनकी कही हुई बात भी ठहर नहीं पा रही है। राजन्! कुरुश्रेष्‍ठ शंतनुनन्‍दन भीष्म ने आपसे प्रिय और हित की बात कही है; परंतु आप उसे ग्रहण नहीं कर रहे हैं। इसी प्रकार आचार्य द्रोण ने अनेक प्रकार से आपके लिये उत्‍तम हित की बात बतायी है; किन्‍तु राधानन्‍दन कर्ण उसे आपके लिये हितकर नहीं मानते। महाराज! मैं बहुत सोचने-विचारने पर भी आपके किसी ऐसे परमसुहृद् व्‍यक्ति को नहीं देखता, जो इन दोनों वीर महापुरुषों से बुद्धि या विचार शक्ति में अधिक हो। राजेन्‍द्र! अवस्‍था, बुद्धि और शास्‍त्रज्ञान- सभी बातों में ये दोनों बढ़े-चढ़े हैं और आपमें तथा पाण्‍डवों में समान भाव रखते हैं। भरतवंशी नरेश! ये दोनों धर्म और सत्‍यवादिता में दशरथनन्‍दन श्रीराम तथा राजा गय से कम नहीं है। मेरा यह कथन सर्वथा संशयरहित है। उन्‍होंने आपके सामने भी (कभी) कोई ऐसी बात नहीं कही होगी, जो आपके लिये अनिष्‍टकारक सिद्ध हुई हो तथा इनके द्वारा आपका कुछ अपकार हुआ हो, ऐसा भी देखने में नहीं आता।

महाराज! आपने भी इनका कोई अपराध नहीं किया है; फि‍र ये दोनों सत्‍यपराक्रमी पुरुषसिंह आपको हितकारक सलाह न दें, यह कैसे हो सकता है? नरेश्‍वर! ये दोनों इस लोक में नरश्रेष्‍ठ और बुद्धिमान् हैं, अत: आपके लिये ये कोई कुटिलतापूर्ण बात नहीं कहेंगे। कुरुनन्‍दन! इनके विषय में मेरा यह निश्चित विचार है कि ये दोनों धर्म के ज्ञाता महापुरुष हैं, अत: स्‍वार्थ के लिये किसी एक ही पक्ष को लाभ पहुँचाने वाली बात नहीं कहेंगे। भारत! इन्‍होंने जो सम्‍मति दी है, इसी को मैं आपके लिये परम कल्‍याणकारक मानता हूँ। महाराज! जैसे दुर्योधन आदि आपके पुत्र हैं, वैसे ही पाण्‍डव भी आपके पुत्र हैं- इसमें संशय नहीं है। इस बात को न जानने वाले कुछ मन्‍त्री यदि आपको पाण्‍डवों के अहित की सलाह दें तो यह कहना पड़ेगा कि वे मन्‍त्री लोग, आपका कल्‍याण किस बात में है, यह विशेष रुप में नही देख पा रहे हैं।

राजन्! यदि आपके हृदय में अपने पुत्रों पर विशेष पक्षपात है तो आपके भीतर के छिपे भाव को बाहर सबके सामने प्रकट करने वाले लोग निश्‍चय ही आपका भला नहीं कर सकते। महाराज! इसीलिये ये दोनों महातेजस्‍वी महात्‍मा आपके सामने कुछ खोलकर नहीं कह सके हैं। इन्‍होंने आपको ठीक ही सलाह दी है; परंतु आप उसे निश्चितरुप से स्‍वीकार नहीं करते हैं। इन पुरुषशिरोमणियों ने जो पाण्‍डवों के अजेय होने की बात बतायी है, वह बिल्‍कुल ठीक है। पुरुषसिंह! आपका कल्‍याण हो। राजन्! दायें-बायें दोनों हाथों से बाण चलाने वाले श्रीमान् पाण्‍डुकुमार धनंजय को साक्षात् इन्‍द्र भी युद्ध में कैसे जीत सकते हैं? दस हजार हाथियों के समान महान् बलवान् महाबाहु भीमसेन को युद्ध में देवता भी कैसे जीत सकते हैं? इसी प्रकार जो जीवित रहना चाहता है, उसके द्वारा युद्ध में निपुण तथा यमराज के पुत्रों की भाँति भयंकर दोनों भाई नकुल-सहदेव कैसे जीते जा सकते है?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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