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महाभारत: द्रोण पर्व: पंचचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
अभिमन्यु के द्वारा सत्यश्रवा, क्षत्रियसमूह, रुक्मरथ तथा उसके मित्रगणों और सैकड़ों राजकुमारों का वध और दुर्योधन की पराजय
- संजय कहते हैं– राजन! मृत्युकाल उपस्थित होने पर जैसे यमराज समस्त प्राणियों के प्राण हर लेते हैं, उसी प्रकार अर्जुनकुमार अभिमन्यु भी वीरों की आयु का अपहरण करते हुए उनके लिये यमराज ही हो गये थे। (1)
इन्द्रकुमार अर्जुन का बलवान पुत्र अभिमन्यु इन्द्र के समान पराक्रमी था। वह उस समय सारे व्यूह का मन्थन करता दिखायी देता था। (2)
- राजेन्द्र! क्षत्रियशिरोमणियों के लिये यमराज के समान अभिमन्यु ने उस सेना में प्रवेश करते ही जैसे उनमत्त वयाघ्र हरिण को दबोच लेता है, उसी प्रकार सत्यश्रवा को ले बैठा। (3)
- सत्यश्रवा के मारे जाने पर उन सभी महारथियों ने प्रचुर अस्त्र–शस्त्र लेकर बड़ी उतावली के साथ अभिमन्यु पर आक्रमण किया। (4)
- वे सभी क्षत्रियशिरोमणि 'पहले मैं, पहले मैं' इस प्रकार परस्पर होड़ लगाते हुए अर्जुनकुमार को मार डालने की इच्छा से आगे बढ़े। (5)
- उस समय धावा करने वाले क्षत्रियों की उन आगे बढ़ती हुई सेनाओं को अभिमन्यु ने उसी प्रकार काल का ग्रास बना लिया, जैसे महासागर में तिमि नामक महामत्स्य छोटे-छोटे मत्स्यों को निगल जाता है। (6)
- युद्ध से भागने वाले जो कोई शूरवीर अभिमन्यु के पास गये, वे फिर नहीं लौटे। जैसे समुद्र में मिली हुई नदियाँ फिर वहाँ से लौट नहीं पाती हैं। (7)
- जिसका समुद्र मार्ग भूल गया हो, जो वायु के वेग से भयाक्रान्त हो रही हो तथा जिसे किसी बहुत बड़े ग्राह ने पकड़ लिया हो- ऐसी नौका जैसे डगमगाने लगती है, उसी प्रकार वह सेना अभिमन्यु के भय स काँप रही थी। (8)
- इसी समय मद्रराज का बलवान पुत्र रुक्मरथ आकर अपनी डरी हुई सेना को आश्वासन देता हुआ निर्भय होकर बोला। (9)
- 'शूरवीरो! तुम्हें डरने की कोई आवश्यकता नहीं। यह अभिमन्यु मेरे रहते कुछ भी नहीं है। मैं अभी इसे जीते-जी पकड लूँगा। इसमें संशय नहीं है।' (10)
- ऐसा कहकर पराक्रमी रुक्मरथ सुन्दर सजे-सजाये तेजस्वी रथ पर आरूढ़ हो सुभद्राकुमार अभिमन्यु की ओर दौड़ा। (11)
- उसने अभिमन्यु की छाती में तीन बाण मारकर सिंहनाद किया। फिर तीन बाण दाहिनी और तीन तीखे बाण बायीं भुजा में मारे। (12)
- तब अर्जुनकुमार ने रुक्मरथ का धनुष काटकर उसकी बायीं-दायीं भुजाओं को तथा सुन्दर नेत्र एवं भौंहों से सुशोभित मस्तक को भी तुरंत ही पृथ्वी पर काट गिराया। (13)
- राजन! राजा शल्य के अभिमानी पुत्र रुक्मरथ को जो, अभिमन्यु को जीते-जी पकड़ना चाहता था, यशस्वी सुभद्राकुमार के द्वारा मारा गया देख शल्यपुत्र के बहुत-से मित्र राजकुमार, जो प्रहार करने में कुशल और युद्ध में उन्मत्त होकर लड़ने वाले थे, अर्जुनकुमार को चारों ओर-से घेरकर बाणों की वर्षा करने लगे। उनके ध्वज सुवर्ण के बने हुए थे, वे महाबली वीर चार हाथ के धनुष खींच रहे थे। (14-16)
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