महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 50 श्लोक 1-19

पंचाशत्तम (50) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

युधिष्ठिर की चिंता, भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आश्वासन, धृष्टद्युम्न का उत्साह तथा द्वितीय दिन के युद्ध के लिये क्रौचारूणव्यूह का निर्माण


संजय कहते हैं- भरतश्रेष्ठ! प्रथम दिन के युद्ध में जब पाण्डव सेना पीछे हटा दी गयी, भीष्म जी का युद्धविषयक उत्साह बढ़ता ही गया और दुर्योधन हर्षातिरेक से उल्लसित हो उठा, उस समय धर्मराज युधिष्ठिर अपने सभी भाईयों और सम्पूर्ण राजाओं के साथ तुरन्त भगवान श्रीकृष्ण के पास गये और अत्यन्त शोक से संतप्त हो भीष्म के ऐसे पराक्रम तथा अपनी पराजय की चिंता करते हुए भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार बोले- ‘श्रीकृष्ण! देखिये, महान् धनुर्धर और भयंकर भीष्म अपने बाणों द्वारा मेरी सेना को उसी प्रकार दग्ध कर रहे हैं, जैसे ग्रीष्म ऋतु में लगी हुई आग घास-फूंस को जलाकर भस्म कर डालती है। जैसे अग्निदेव प्रज्ज्वलित होकर हविष्य की आहुति ग्रहण करते हैं, उसी प्रकार ये महामना भीष्म अपनी बाणरूपी जिह्वा से मेरी सेना को चाटते जा रहे हैं। हम लोग कैसे इनकी और देख सकेंगे-किस प्रकार इसका सामना कर सकेंगे? हाथों में धनुष लिये इन महाबली पुरुषसिंह भीष्म को देखकर और समरभूमि में इनके बाणों से आहत होकर मेरी सारी सेना भागने लगती है। क्रोध में भरे हुए यमराज, वज्रधारी इन्द्र, पाशधारी वरुण अथवा गदाधारी कुबेर भी कदाचित् युद्ध में जीते जा सकते हैं परन्तु महातेजस्वी, महाबली भीष्म को जीतना अशक्य है।

केशव! ऐसी दशा में तो अपनी बुद्धि की दुर्बलता के कारण भीष्म से टक्कर लेकर भीष्मरूपी अगाध जलराशि में नाव के बिना डूबा जा रहा हूँ। वार्ष्णेय! अब मैं वन को चला जाऊंगा। वही जीवन बिताना मेरे लिये कल्याणकारी होगा। इन भूपालों को व्यर्थ ही भीष्मरूपी मृत्यु को सौंप देने में कोई भलाई नहीं है। श्रीकृष्ण! भीष्म महान् दिव्यास्त्रों के ज्ञाता हैं। वे मेरी सारी सेना का संहार कर डालेंगे। जैसे पतंगे मरने के लिये ही जलती आग में कूद पडते हैं, उसी प्रकार मेरे समस्त सैनिक अपने विनाश के लिये ही भीष्म के समीप जाते हैं। वार्ष्‍णेय! राज्य के लिये पराक्रम करके मैं सब प्रकार से क्षीण होता जा रहा हूँ। मेरे वीर भ्राता बाणों से पीड़ित होकर अत्यन्त कृश होते जा रहे थे। ये बन्धुजनोचित सौहार्द के कारण मेरे लिये राज्य और सुख से वंचित हो दुःख भोग रहे हैं। इस समय मैं इनके और अपने जीवन को ही बहुत अच्छा समझता हूँ क्योंकि अब जीवन भी दुर्लभ है। केशव! जीवन बच जाने पर मैं दुष्कर तपस्या करूंगा परन्‍तु रणक्षेत्र में इन मित्रों की व्यर्थ हत्या नहीं कराऊँगा।

महाबली भीष्म अपने दिव्य अस्त्रों द्वारा मेरे पक्ष के श्रेष्ठ एवं प्रहार कुशल कई सहस्र रथियों का निरन्तर संहार कर रहे हैं। माधव! शीघ्र बताइये, क्या करने से मेरा हित होगा? सव्यसाची अर्जुन को तो मैं इस युद्ध में मध्यस्थ (उदासीन) सा देख रहा हूँ। एकमात्र महाबाहु भीमसेन ही क्षत्रिय-धर्म का विचार करता हुआ केवल बाहुबल के भरोसे अपनी पूरी शक्ति लगाकर युद्ध कर रहा है। महामना भीमसेन उत्साहपूर्वक अपनी वीर घातिनी गदा के द्वारा रथ, घोडे़, मनुष्य और हाथियों पर अपना दुष्कर पराक्रम प्रकट कर रहा है। माननीय वीर श्रीकृष्ण! यदि इस तरह सरलतापूर्वक ही युद्ध किया जाय तो यह भीमसेन अकेला सौ वर्षों में भी शत्रु-सेना का विनाश नहीं कर सकता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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