महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 1-20

सप्तदश (17) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


शिवसहस्रनामस्तोत्र और उसके पाठ का फल

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- "तात युधिष्ठिर! तदनन्तर ब्रह्मर्षि उपमन्यु ने मन और इन्द्रियों को एकाग्र करके पवित्र हो हाथ जोड़ मेरे समक्ष वह नाम-संग्रह आदि से ही कहना आरम्भ किया।

उपमन्यु बोले- 'मैं ब्रह्मा जी के कहे हुए, ऋषियों के बताये हुए तथा वेद-वेदांगों से प्रकट हुए नामों द्वारा सर्वलोकविख्यात एवं स्तुति के योग्य भगवान की स्तुति करूँगा। इन सब नामों का आविष्कार महापुरुषों ने किया है तथा वेदों में दत्तचित्त रहने वाले महर्षि तण्डि ने भक्तिपूर्वक इनका संग्रह किया है। इसलिये ये सभी नाम सत्य, सिद्ध तथा सम्पूर्ण मनोरथों के साधक हैं। विख्यात श्रेष्ठ पुरुषों तथा तत्त्वदर्शी मुनियों ने इन सभी नामों का यथावत रूप से प्रतिपादन किया है। महर्षि तण्डि ने ब्रह्मलोक से मर्त्यलोक में इन नामों को उतारा है; इसलिये ये सत्यनाम सम्पूर्ण जगत में आदरपूर्वक सुने गये हैं।

यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण! यह ब्रह्मा जी का कहा हुआ सनातन शिव-स्तोत्र अन्य स्तोत्रों की अपेक्षा श्रेष्ठ है और उत्त्म वेदमय है। सब स्तोत्रों में इसका प्रथम स्थान है। यह स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाला, सम्पूर्ण भूतों के लिये हितकर एवं शुभकारक है। इसका मैं आपसे वर्णन करूँगा। आप सावधान होकर मेरे मुख से इसका श्रवण करें। आप परमेश्वर महादेव जी के भक्त हैं; अतः इस शिवस्वरूप स्तोत्र का वरण करे। शिवभक्त होने के ही कारण मैं यह सनातन वेदस्वरूप स्तोत्र आपको सुनाता हूँ। महादेव जी के इस सम्पूर्ण नामसमूह का पूर्णरूप से विस्तारपूर्वक वर्णन तो कोई कर ही नहीं सकता। कोई व्यक्ति योगयुक्त होने पर भी भगवान शिव की विभूतियों का सैकड़ों वर्षों में भी वर्णन नहीं कर सकता। माधव! भजन के आदि, मध्य और अन्त का पता देवता भी नहीं पाते हैं, उनके गुणों का पूर्णरूप से वर्णन कौन कर सकता हैं? परंतु मैं अपनी शक्ति के अनुसार उन बुद्धिमान महादेव जी की ही कृपा से संक्षिप्त अर्थ, पद और अक्षरों से युक्त उनके चरित्र एवं स्तोत्र का वर्णन करूँगा। उनकी आज्ञा प्राप्त किये बिना उन महेश्वर की स्तुति नहीं की जा सकती है। जब उनकी आज्ञा प्राप्त हुई है, तभी मैंने उनकी स्तुति की है। आदि-अन्त से रहित तथा जगत के कारणभूत अव्यक्तयोनि महात्मा शिव के नामों का कुछ संक्षिप्त संग्रह मैं बता रहा हूँ।

श्रीकृष्ण! जो वरदायक, वरेण्य सर्वश्रेष्ठ, विश्वरूप और बुद्धिमान हैं, उन भगवान शिव का पद्मयोनि ब्रह्मा जीके द्वारा वर्णित नाम-संग्रह श्रवण करो। प्रपितामह ब्रह्मा जीने जो दस हज़ार नाम बताये थे, उन्हीं को मनरूपी मथनी से मथकर मथे हुए दही से घी की भाँति यह सहस्रनामस्तोत्र निकाला गया है। जैसे पर्वत का सार सुवर्ण, फल का सार मधु और घी का सार मण्ड है, उसी प्रकार यह दस हज़ार नामों का सार उद्धृत किया गया है। यह सहस्रनाम सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाला और चारों वेदों के समन्वय से युक्त है। मन को वश में करके प्रयत्नपूर्वक इसका ज्ञान प्राप्त करें और सदा अपने मन में इसको धारण करें। यह मंगलजनक, पुष्टिकारक, राक्षसों का विनाशक तथा परम पावन है। जो भक्त हो, श्रद्धालु और आस्तिक हो, उसी को इसका उपदेश देना चाहिये। अश्रद्धालु, नास्तिक और अजितात्मा पुरुष को इसका उपदेश नहीं देना चाहिये।

श्रीकृष्ण! जो जगत के कारणरूप ईश्वर महादेव के प्रति दोषदृष्टि रखता है, वह पूर्वजों और अपनी संतान के सहित नरक में पड़ता है। यह सहस्रनामस्तोत्र ध्यान है, यह योग है, यह सर्वोत्तम ध्येय है, यह जपनीय मंत्र है, यह ज्ञान है और यह उत्तम रहस्य है। जिसको अन्त काल में भी जान लेने पर मनुष्य परम गति को जान लेता है, वह यह सहस्रनामस्तोत्र परम पवित्र मंगलकारक, बुद्धिवर्धक, कल्याणमय तथा उत्तम है। सम्पूर्ण लोकों के पितामह ब्रह्मा जी ने पूर्वकाल में इस स्तोत्र का आविष्कार करके इसे समस्त दिव्यस्तोत्रों के राजा के पद पर प्रतिष्ठत किया था। तब से महात्मा ईश्वर महादेव का यह देवपूजित स्तोत्र संसार में ’स्तवराज’ के नाम से विख्यात हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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