महाभारत वन पर्व अध्याय 199 श्लोक 1-9

नवनवत्‍यधिकशततम (199) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

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महाभारत: वन पर्व: नवनवत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-9 का हिन्दी अनुवाद


राजा इन्‍द्रद्युम्र तथा अन्‍य चिरजीवी प्राणियों की कथा

वैश्‍म्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ऋषियों तथा पाण्‍डवों ने मार्कण्‍डेय जी से पूछा- ‘भगवन्! कोई आपसे भी पहले का उत्‍पन्न चिरजीवी इस जगत् में है या नहीं?'

मार्कण्‍डेय जी ने कहा- 'है क्‍यों नहीं, सुनो। एक समय राजर्षि इन्‍द्रद्युम्न अपना पुण्‍य क्षीण हो जाने के कारण यह कहकर स्‍वर्गलोक से नीचे गिरा दिये गये थे कि ‘जगत में तुम्‍हारी कीर्ति नष्‍ट हो गयी है।' स्‍वर्ग से गिरने पर वे मेरे पास आये और बोले- ‘क्‍या आप मुझे पहचानते हैं?' मैंने उनसे कहा- ‘हम लोग तीर्थयात्रा आदि भिन्न-भिन्न पुण्‍य कार्यों की चेष्‍टाओं में व्‍यग्र रहते हैं, अत: किसी एक स्‍थान पर सदा नहीं रहते। एक गांव में केवल एक रात निवास करते हैं। अपने कार्यों का अनुष्‍ठान भी हमें भूल जाता है। व्रत-उपवास आदि में लगे रहने से अपने शरीर को सदा कष्‍ट पहुँचाने के कारण आवश्‍यक कार्यों का आरम्‍भ भी हम से नहीं हो पाता है, ऐसी दशा में हम आपको कैसे जान सकते हैं?'

मेरे ऐसा कहने पर राजर्षि इन्‍द्रद्युम्न ने पुन: मुझसे पूछा- ‘क्‍या आपसे भी पहले का पैदा हुआ कोई पुरातन प्राणी है?' तब मैंने उन्‍हें पुन: उत्तर दिया- ‘हिमालय पर्वत पर प्रावारकर्ण नाम से प्रसिद्ध एक उलूक निवास करता है। वह मुझसे भी पहले का उत्‍पन्न हुआ है। सम्‍भव है, वह आपको जानता हो। यहाँ से बहुत दूर की यात्रा करने पर हिमालय पर्वत मिलेगा। वहीं वह रहता है।' तब इन्‍द्रद्युम्न अश्व बनकर मुझे वहाँ तक ले गये, जहाँ उलूक रहता था। वहाँ जाकर राजा ने उससे पूछा- ‘क्‍या आप मुझे जानते हैं?' उसने दो घड़ी सोच-विचार कर उनसे कहा- 'मैं आपको नहीं जानता हूँ।' उलूक के ऐसा कहने पर राजर्षि इन्‍द्रद्युम्न ने पुन: उससे पूछा- ‘क्‍या आपसे भी पहले का उत्‍पन्न हुआ कोई चिरजीवी प्राणी है?' उनके ऐसा पूछने पर उलूक ने कहा- 'इन्‍द्रयद्युम्न नाम से प्रसिद्ध एक एक सरोवर है। जहाँ नाडीजंघ नाम से प्रसिद्ध एक बक निवास करता है। वह हमसे बहुत पहले का उत्‍पन्न हुआ है। उससे पूछिये।'

तब इन्‍द्रद्युम्न मुझको और उलूक को भी साथ लेकर उस सरोवर पर गये, जहाँ नाडीजंघ बक निवास करता था। हम लोगों ने उस बक से पूछा- ‘क्‍या आप राजा इन्‍द्रद्युम्न को जानते हैं?' उसने दो घड़ी तक सोचकर उत्तर दिया- 'मैं राजा इन्‍द्रद्युम्न को नहीं जानता हूँ।' तब हम लोगों ने उनसे पूछा- ‘क्‍या कोई प्राणी ऐसा है, जिसका जन्‍म आपसे भी पहले हुआ हो?' उसने हमसे कहा- ‘है; इसी सरोवर में अकूपार नामक एक कछुआ रहता है। वह मुझसे भी पहले उत्‍पन्न हुआ है। आप लोग उस अकूपार से ही पूछिये। सम्‍भव है, वह इन राजर्षि को किसी तरह जानता हो।' तब उस बक ने अकूपार नामक कछुए को यह सूचना दी कि ‘हम लोग आपसे कुछ अभीष्‍ट प्रश्न पूछना चाहते हैं। कृपया आइये।' यह संदेश सुनकर वह कछुआ उस सरोवर से निकलकर वहीं आया, जहाँ हम लोग तट पर खड़े थे। आने पर उससे हम लोगों ने पूछा- ‘क्‍या आप राजा इन्‍द्रद्युम्न को जानते हैं?'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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