महाभारत आदि पर्व अध्याय 136 श्लोक 1-15

षटत्रिंशदधिकशततम (136) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: षटत्रिंशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


भीमसेन के द्वारा कर्ण का तिरस्‍कार और दुर्योधन द्वारा उसका सम्‍मान

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्‍तर लाठी ही जिसका सहारा था, वह अधिरथ कर्ण को पुकारता हुआ-सा कांपता-कांपता रंगभूमि में आया। उसकी चादर खिसक कर गिर पड़ी थी और वह पसीने से लथपथ हो रहा था। पिता के गौरव से बंधा हुआ कर्ण अधिरथ को देखते ही धनुष त्‍यागकर सिंहासन से नीचे उतर आया। उसका मस्‍तक अभिषेक जल से भीगा हुआ था। उसी दशा में उसने अधिरथ के चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया। अधिरथ ने अपने दोनों पैरों को कपड़े के छोर से छिपा लिया और ‘बेटा! बेटा! ’ पुकारते हुए अपने को कृतार्थ समझा। उसने स्‍नेह से विह्बल होकर कर्ण को हृदय से लगा लिया और अंगदेश के राज्‍य पर अभिषेक होने से भीगे हुए उसके मस्‍तक को आंसुओं से पुन: अभिषिक्त कर दिया।

अधिरथ को देखकर पाण्‍डुकुमार भीमसेन यह समझ गये कि कर्ण सूतपुत्र है; फि‍र तो वे हंसते हुए- से बोले- ‘अरे ओ सूतपुत्र! तू तो अर्जुन के हाथ से मरने योग्‍य भी नहीं है। तुझे तो शीघ्र ही चाबुक हाथ में लेना चाहिये; क्‍योंकि यही तेरे कुल के अनुरूप है। नराधम! जैसे यज्ञ में अग्नि के समीप रखे हुए पुरोडाश को कु्त्ता नहीं पा सकता, उसी प्रकार तू भी अंगदेश का राज्‍य भोगने योग्‍य नहीं है’। भीमसेन के यों कहने पर क्रोध के मारे कर्ण का होठ कुछ कांपने लगा और उसने लंबी सांस लेकर आकाश मण्‍डल में स्थित भगवान् सूर्य की ओर देखा। इसी समय महाबली दुर्योधन कुपित हो मदोन्‍मत्त गजराज की भाँति भ्रात-समूह रूपी कमल वन से उछल कर बाहर निकल आया। उसने वहाँ खड़े हुए भयंकर कर्म करने वाले भीमसेन से कहा-

‘वृकोदर! तुम्‍हें ऐसी बात नहीं कहनी चाहिये। क्षत्रियों में बल की ही प्रधानता है। बलवान् होने पर क्षत्रबन्‍धु (हीन क्षत्रिय) से भी युद्ध करना चाहिये (अथवा मुझ क्षत्रिय का मित्र होने के कारण कर्ण के साथ तुम्‍हें युद्ध करना चाहिये। शूरवीरों और नदियों की उत्‍पत्ति के वास्‍तविक कारण को जान लेना बहुत कठिन है। जिसने सम्‍पूर्ण चराचर जगत् को व्‍याप्त कर रखा है, वह तेजस्‍वी अग्नि जल से प्रकट हुआ है। दानवों का संहार करने वाला वज्र महर्षि दधीचि की हड्डियों से निर्मित हुआ है। सुना जाता है, सर्वगुह्यस्‍वरूप भगवान् स्‍कन्‍ददेव अग्नि, कृत्तिका, रुद्र तथा गंगा- इन सबके पुत्र हैं। कितने ही ब्राह्मण क्षत्रियों से उत्‍पन्न हुए हैं, उनका नाम तुमने भी सुना होगा तथा विश्वामित्र आदि क्षत्रिय भी अक्षय ब्राह्मणत्‍व को प्राप्त हो चुके हैं। समस्‍त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ हमारे आचार्य द्रोण का जन्‍म कलश से हुआ है। महर्षि गौतम के कुल में कृपाचार्य की उत्‍पत्ति भी सरकंडों के समूह से हुई है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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