महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 134 श्लोक 1-17

चतुस्त्रिंशदधिकशततम (134) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुस्त्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


स्कन्द देव का धर्म सम्बन्धी रहस्य तथा भगवान विष्णु और भीष्म जी के द्वारा माहात्म्य का वर्णन

स्कन्द ने कहा- देवताओ! अब एकाग्रचित्त होकर मेरी मान्यता के अनुसार भी धर्म का गोपनीय रहस्य सुनो। जो मनुष्य नीले रंग के साँड़ की सींगों में लगी हुई मिट्टी लेकर इससे तीन दिनों तक स्नान करता है, उसे प्राप्त होने वाले पुण्य का वर्णन सुनो। वह अपने सारे पापों को धो डालता है और परलोक में आधिपत्य प्राप्त करता है। फिर जब वह मनुष्य योनि में जन्म लेता है, तब शूरवीर होता है। अब धर्म का यह दूसरा गुप्त रहस्य सुनो।

पूर्णमासी तिथि को चन्द्रोदय के समय ताँबे के बर्तन में मधु मिलाया हुआ पकवान लेकर जो चन्द्रमा के लिये बलि अर्पण करता है, उसे जिस नित्य धर्म-फल की प्राप्ति होती है, उसका श्रद्धापूर्वक श्रवण करो। उस पुरुष की दी हुई उस बलि को साध्य, रुद्र, आदित्य, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार, मरुद्गण और वसु देवता भी ग्रहण करते हैं तथा उससे चन्द्रमा और समुद्र की वृद्धि होती है। इस प्रकार मैंने रहस्य सहित सुखदाय धर्म का वर्णन किया है।

भगवान विष्णु बोले- जो देवताओं तथा महात्मा ऋषियों के बताये हुए धर्म सम्बन्धी इन सभी गूढ़ रहस्यों का प्रतिदिन पाठ करेगा अथवा दोष-दृष्टि से रहित हो सदा एकाग्रचित्त रहकर श्रद्धापूर्वक श्रवण करेगा, उस पर किसी विघ्न का प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा उसे कोई भय भी नहीं प्राप्त होगा। यहाँ जिन-जिन पवित्र एवं कल्याणकारी धर्मों का रहस्यों सहित वर्णन किया गया है, उन सबका जो इन्द्रियसंयमपूर्वक पाठ करेगा, उसे उन धर्मों का पूरा-पूरा फल प्राप्त होगा। उसके ऊपर कभी पाप का प्रभाव नहीं पड़ेगा, वह कभी पाप से लिप्त नहीं होगा। जो इस प्रसंग को पढे़गा, दूसरों को सुनायेगा अथवा स्वयं सुनेगा, उसे भी उन धर्मों के आचरण का फल मिलेगा। उसका दिया हुआ हव्य-कव्य अक्षय होगा तथा उसे देवता और पितर बड़ी प्रसन्नता से ग्रहण करेंगे। जो मनुष्य पर्व के दिन शुद्ध चित्त होकर श्रेष्ठ ब्राह्मणों को धर्म के इन रहस्यों का श्रवण करायेगा, वह सदा देवता, ऋषि और पितरों के आदर का पात्र एवं श्रीसम्पन्न होगा। उसकी सदा धर्मों में प्रवृत्ति बनी रहेगी। मनुष्य महापातक को छोड़कर अन्य पापों का आचरण करके भी यदि इस रहस्य-धर्म को सुन लेगा तो उन सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जायेगा।

भीष्म जी कहते हैं- नरेश्वर! देवताओं के बताये हुए इस धर्म रहस्य को व्यास जी ने मुझसे कहा था। उसी को मैंने तुम्हें बताया है। यह सब देवताओं द्वारा समादृत है। एक ओर रत्नों से भरी हुई सम्पूर्ण पृथ्वी प्राप्त होती हो और दूसरी ओर यह सर्वोत्तम ज्ञान मिल रहा हो तो उस पृथ्वी को छोड़कर इस सर्वोत्तम ज्ञान को ही श्रवण एवं ग्रहण करना चाहिये। धर्मज्ञ पुरुष ऐसा ही माने। न श्रद्धाहीन को, न नास्तिक को, न धर्म नष्ट करने वाले को, न निर्दयी को, न युक्तिवाद का सहारा लेकर दुष्टता करने वाले को, न गुरुद्रोही को और न देहाभिमानी व्यक्ति को ही इस धर्म का उपदेश देना चाहिये।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में स्कन्द देव का रहस्य विषयक एक सौ चौंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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