महाभारत सभा पर्व अध्याय 44 श्लोक 1-17

चतुश्वत्वारिंशो (44) अध्‍याय: सभा पर्व (शिशुपालवध पर्व)

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महाभारत: सभा पर्व: चतुश्वत्वारिंशो अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


भीष्म की बातों से चिढ़े हुए शिशुपाल का उन्हें फटकारना तथा भीष्म का श्रीकृष्ण से युद्ध करने के लिये समस्त राजाओं को चुनौति देना

भीष्म जी कहते हैं- भीमसेन! यह चेदिराज शिशुपाल की बुद्धि नहीं है, जिसके द्वारा वह युद्ध से कभी पीछे न हटने वाले तुम जैसे महावीर को ललकार रहा है, अवश्य ही सम्पूर्ण जगत के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण का यही यह निश्चित विधान है। भीमसेन! काल ने ही इसके मन और बुद्धि को ग्रस लिया है, अन्यथा इस भूमण्डल में कौन ऐसा राजा होगा, जो मुझ पर इस तरह आक्षेप कर सके, जैसे यह कुलकलंक शिशुपाल कर रहा है। यह महाबाहु चेदिराज निश्चय ही भगवान श्रीकृष्ण के तेज का अंश है। ये सर्वव्यापी भगवान अपने उस अंश को पुन: समेट लेना चाहते हैं। कुरुसिंह भीम! यही कारण है कि यह दुर्बुद्धि शिशुपाल हम सबको कुछ न समझकर आज सिंह के समान गरज रहा है।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! भीष्म की यह बात शिशुपाल न सह सका। वह पुन: अत्यन्त क्रोध में भरकर भीष्म को उनकी बातों का उत्तर देते हुए बोला। शिशुपाल ने कहा- भीष्म! तुम सदा भाट की तरह खड़े होकर जिसकी स्तुति गाया करते हो, उस कृष्ण का जो प्रभाव है, वह हमारे शत्रुओं के पास ही रहे। भीष्म! यदि तुम्हारा मन सदा दूसरों की स्तुति में ही लगता है तो इस जनार्दन को छोड़कर इन राजाओं की ही स्तुति करो। ये दरद देश के राजा हैं, इनकी स्तुति करो। ये भूमिपालों में श्रेष्ठ बाह्लीक बैठे हैं, इनके गुण गाओ। इन्होंने जन्म लेते ही अपने शरीर के भार से इस पृथ्वी को विदीर्ण कर दिया था। भीष्म]! ये जो वंग और अंग दोनों देशों के राजा हैं, इन्द्र के समान बल पराक्रम से सम्पन्न हैं तथा महान् धनुष की प्रत्यन्चा खींचने वाले हैंं, इस वीरवर कर्ण की कीर्ति का गान करो। महाबहो! इन कर्ण के ये दोनों दिव्य कुण्डल जन्म के साथ ही प्रकट हुए हैं। किसी देवता ने ही इन कुण्डलों का निर्माण किया है। कुण्डलों के साथ-साथ इनके शरीर पर यह दिव्य कवच भी जन्म से ही पैदा हुआ है, जो प्रात:काल के सूर्य के समान प्रकाशित हो रहा है। जिन्होंने इन्द्र के तुल्य पराक्रमी तथा अत्यन्त दुर्जय जरासंध को बाहुयुद्ध के द्वारा केवल परास्त ही नहीं किया, उनके शरीर को चीर भी डाला, उन भीमसेन की स्तुति करो।

द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा दोनों पिता पुत्र महारथी हैं तथा ब्राह्मणों में श्रेष्ठ हैं, अतएव स्तुत्य भी हैं। भीष्म! तुम उन दोनों की अच्छी तरह स्तुति करो। भीष्म! इन दोनों पिता पुत्रों में से यदि एक भी अत्यन्त क्रोध में भर जाय, तो चराचर प्राणियों सहित इस सारी पृथ्वी को नष्ट कर सकता है, ऐसा मेरा विश्वास है। भीष्म! मुझे तो कोई भी ऐसा राजा नहीं दिखायी देता, जो युद्ध में द्रोण अथवा अश्वत्थामा की बराबरी कर सके। तो भी तुम इन दोनों की स्तुति करना नहीं चाहते। इस समुद्रपर्यन्त सारी पृथ्वी पर जो अद्वितीय अनुपम वीर हैं, उन राजाधिराज महाबाहु दुर्योधन को, अस्त्रविद्या में निपुण और सुदृढ़पराक्रमी राजा जयद्रथ को और विश्वविख्यात विक्रमशाली महाबली किम्पुरुषाचार्य द्रुम को छोड़कर तुम कृष्ण की प्रशंसा क्यों करते हो? शरद्वान मुनि के महापराक्रमी कृप भरतवंश के वृद्ध आचार्य हैं। इनका उल्लंघन करके तुम कृष्ण का गुण क्यों गाते हो?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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