महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 68 श्लोक 1-12

अष्‍टषष्टितम (68) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: अष्‍टषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद


युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन


संजय कहते हैं- राजन! कर्ण के बाणों से संतप्‍त हुए अमित तेजस्‍वी कुन्‍तीकुमार राजा युधिष्ठिर अधिक बलशाली कर्ण को सकुशल सुनकर अर्जुन पर कुपित हो उनसे इस प्रकार बोले- ‘तात! तुम्‍हारी सारी सेना भाग चली है। तुमने आज उसकी ऐसी उपेक्षा की है, जो किसी प्रकार अच्‍छी नहीं कही जा सकती। जब तुम कर्ण को जीत नहीं सके तो भयभीत हो भीमसेन को वहीं छोड़कर यहाँ चले आये। पार्थ! तुमने कुन्ती के गर्भ में निवास करके भी अपने सगे भाई के प्रति ऐसा स्‍नेह निभाया, जिसे कोई अच्‍छा नहीं कह सकता; क्‍योंकि जब तुम सूतपुत्र कर्ण को मारने में समर्थ न हो सके, तब भीमसेन को अकेले रणभूमि में छोड़कर स्‍वयं वहाँ से चले आये। तुमने द्वैतवन में जो यह सत्‍य वचन कहा था कि ‘मैं एक मात्र रथ के द्वारा युद्ध करके कर्ण को मार डालूंगा’ उस प्रतिज्ञा को तोड़कर कर्ण से भयभीत हो भीमसेन को छोड़कर आज तुम रणभूमि से लौट कैसे आये?

पार्थ! यदि तुमने द्वैतवन में यह कह दिया होता कि ‘राजन! मैं कर्ण के साथ युद्ध नहीं कर सकूंगा’ तो हम सब लोग समयोचित कर्त्तव्‍य का निश्चय करके उसी के अनुसार कार्य करते। वीर! तुमने मुझसे कर्ण के वध की प्रतिज्ञा करके उसका उसी रुप में पालन नहीं किया। यदि ऐसा ही करना था तो हमें शत्रुओं के बीच में लाकर पत्‍थर की वेदी पर पटककर पीस क्‍यों डाला। राजकुमार अर्जुन! हमने बहुत से मंगलमय अभीष्ट पदार्थ प्राप्‍त करने की इच्‍छा रखकर तुम पर आशा लगा रखी थी; परंतु फल चाहने वाले मनुष्‍यों को अधिक फूलों वाला फलहीन वृक्ष जैसे निराश कर देता है, उसी प्रकार तुम से हमारी सारी आशा निष्‍फल हो गयी। मैं राज्‍य पाना चाहता था; किंतु तुमने मांस के ढके हुए वंशी के कांटे और भोजन सामग्री से आच्‍छादित हुए विष के समान मुझे राज्‍य के रुप में अनर्थकारी विनाश का ही दर्शन कराया है।

धनंजय! जैसे बोया हुआ बीज समय पर मेघ द्वारा की हुई वर्षों की प्रतीक्षा में जीवित रहता है, उसी प्रकार हमने तेरह वर्षों तक सदा तुम पर ही आशा लगाकर जीवन धारण किया था; परंतु तुमने हम सब लोगों को नरक में डुबो दिया (भारी संकट में डाल दिया)। मन्‍दबुद्धि अर्जुन! तुम्‍हारे जन्‍म लिये सात ही दिन बीते थे कि माता कुन्‍ती से आकाशवाणी ने इस प्रकार कहना आरम्‍भ किया- ‘देवि! तुम्‍हारा यह पुत्र इन्‍द्र के समान पराक्रमी पैदा हुआ है। यह अपने समस्‍त शूरवीर शत्रुओं को जीत लेगा। यह उत्तम शक्ति से सम्‍पन्न बालक खाण्डववन में देवताओं के समूहों तथा सम्‍पूर्ण प्राणियों पर भी विजय प्राप्‍त करेगा। यह मद्र, कलिंग और केकयों को जीतेगा तथा राजाओं की मण्‍डली में कौरवों का भी विनाश कर डालेगा। इससे बढ़कर दूसरा कोई धनुर्धर नहीं होगा। कोई भी प्राणी कभी भी इसे जीत नहीं सकेगा। यह अपने मन और इन्द्रियों को वश में रखता हुआ सम्‍पूर्ण विद्याओं को प्राप्‍त कर लेगा और इच्‍छा करते ही सभी प्राणियों को अपने अधीन कर सकेगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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