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महाभारत: उद्योग पर्व: एकपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
भीमसेन के पराक्रम से डरे हुए धृतराष्ट्र का विलाप
- धृतराष्ट्र बोले- संजय! तुमने जिन लोगों के नाम बताये हैं, ये सभी बड़े उत्साही वीर हैं। इनमें भी जितने लोग वहाँ एकत्र हुए हैं, वे सब एक ओर और भीमसेन एक ओर। (1)
- तात! मुझे क्रोध में भरे हुए अमर्षशील भीमसेन से बड़ा डर लगता है; ठीक उसी तरह, जैसे महान मृग को किसी व्याघ्र से सदा भय बना रहता है। (2)
- वत्स! सिंह से डरे हुए दूसरे पशु की भाँति मैं भीमसेन से भयभीत हो रातभर गर्म-गर्म लंबी सांसें खींचता हुआ जागता रहता हूँ। (3)
- महाबाहु भीम इन्द्र के समान तेजस्वी हैं। मैं अपनी सेना में किसी को भी ऐसा नहीं देखता, जो भीम का सामना कर सके युद्ध में इसके वेग को सह सके। (4)
- कुन्तीकुमार पाण्डुपुत्र भीम असहनशील तथा वैर को दृढ़तापूर्वक पकड़कर रखने वाला है। उसकी की हुई हंसी भी हंसी के लिये नहीं होती, वह उसे सत्य कर दिखाता है। उसका स्वभाव उद्धत है। वह टेढ़ी निगाह से देखता और बड़े जोर से गर्जना करता है। (5)
- वह महान वेगशाली, अत्यन्त उत्साही, विशालबाहु और महाबली है। वह युद्ध करके मेरे मन्दबुद्धि पुत्रों को अवश्य मार डालेग। (6)
- मेरे पुत्र भी बड़े दुराग्रही हैं; अत: हाथ में गदा लिये कुरुश्रेष्ठ वृकोदर भीम दण्डपाणि यमराज की भाँति युद्ध में इनका निश्चय ही वध कर डालेगा। (7)
- मैं मन की आँखों से देख रहा हूँ, भीमसेन की स्वर्ण भूषित भयंकर गदा, जो लोहे की बनी हुई और आठ कोनों से युक्त है, ब्रह्मदण्ड के समान उठी हुई है। (8)
- जैसे बलवान सिंह मृगों के यूथों में नि:शंक विचरण करता है, उसी प्रकार भीमसेन मेरी विशाल वाहिनियों में बेखट के विचरेगा। (9)
- बाल्यकाल में भी मेरे सब पुत्रों में एकमात्र वह भीमसेन ही क्रूर पराक्रमी, बहुत अधिक खाने वाला, सबके प्रतिकुल चलने वाला तथा सदा अत्यन्त वेगशाली था। (10)
- उसकी याद आते ही मेरा हृदय कांपने लगता है। मेरे दुर्योधन आदि पुत्र बचपन में भी जब उसके साथ खेल-कूद में लड़ते थे, तब वह गजराज की भाँति इन सबको मसल देता था। (11)
- मेरे पुत्र उसके बल-पराक्रम से सदा ही कष्ट में पड़े रहते थे। भयंकर पराक्रमी भीमसेन ही इस फूट की जड़ है। (12)
- मुझे अपने सामने दीख सा रहा है कि भीमसेन युद्ध में क्रोध से मूर्च्छित हो मनुष्य, हाथी और घोड़ों की समस्त सेनाओं को काल का ग्रास बनाता जा रहा है। (13)
- वह अस्त्रविद्या में द्रोणाचार्य तथा अर्जुन के समान है, वेग में वायु की समानता करता है एवं क्रोध में महेश्वर के तुल्य है। ऐसे भीम को युद्ध में कौन मार सकता है? (13)
- संजय! मुझे अमर्ष में भरे हुए शूरवीर भीमसेन का समाचार सुनाओ। मैं तो यही सबसे बड़ा लाभ मानता हूँ कि उस शत्रुघाती मनस्वी वीर ने [1]उसी समय मेरे सब पुत्रों को नहीं मार डाला। (14)
- जिसने पूर्वकाल में भयंकर बलशाली यक्षों तथा राक्षसों का वध किया है, युद्ध में उसका वेग कोई मनुष्य कैसे सह सकेगा? (16)
- संजय! पाण्डुकुमार भीमसेन बचपन में भी कभी मेरे वश में नहीं रहा; फिर जब मेरे दुष्ट पुत्रों ने उसे बार-बार कष्ट दिया है, तब वह इस समय मेरे वश में कैसे हो सकता है? (17)
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