महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 155 श्लोक 1-24

पंचपंचाशदधिकशततम (155) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सैन्यनिर्याण पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचपंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद
दुर्योधन के द्वारा सेनाओं का विभाजन पृथक-पृथक अक्षौहिणियों के सेनापतियों का अभिषेक;
  • वैशम्पायनजी कहते हैं‌- जनमेजय! रात बीतने पर जब सवेरा हुआ, तब राजा दुर्योधन ने अपनी ग्‍यारह अक्षौहिणी सेनाओं का विभाग किया। (1)
  • राजा दुर्योधन ने पैदल, हाथी, रथ और घुड़सवार- इन सभी सेनाओं में से उत्‍तम, मध्‍यम और निकृष्ट श्रेणियों को पृथक-पृथक करके उन्‍हें यथास्‍थान नियुक्‍त कर दिया। (2)
  • वे सब वीर अनुकर्ष [1], तरकस, वरूथ[2], ऋृष्टि[3], ध्‍वजा, पताका, धनुष-बाण, तरह-तरह की रस्सियाँ, पाश, बिस्‍तर, कचग्रह-विक्षेप [4] राल का चूरा, घण्‍टफलक, खंड्गदि पाल, मोम चुपड़े हुए मुद्गर, काँटीदार लाठियाँ, हल, विष लगे हुए बाण, सूप तथा टोकरियाँ, दरात, अंकुश, तोमर, काँटेदार कवच, वसूले, और आदि, बाघ और गैंड़े के चमड़े से मढ़े हुए रथ, ऋषि, सींग, प्रास, भाँति-भाँति के आयुध, कुठार, कुदाल, तेल में भीगे हुए रेशमी वस्‍त्र तथा घी लिये हुए थे। (3-9)
  • वे सभी सैनिक सोने के जालीदार कवच धारण किये नाना प्रकार के मणिमय आभूषणों से विभूषित हो समस्‍त सेना को ही विचित्र शोभा से सम्‍पन्‍न करते हुए अपने सुन्‍दर शरीर से प्रज्‍वलित अग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे। (10)
  • इसी प्रकार जो शस्‍त्र-विद्या का निश्चित ज्ञान रखने वाले, कुलीन तथा घोड़ों की नस्‍ल को पहचानने वाले थे, वे कवचधारी शूरवीर ही सारथि के काम पर नियुक्‍त किये गये थे। (11)
  • उस सेना के रथों में अमंगल निवारण के‍ लिये यन्‍त्र और औषधियाँ बाँधी गयी थीं। वे रस्सियों से खूब कसे गये थे। उन रथों पर बँधी हुई ध्‍वज-पताकाएँ फहरा रहीं थी उनके ऊपर छोटी-छोटी घंटियाँ बँधी थीं और कंगूरे जोड़े गये थे। उन सब में ढाल-तलवार और पटि्टश आबद्ध थे। (12)
  • उन सभी रथों में चार-चार घोड़े जुते हुए थे, वे सभी घोड़े अच्‍छी जाति के थे और सम्‍पूर्ण रथों में प्रास, ऋष्टि एवं सौ-सौ धनुष रखे गये थे। (13)
  • प्रत्‍येक रथ के दो-दो घोड़ों पर एक-एक रक्षक नियुक्‍त था, एक-एक रथ के लिये दो चक्ररक्षक नियत किये गये थे। वे दोनों ही रथियों में श्रेष्‍ठ थे तथा रथी भी अश्‍व संचालन की कला में निपुण थे। सब ओर सुवर्णमालाओं से अलंकृत हजारों रथ शोभा पा रहे थे। शत्रुओं के लिये उनका भेदन करना अत्‍यन्‍त कठिन था। वे सब-के-सब नगरों की भाँति सुरक्षित थे। (14-15)
  • जिस प्रकार रथ सजाये गये थे, उसी प्रकार हाथियों को भी स्‍वर्णमालाओं से सुसज्जित किया गया था। उन सबको रस्‍सों से कसा गया था। उन पर सात-सात पुरुष बैठे हुए थे, जिससे वे हाथी रत्‍नयुक्‍त पर्वतों के समान जान पड़ते थे। (16)
  • राजन! उनमें से दो पुरुष अंकुश लेकर महावत का काम करते थे, दो उत्‍तम धनुर्धर योद्धा थे, दो पुरुष अच्‍छी तलवारें लिये रहते थे और एक पुरुष शक्ति तथा त्रिशूलधारण करता था। (17)
  • राजन! महामना दुर्योधन की वह सारी सेना ही असत्र-शस्‍त्रों के भण्‍डार से युक्‍त मदमत्त गजराजों से व्‍याप्‍त हो रही थीं। (18)
  • इसी प्रकार कवचधारी, युद्ध के लिये उद्यत, आभूषणों से विभूषित तथा पताकाधारी सवार से युक्‍त हजारों लाखों घोड़े उस सेना में मौजूद थे। (19)
  • वे घोड़े उछल-कूद मचाने आदि दोषों से रहित होने के कारण सदा अपने सवारों के वश में रहते थे। उन्‍हें अच्‍छी शिक्षा मिली थी। वे सुनहरे साजों से सुसज्जित थे। उनकी संख्‍या कई लाख थी। (20)
  • उस सेना में जो पैदल मनुष्‍य थे, वे भी सोने के हारों से अलंकृत थे। उनके रूप-रंग, कवच और अस्‍त्र-शस्‍त्र नाना प्रकार के दिखायी देते थे। (21)
  • एक-एक रथ के पीछे दस-दस हाथी, एक-एक हाथी के पीछे दस-दस घोड़े और एक-एक घोड़े के पीछे दस-दस पैदल सैनिक सब ओर पादरक्षक नियुक्‍त किये गये थे। (22)
  • एक-एक रथ के पीछे पचास-पचास हाथी, एक-एक हाथी के पीछे सौ-सौ घोड़े और एक-एक घोड़े के साथ सात-सात पैदल सैनिक इस उद्देशय से संगठित किये गये थे कि वे समूह से बिछुड़ी हुई दो सैनिक टुकड़ियों को परस्‍पर मिला दें। (23)
  • पांच सौ हा‍थियों और पांच सौ रथों की एक सेना होती है। दस सेनाओं की एक पृतना और दस पृतनाओं की एक वाहिनी होती है। (24)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रथ की मरम्‍मत के लिये उसके नीचे बँधा हुआ काष्‍ठ
  2. जिन्‍हें हाथी या घोड़े उठा सकें, ऐसे तरकस
  3. एक प्रकार की लोहे की लाठी
  4. बाल पकड़कर गिराने का यंत्र

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