चतुर्दश (14) अध्याय: भीष्म पर्व (श्रीमद्भगवतद्गीता पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
धृतराष्ट्र का विलाप करते हुए भीष्म जी के मारे जाने की घटना को विस्तारपूर्वक जानने के लिये संजय से प्रश्न करना धृतराष्ट्र बोले- संजय! कुरुकुल के श्रेष्ठतम पुरुष मेरे पितृतुल्य भीष्म शिखण्डी के हाथ से कैसे मारे गये? वे इन्द्र के समान पराक्रमी थे, वे रथ से कैसे गिरे? संजय! जिन्होंने अपने पिता के संतोष के लिये आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और जो देवताओं के समान बलवान् थे, उन्हीं भीष्म से रहित होकर आज हमारे सैनिकों की कैसी अवस्था हुई है? यह बताओ महाज्ञानी, महाधनुर्धर, महाबली ओर महान् धैर्यशाली नरश्रेष्ठ भीष्मजी के मारे जाने पर तुम्हारे मन की कैसी अवस्था हुई? संजय! तुम कहते हो, अकम्प्य वीर पुरुषसिंह, कुरुकुलशिरोमणि भीष्मजी मारे गये- इसे सुनकर मेरे हृदय में बड़ी पीड़ा हो रही हैं। संजय! जिस समय वे युद्ध के लिये अग्रसर हुए थे, उस समय इनके पीछे कौन गये थे अथवा उनके आगे कौन-कौन वीर थे? कोन उनके साथ यूद्ध में डटे रहे? कौन युद्ध छोड़कर भाग गये? और किन लोगों ने सर्वथा उनका अनुसरण किया था? किन शूरवीर ने शत्रुसेना में प्रवेश करते समय रथियों में सिंह के समान अद्भुत पराक्रमी क्षत्रियशिरोमणि भीष्म जी के पास सहसा पहुँचकर सदा उनके पृष्ठभाग का अनुसरण किया? जैसे सूर्य अन्धकार को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार शत्रुसूदन भीष्म शत्रुसेना का नाश करते थे। जिनका तेज सहस्र किरणों वाले सूर्य के समान था, जिन्होंने शत्रुओं को भयभीत कर रखा था। जिन्होंने युद्ध में पाण्डवों पर दुष्कर पराक्रम किया था तथा जो उनकी सेना का निरन्तर संहार कर रहे थे, उन अस्त्रविद्या के ज्ञाता दुर्जय वीर भीष्म जी को जिन्होंने रोका हैं, वे कौन है? संजय! तुम तो उनके पास ही थे, पाण्डवों ने युद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्म को किस प्रकार आगे बढ़ने से रोका? जो शत्रुपक्ष की सेनाओं का निरन्तर उच्छेद करते थे, बाण ही जिनकी दाढे़ थीं, धनुष ही खुला मुख था, तलवार ही जिनकी जिह्वा थी, उन भयकर एवं दुर्धर्ष पुरुषसिंह भीष्म को कुन्तीनन्दन अर्जुन ने युद्ध में कैसे मार गिराया? मनस्वी भीष्म इस प्रकार पराजय के योग्य नहीं थे। वे लज्जाशील और पराजयशून्य थे। जो उत्तम रथ पर बैठकर भयंकर धनुष और भयानक बाण लिये शत्रुओं के मस्तकों को सायकों द्वारा काट-काटकर उनके ढेर लगा रहे थे। पाण्डवों की विशाल सेना दुर्धर्ष कालाग्नि के समान जिन्हें युद्ध के लिये उद्यम देख सदा कांपने लगती थी। वे ही शत्रुसूदन भीष्म दस दिनों तक शत्रुओं की सेना का संहार करते हुए अत्यन्त दुष्कर पराक्रम दिखाकर सूर्य की भाँति अस्त हो गये। जिन्होंने इन्द्र के समान युद्ध में दस दिनों तक अक्षय बाणों की वर्षा करके इस करोड़ विपक्षी सेनाओं का संहार कर डाला, वे ही भरतवंशी वीर भीष्म मेरी कुमन्त्रणा के कारण आंधी से उखाडे़ गये वृक्ष की भाँति युद्ध में मारे जाकर पृथ्वी पर शयन कर रहे हैं, वे कदापि इसके योग्य नहीं थे। शान्तनुनन्दन भीष्म तो बड़े भयंकर पराक्रमी थे, उन्हें सामने देखकर पाण्डव सेना उन पर प्रहार कैसे कर सकी? संजय! पाण्डवों ने भीष्म के साथ संग्राम कैसे किया? द्रोणाचार्य के जीते-जी भीष्म विजयी कैसे नहीं हो सके? उस युद्ध में कृपाचार्य तथा भरद्वाजपुत्र द्रोणाचार्य दोनों ही उनके निकट थे, तो भी योद्धाओं में श्रेष्ठ भीष्म कैसे मारे गये? भीष्म तो युद्ध में देवताओं के लिये भी दुर्जय एवं अतिरथी थे, फिर पाञ्चालराजकुमार शिखण्डी के हाथ से वे किस प्रकार मारे गये? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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