महाभारत विराट पर्व अध्याय 64 श्लोक 1-13

चतुःषष्टितम (64) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: चतुःषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध तथा मूर्च्छित भीष्म का सारथि द्वारा रण भूमि से हटाया जाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर भरतवंश के सुप्रसिद्ध वीर शान्तनु नन्दन पितामह भीष्म अपने पक्ष के योद्धाओं का संहार होते देख अर्जुन की ओर दौड़े। उन्होंने हाथ में सुवर्ण भूषित श्रेष्ठ धनुष और शत्रुओं को मथ डालने वाले तीखे एवं मर्मभेदी बाण ले रक्खे थे। उनके मस्तक पर श्वेत छत्र तना हुआ था, जिससे वे नररेष्ठ भीष्म सूयोदय काल में उदयाचल की भाँति सुशोभित हो रहे थे। गंगा नन्दन भीष्म ने शंख बजाकर धृतराष्ट्र के पुत्रों का हर्ष बढ़ाया और दाहिनी ओर मुड़कर अर्जुन को आगे बढ़ने से रोका। शत्रुवीरों का हनन करने वाले कुन्ती कुमार धनंजय ने भीष्म को आते देख प्रसन्नचित्त होकर उनका सामना किया; ठीक उसी तरह, जैसे पर्वत अविचल भाव से खड़ा हो जल बरसाने वाले मेघ का आघात सहन करता है। तब पराक्रमी भीष्म ने पार्थ की ध्वजा पर फुफकारते हुए सर्पों के समान अत्यन्त वेगशाली आठ बाण मारे। उन बाणों ने पाण्डु नन्दन अर्जुन की ध्वजा के समीप पहुँच कर वहाँ बैठे हुए तेजस्वी वानर को तथा ध्वजा के अग्र भाग में निवास करने वाले अन्य भूतों को भी गहरी चोट पहुँचायी। तब पाण्डु कुमार ने मोटी धार वाले विशाल भल्ल के द्वारा भीष्म का छत्र काट दिया, जिससे वह तुरंत ही पृथ्वी पर गिर पड़ा। फिर कुन्ती नन्दन ने शीघ्रता करते हुए उनकी ध्वजा को भी अपने बाणों से छेद डाला और रथ के घोड़ों, पाश्र्वरक्षकों तथा सारथि को भी बहुत घायल कर दिया।

भीष्म जी अपने सैनिकों पर किये गये अर्जुन के उस पराक्रम को सह न सके। वे यह जानते हुए भी कि से पाण्डु पुत्र धनंजय हैं, महान दिव्यास्त्र द्वारा उन पर बाणों की वर्षा करने लगे। परंतु असीम आत्मबल से सम्पन्न पाण्डु पुत्र अर्जुन जैसे पर्वत महामेघ का सामना करता है, उसी प्रकार भीष्म पर दिव्यास्त्रों का प्रयोग करते हुए उनका सामना करने लगे।। उन दोनों का यह तुमुल युद्ध रोंगटे खड़े कर देने वाला था। पार्थ के साथ भीष्म का वह संग्राम बलि और इन्द्र के युद्ध के समान था। समस्त कौरव योद्धा अपने सैनिकों के साथ खड़े खड़े तमाशा देखने लगे। रण भूमि में भीष्म और पाण्डु कुमार के भल्ल ऐ दूसरे से टकराकर वर्षा काल के आकाश में जुगनुओं की भाँति चमक उठते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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