महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 73 श्लोक 1-21

त्रिसप्ततितम (73) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


भीष्‍म और द्रोण के पराक्रम का वर्णन करते हुए अर्जुन के बल की प्रशंसा करके श्रीकृष्‍ण का कर्ण और दुर्योधन के अन्‍याय की याद दिलाकर अर्जुन को कर्णवध के लिये उत्तेजित करना


संजय कहते हैं- भरतनन्दन! तदनन्तर कर्ण का वध करने के लिये कृतसंकल्‍प होकर जाते हुए अर्जुन से अप्रमेयस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने पुन: इस प्रकार कहा- भारत! मनुष्‍यों, हाथियों और घोड़ों का जो यह‍ अत्यन्त भयंकर विनाश चल रहा है, इसे आज सत्रह दिन हो गये। प्रजानाथ! शत्रुओं के साथ-साथ तुम लोगों के पास भी विशाल सेना जुट गयी थी; परंतु परस्पर युद्ध करके प्राय: नष्ट हो गयी, अब थोड़ी सी ही शेष रह गयी है। पार्थ! कौरव पक्ष के योद्धा बहुसंख्‍यक हाथी घोड़ों से सम्पन्न थे, परंतु तुम जैसे वीर शत्रु को पाकर युद्ध के मुहाने पर नष्ट हो गये। तुम शत्रुओं के लिये दुर्जय हो, तुम्हारे ही आश्रय में रह कर ये तुम्हारे पक्ष के भूमिपाल सृंजय और पाण्डव योद्धा युद्धस्थल में डटे हुए हैं। तुमसे सुरक्षित हुए इन पाण्डव, पांचाल, मत्स्य, करुष तथा चेदिदेशीय शत्रुनाशक वीरों ने शत्रु समूहों का संहार कर डाला है।

तात! तुम्हारे द्वारा सुरक्षित पाण्डव महारथियों को छोड़कर दूसरा कौन नरेश युद्ध में कौरवों को परास्त कर सकता है। तुम तो युद्ध के लिये तैयार होकर आये हुए देवता, असुर और मनुष्‍यों सहित तीनों लोकों को समरभूमि में जीत सकते हो, फिर कौरव सेना की तो बात ही क्‍या है? पुरुषसिंह! कोई इन्द्र के समान भी पराक्रमी क्‍यों न हो, तुम्हारे सिवा दूसरा कौन वीर राजा भगदत्त को जीत सकता था? निष्‍पाप कुन्तीकुमार! तुम जिसकी रक्षा करते हो, उस विशाल सेना की ओर सारे राजा आँख उठाकर देख भी नहीं सके हैं। पार्थ! इसी प्रकार रणक्षेत्र में सदा तुमसे सुरक्षित रहकर ही धृष्टद्युम्न और शिखण्डी ने द्रोणाचार्य और भीष्म को मार गिराया है। कुन्तीनन्दन! भरतवंशियों की सेना के दो महारथी इन्द्रतुल्‍य पराक्रमी भीष्‍म और द्रोण को रणभूमि में युद्ध करते समय कौन जीत सकता था। नरव्याघ्र! अक्षौहिणी सेना के अधिपति:, वीर, अस्त्रवेत्ता, भयंकर पराक्रमी, संगठित, रणोन्मत्त तथा कभी पीछे न हटने वाले भीष्‍म, द्रोण, कृपाचार्य, वैंकर्तन कर्ण, अश्वत्थामा, भूरिश्रवा, कृतवर्मा, जयद्रथ, शल्य तथा राजा दुर्योधन जैसे समस्त महारथियों पर इस जगत में तुम्हारे सिवा, दूसरा कौन पुरुष विजय पा सकता है?

अमर्षशील क्षत्रियों के बहुत से दल थे, जो बड़े भयंकर और अनेक जनपदों के निवासी थे, वे सब के सब नष्ट हो गये, उनके घोड़े, रथ और हाथी भी धूल में मिल गये। भारत! गोवास, दासमीय, वसाति, प्राच्य, वाटधान और भोजदेश के निवासी अभिमानी वीरों की तथा सम्पूर्ण क्षत्रियों की सेना, जिसमें उद्दण्ड घोड़ों और उन्मत्त हाथियों की संख्‍या अधिक थी, तुम्हारे और भीमसेन के पास पहुँचकर नष्ट हो गयी। उग्र स्वभाव, भीषण पराक्रमी एवं भयंकर कर्म करने वाले तुषार, यवन, खश, दार्वाभिसार, दरद, शक, माठर, तंगण, आन्ध्र, पुलिंद, किरात, म्लेच्छ, पर्वतीय तथा समुद्रतटवर्ती योद्धा, जो युद्धकुशल, रोषावेश से युक्त, बलवान एवं हाथों में डंडे लिये हुए है, क्रोध में भरकर कौरव सैनिकों के साथ दुर्योधन की सहायता के लिये आये हैं; शत्रुओं को संताप देने वाले वीर! तुम्हारे सिवा दूसरा कोई इन्हें नहीं जीत सकता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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