महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 12 श्लोक 1-21

द्वादश (12) अध्याय: भीष्म पर्व (भूमि पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

कुश, क्रौञ्च और पुष्‍कर आदि द्वीपों का तथा राहु, सूर्य एवं चन्द्रमा के प्रमाण का वर्णन

संजय बोले- महाराज! कुरुनन्दन! इसके बाद वाले द्वीपों के विषय में जो बातें सुनी जाती हैं, वे इस प्रकार हैं; उन्हें आप मुझसे सुनिये। क्षीरोद समुद्र के बाद घृतोद समुद्र है। फिर दधिमण्‍डोदक समुद्र है। इनके बाद सुरोद समुद्र है, फिर मीठे पानी का सागर है। महाराज! इन समुद्रों से घिरे हुए सभी द्वीप और पर्वत उत्तरोत्तर दुगुने विस्तार वाले हैं। नरेश्‍वर! इनमें से मध्‍यम द्वीप में मन:शिला (मैनसिल) का एक बहुत बड़ा पर्वत है; जो ‘गौर’ नाम से विख्‍यात है। उसके पश्चिम में ‘कृष्‍ण’ पर्वत है, जो नारायण को विशेष प्रिय है। स्वयं भगवान् केशव ही वहाँ दिव्य रत्नों को रखते और उनकी रक्षा करते हैं। वे वहाँ की प्रजा पर प्रसन्न हुए थे, इसलिये उनको सुख पहुँचाने की व्यवस्था उन्होंने स्वयं की है। नरेश्‍वर! कुशद्वीप में कुशों का एक बहुत बड़ा झाड़ है, जिसकी वहाँ के जनपदों में रहने वाले लोग पूजा करते हैं। उसी प्रकार शाल्मलि द्वीप में शाल्मलि (सेंमर) वृक्ष की पूजा की जाती है। क्रौञ्चद्वीप में महाक्रौञ्च नामक महान् पर्वत है, जो रत्न राशि की खान है।

महाराज! वहाँ चारों वर्णों के लोग सदा उसी की पूजा करते हैं। राजन्! वहाँ गोमन्त नामक विशाल पर्वत है, जो सम्पूर्ण धातुओं से सम्पन्न है। वहाँ मोक्ष की इच्छा रखने वाले उपासकों के मुख से अपनी स्तुति सुनते हुए सबके स्वामी श्रीमान् कमलनयन भगवान् नारायण नित्य निवास करते हैं। राजेन्द्र! कुशद्वीप में सुधामा नाम से प्रसिद्ध दूसरा सुवर्णमय पर्वत हैं, जो मूंगों से भरा हुआ ओर दुर्गम है। कौरव्य! वहीं परम कान्तिमान् कुमुद नामक तीसरा पर्वत है। चौथा पुष्‍पवान्, पांचवां कुशेशय और छठा हरिगिरि है। ये छ: कुशद्वीप के श्रेष्‍ठ पर्वत हैं। इन पर्वतों के बीच का विस्तार सब ओर से उत्तरोत्तर दूना होता गया है। कुशद्वीप के पहले वर्ष का नाम उद्भिद् है। दूसरे का नाम वेणमण्‍डल हैं। तीसरे का नाम सुरथाकार, चौथे का कम्बल, पांचवे का धृतिमान् और छठे वर्ष का नाम प्रभाकर है। सांतवां वर्ष कपिल कहलाता है। ये सात वर्ष समुदाय है।

पृथ्‍वीपते! इन सबमें देवता, गन्धर्व तथा मनुष्‍य सानन्द बिहार करते हैं। उनमें से किसी की मृत्यु नहीं होती है। नरेश्‍वर! वहाँ लुटेरे अथवा म्लेच्छ जाति के लोग नहीं है। मनुजेश्‍वर! इन वर्षों के सभी लोग प्राय: गोरे और सुकुमार होते हैं। अब मैं शेष सम्पूर्ण द्वीपों के विषय में बताता हूँ। महाराज! मैंने जैसा सुन रखा है, वैसा ही सुनाऊंगा। आप शान्तचित्त होकर सुनिये। क्रौञ्चद्वीप में क्रौञ्च नामक विशाल पर्वत है। राजन्! क्रौञ्च के बाद वामन पर्वत है, वामन के बाद अन्धकार और अन्धकार के बाद मैनाक नामक श्रेष्‍ठ पर्वत है। प्रभो! मैनाक के बाद उत्तम गोविन्द गि‍रि है। गोविन्द के बाद निबिड नामक पर्वत है। कुरुवंश की वृद्धि करने वाले महाराज! इन पर्वतों के बीच का विस्तार उत्तरोत्तर दूना होता गया है। उनमें जो देश बसे हुए हैं, उनका परिचय देता हूं; सुनिये। क्रौञ्चपर्वत के नि‍कट कुशल नामक देश है। वामन पर्वत के पास मनोनुग देश है। कुरुकुलश्रेष्ठ! मनोनुग के बाद उष्‍ण देश आता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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