महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 110 श्लोक 1-21

दशाधिकशततम (110) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवादक


द्रोणाचार्य और सात्‍यकि का युद्ध तथा युधिष्ठिर का सात्‍यकि कि प्रशंसा करते हुए उसे अर्जुन की सहायता के लिये कौरव सेना में प्रवेश करने का आदेश


धृतराष्‍ट्र ने पूछा- संजय! सात्‍यकि ने युद्ध में द्रोणाचार्य को किस प्रकार रोका ? यह यर्थाथ रूप से बताओ। इसे सुनने के लिये मेरे मन में महान कौतूहल हो रहा है। संजय ने कहा-राजन! महामती! द्रोणाचार्य का सात्‍यकि आदि पाण्‍डव-योद्धाओं के साथ जो रोमांञ्चकारी संग्राम हुआ था, उसका वर्णन सुनिये। माननीय नरेश! द्रोणाचार्य ने जब अपनी सेना को युयुधान के द्वारा पीड़ित होते देखा, तब वे सत्‍यपराक्रमी सात्‍यकि पर स्‍वंय ही टूट पड़े। उस समय सहसा आते हुए महारथी द्रोणाचार्य को सात्‍यकि ने पच्चीस बाण मारे। तब पराक्रमी द्रोणाचार्य ने भी युद्धस्‍थल में एकाग्रचित्त हो तुरंत ही सोने के पंखवाले पांच पैने बाणों द्वारा युयुधान-को घायल कर दिया। राजन! द्रोणाचार्य के बाण शत्रुओं के मांस खाने वाले थे। सात्‍यकि के सुद्दढ़ कवच को छिन्‍न–भिन्‍न करके फुफकारते हुए सर्पों के समान धरती में समा गये। तब अंकुश की मार खाये हुए गजराज के समान अत्‍यन्‍त कुपित हुए महाबाहु सात्‍यकि ने अग्नि के समान तेजस्‍वी पचास नाराचों द्वारा द्रोणाचार्य को वेध दिया। सात्‍यकि के द्वारा समरांगण में घायल हो द्रोणाचार्य ने शीघ्र ही बहुत से बाण मारकर विजय के लिये प्रस्‍थान करने वाले सात्‍यकि को क्षत-विक्षत कर दिया। तदनन्‍तर महाधनुर्धर महाबली द्रोण ने पुन: कुपित होकर झुकी हुई गांठवाले एक बाण द्वारा सात्‍यकि को गहरी चोट पहुचायी। प्रजानाथ! समरभूमि में द्रोणाचार्य के द्वारा क्षत-विक्षत होकर सात्‍यकि से कुछ भी करते नहीं बना। नरेश्‍वर! रणक्षेत्र में पैने बाणों की वर्षा करते हुए द्रोणाचार्य को देखकर युयुधान के मुख पर विषाद छा गया। प्रजापालक नरेश! उन्‍हें उस अवस्‍था में देखकर आपके पुत्र और सैनिक प्रसन्‍नचित होकर बांरबार सिंहनाद करने लगे।

भारत! उनकी यह घोर गर्जना सुनकर और सात्‍यकि को पीड़ित देख कर राजा युधिष्ठिर ने अपने समस्‍त सैनिक से कहा-। ‘योद्धाओं! जैसे राहु सूर्य को ग्रस लेता है, उसी प्रकार वह वृष्णिवंश का श्रेष्‍ठ और सत्‍यपराक्रमी सात्‍यकि युद्धस्‍थल में वीर द्रोणाचार्य के द्वारा काल के गाल मे जाना चाहता है। अत: तुम लोग दौड़ो और वहीं जाओ; जहाँ सात्‍यकि युद्ध करता है’। इसके बाद राजा ने पाञ्चाल-राजकुमार धृष्‍टद्युम्‍न से इस प्रकार कहा-‘द्रुपदनन्‍दन! खड़े क्‍यों हो! तुरंत ही द्रोणाचार्य पर धावा करो। क्‍या तुम नहीं देखते कि द्रोण की ओर से हम लोगों पर घोर भय उपस्थित हो गया है?। ‘जैसे कोई बालक डोर में बैठे हुए पक्षी के साथ खेलता है, उसी प्रकार ये महाधनुर्धर द्रोण युद्धस्‍थल में युयुधान के साथ क्रीड़ा करते हैं। ‘अत: तुम्‍हारे साथ भीमसेन आदि सभी महारथी वहीं युयुधान के रथ के समीप जायं। ‘फिर मैं भी सम्‍पूर्ण सैनिकों के साथ तुम्‍हारे पीछे-पीछे आऊँगा। इस समय यमराज को दाढ़ों में पहुँचे हुए सात्‍यकि को छुडाओं ‘। भारत! ऐसा कहकर राजा युधिष्ठिर ने उस समय रणक्षेत्र में युयुधान की रक्षा के लिये अपनी सारी सेना के साथ द्रोणाचार्य पर आक्रमण किया। राजन! आपका भला हो। अकेले द्रोणाचार्य के साथ युद्ध करने की इच्‍छा से आये हुए पाण्‍डवों और सृंजयों का वहाँ सब ओर महान कोलाहल छा गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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