दशाधिकशततम (110) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोण पर्व: दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवादक
भारत! उनकी यह घोर गर्जना सुनकर और सात्यकि को पीड़ित देख कर राजा युधिष्ठिर ने अपने समस्त सैनिक से कहा-। ‘योद्धाओं! जैसे राहु सूर्य को ग्रस लेता है, उसी प्रकार वह वृष्णिवंश का श्रेष्ठ और सत्यपराक्रमी सात्यकि युद्धस्थल में वीर द्रोणाचार्य के द्वारा काल के गाल मे जाना चाहता है। अत: तुम लोग दौड़ो और वहीं जाओ; जहाँ सात्यकि युद्ध करता है’। इसके बाद राजा ने पाञ्चाल-राजकुमार धृष्टद्युम्न से इस प्रकार कहा-‘द्रुपदनन्दन! खड़े क्यों हो! तुरंत ही द्रोणाचार्य पर धावा करो। क्या तुम नहीं देखते कि द्रोण की ओर से हम लोगों पर घोर भय उपस्थित हो गया है?। ‘जैसे कोई बालक डोर में बैठे हुए पक्षी के साथ खेलता है, उसी प्रकार ये महाधनुर्धर द्रोण युद्धस्थल में युयुधान के साथ क्रीड़ा करते हैं। ‘अत: तुम्हारे साथ भीमसेन आदि सभी महारथी वहीं युयुधान के रथ के समीप जायं। ‘फिर मैं भी सम्पूर्ण सैनिकों के साथ तुम्हारे पीछे-पीछे आऊँगा। इस समय यमराज को दाढ़ों में पहुँचे हुए सात्यकि को छुडाओं ‘। भारत! ऐसा कहकर राजा युधिष्ठिर ने उस समय रणक्षेत्र में युयुधान की रक्षा के लिये अपनी सारी सेना के साथ द्रोणाचार्य पर आक्रमण किया। राजन! आपका भला हो। अकेले द्रोणाचार्य के साथ युद्ध करने की इच्छा से आये हुए पाण्डवों और सृंजयों का वहाँ सब ओर महान कोलाहल छा गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज