महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 83 श्लोक 1-20

त्र्यशीतितम (83) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

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महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


दक्षिण और पश्‍चिम समुद्र तटवर्ती देशों में होते हुए अश्‍व का द्वारका, पंचनद एवं गान्‍धार देश में प्रवेश

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! मगधराज से पूजित हो पाण्‍डुपुत्र श्‍वेतवाहन अर्जुन ने दक्षिण दिशा का आश्रय ले उस घोड़े को घुमाना आरम्‍भ किया। वह इच्‍छानुसार विचरने वाला अश्‍व पुन: उधर से लौटकर चेदियों की रमणीय राजधानी में जो शुक्‍तिपुरी (या माहिष्‍मतीपुरी)- के नाम से विख्‍यात थी, आया। वहाँ शिशुपाल के पुत्र शरभ ने पहले तो युद्ध किया और फिर स्‍वागत-सत्‍कार के द्वारा उस महाबली अश्‍व का पूजन किया। राजन! शरभ से पूजित हो वह उत्तम अश्‍व काशी, कोसल, किरात और तंगण आदि जनपदों में गया। उन सभी राज्‍यों में यथोचित पूजा ग्रहण करके कुन्‍तीनन्‍दन अर्जुन पुन: लौटकर दशार्ण देश में आये। वहाँ उस समय महाबली शत्रुमर्दन चित्रांगद नामक नरेश राज्‍य करते थे। उनके साथ अर्जुन का बडा भयंकर युद्ध हुआ। पुरुषप्रवर किरीटधारी अर्जुन दशार्णराज चित्रांगद को भी वश में करके निषादराज एकलव्य के राज्‍य में गये।

वहाँ एकलव्‍य के पुत्र ने युद्ध के द्वारा उनका स्‍वागत किया। अर्जुन ने निषादों के साथ रोमांचकारी संग्राम किया। युद्ध में किसी से परास्‍त न होने वाले दुर्धुर्ष वीर पार्थ ने यज्ञ में विघ्न डालने के लिये आये हुए एकलव्‍यकुमार को भी परास्‍त कर दिया। महाराज! एकलव्‍य के पुत्र को पराजित करके उसके द्वारा पूजित हुए इन्‍द्रकुमार अर्जुन फिर दक्षिण समुद्र तट पर गये। वहाँ भी द्रविड़, आन्‍ध्र, रौद्र, माहिषक और कोलाचल के प्रान्‍तों में रहने वाले वीरों के साथ किरीटधारी अर्जुन का खूब युद्ध हुआ। उन सबको मृदुल पराक्रम से ही जीतकर वे घोड़े की इच्‍छानुसार उसके पीछे चलने में विवश हुए सौराष्ट्र, गोकर्ण और प्रभास क्षेत्रों में गये।

तत्‍पश्‍चात कुरुराज युधिष्‍ठिर का वह यज्ञ सम्‍बन्‍धी कान्‍तिमान अश्‍व वृष्‍णि वीरों द्वारा सुरक्षित द्वारकापुरी में जा पहुँचा। राजन! वहाँ यदुवंशी वीरों के बालकों ने उस उत्तम अश्‍व को बलपूर्वक पकड़कर युद्ध के लिये उद्योग किया; पंरतु महाराज उग्रसेन ने उन्‍हें रोक दिया। तदनन्‍तर अर्जुन के मामा वसुदेव को साथ ले वृष्‍णि और अन्‍धक कुल के राजा उग्रसेन नगर से बाहर निकले। वे दोनों बड़ी प्रसन्‍नता के साथ कुरुश्रेष्‍ठ अर्जुन से विधिपूर्वक मिले। उन्‍होंने भरतकुल के उस श्रेष्‍ठ वीर का बड़ा आदर सत्‍कार किया। फिर उन दोनों की आज्ञा ले अर्जुन उसी ओर चल दिये, जिधर वह अश्‍व गया था। वहाँ से पश्‍चिम समुद्र के तटवर्ती देशों में विचरता हुआ वह घोड़ा क्रमश: आगे बढ़ने लगा और समृद्धिशाली पंचनद प्रदेश में जा पहुँचा। कुरुनन्‍दन! वहाँ से भी वह घोड़ा गान्‍धार देश मे जाकर इच्‍छानुसार विचरने लगा। कुन्‍तीनन्‍दन अर्जुन भी उसके पीछे-पीछे वहीं जा पहुँचे। फिर तो पूर्व वैर का अनुसरण करने वाले गान्‍धारराज शकुनि पुत्र के साथ किरीटधारी अर्जुन का घोर युद्ध हुआ।


इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्‍तर्गत अनुगीता पर्व में यज्ञ सम्‍बन्‍धी अश्व का अनुसरण विषयक तिरासीवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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