द्वादश (12) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
शत्रुओं द्वारा मारे गये वीर हाथी, रथ और घोड़ों से उसी प्रकार गिर रहे थे, जैसे स्वर्गवासी जीव पुण्य क्षीण होने पर वहाँ के वमानों से नीचे गिर पड़ते हैं। अन्य सैंकड़ों वीर बड़े-बड़े वीरों द्वारा भारी गदाओं, परिघों और मूसलों से कुचले जाकर रणभूमि में गिर रहे थे। उस भारी घमासान युद्ध में रथों ने रथों को मथ डाला, मतवाले हाथियों ने मदमत्त गजराजों को धराशायी कर दिया और घुड़सवारों ने घुड़सवारों को कुचल डाला। रथियों द्वारा मारे गये पैदल मनुष्य, हाथियों द्वारा कुचले गये रथ और रथी, पैदलों द्वारा मारे गये घुड़सवार और घुड़सवारों द्वारा काल के गाल में भेजे गये पैदल सिपाही उस युद्ध भूमि में सो रहे थे। गजों और गजारोहियों ने रथियों, घुड़सवारों और पैदलों को मार गिराया, पैदलों ने रथियों, घुड़सवारों और हाथी सवारों को धराशायी कर दिया, घुड़सवारों ने रथियों, पैदलों और गजारोहियों को मार डाला तथा रथियों ने भी पैदल मनुष्यों और गजारोहियों को मार गिराया। पैदल, घुड़सवार, हाथी सवार तथा रथियों ने रथियों, घुड़सवारों, हाथी सवारों और पैदलों का हाथों, पैरों, अस्त्र-शस्त्रों एवं रथों द्वारा महान संहार कर डाला। इस प्रकार जब शूरवीरों द्वारा वह सेना मारी जाने लगी और मारी गयी, तब कुन्ती के पुत्रों ने भीमसेन को आगे रखकर हम लोगों पर आक्रमण किया। धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, द्रौपदी के पुत्र, प्रभद्रक, सात्यकि, चेकितान, द्राविड़ से सैनिकों सहित महान व्यूह से घिरे हुए पाण्ड्य, चोल तथा केरल योद्धाओं ने धावा किया। इन सबकी छाती चौड़ी और भुजाएँ तथा आँखें बड़ी थीं। वे सब के सब ऊँचे कद के थे। उन्होंने भाँति-भाँति के शिरोभूषण एवं हार धारण किये थे। उनके दाँत लाल थे और वे मतवाले हाथी के समान पराक्रमी थे। उन्होंने अनेक प्रकार के रंगीन वस्त्र पहन रखे थे और अपने अंगों में सुगंधित चूर्ण लगा रखा था। उनकी कमर में तलवार बँधी थी, वे हाथ में पाश लिये हुए थे और हाथियों को भी रोक देने की शक्ति रखते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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