महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 4 श्लोक 1-26

चतुर्थ (4) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

Prev.png

महाभारत: उद्योग पर्व: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 1- 26 का हिन्दी अनुवाद

राजा द्रुपद की सम्मति

(सात्यकि की बात सुनकर) द्रुपद ने कहा- महावाहो! तुम्हारा कहना ठीक है। इसमें संदेह नहीं कि ऐसा ही होगा; क्योंकि दुर्योधन मधुर व्यवहार से राज्य नहीं देगा। अपने उस पुत्र के प्रति आसक्त रहने वाले धृतराष्ट्र भी उसी का अनुसरण करेंगे| भीष्म और द्रोणाचार्य दीनतावश तथा कर्ण और शकुनि मूर्खतावश दुर्योधन का साथ देंगे। बलदेव जी का कथन मेरी समझ में ठीक नहीं जान पड़ता। मैं जो कुछ कहने जा रहा हूँ, वही सुनीति की इच्छा रखने वाले पुरुष को सबसे पहले करना चाहिए। धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन से मधुर अथवा नम्रतापूर्ण वचन कहना किसी प्रकार उचित नहीं है। मेरा ऐसा मत है कि वह पापपूर्ण विचार रखनेवाला है, अतः मृदु व्यवहार से वश में आने वाला नहीं है।

जो पापात्मा दुर्योधन के प्रति मृदु वचन बोलेगा, वह मानो गदहे के प्रति कोमलतापूर्ण व्यवहार करेगा और गायों के प्रति कठोर बर्ताव। पापी एवं मूर्ख मनुष्य मृदु बचन बोलने वाले को शक्तिहीन समझता है और कोमलता का बर्ताव करने पर यह मानने लगता है कि मैंने इसके धन पर विजय पा ली। ( हम आपके सामने जो प्रस्ताव ला रहे है; ) इसी को सम्पन्न करेंगे और इसी के लिये यहाँ प्रयत्न किया जाना चाहिये। हमें अपने मित्रों के पास यह संदेश भेजना चाहिये कि वे हमारे लिये सैन्य संग्रह का उद्योग करें। भगवान! हमारे शीघ्रगामी दूत शल्य, धृष्टकेतु, जयत्सेन और समस्त केकय राजकुमारों के पास जायँ। निश्चय हृी दुर्योधन भी सबके यहाँ संदेश भेजेगा। श्रेष्ठ राजा जब किसी के द्वारा पहले सहयता कि लिये निमन्त्रित हो जाते है; तब प्रथम निमन्त्रण देने वाले की ही सहायता करते हैं।अतः सभी राजाओं के पास पहले ही अपना निमन्त्रण पहुँच जाय; इसके लिए शीघ्रता करो। मैं समझता हूँ, हम सब लोगों को महान कार्य का भार वहन करना है।

राजा शल्य तथा उसके अनुगामी नेरेशों के पास शीघ्र दूत भेजे जायँ। पूर्व समुद्र के तटवर्ती राजा भगदत्त के पास भी दूत भेजना चाहिये। भगवन! इसी प्रकार अमितौजा, उग्र, हार्दिक्य (कृतवर्मा), अन्धक, दीर्घप्रज्ञ तथा शूरवीर रोचमान के पास भी दूतों को भेजना आवश्यक है। बृहन्त को भी बुलाया जाय। राजा सेनाबिन्दु , सेनजित, प्रतिविन्ध्य, चित्रवर्मा, सुवास्तुक, बाह्रीक, मुञ्ज्केश, चैद्यराज, सुपार्श्व, सुबाहु, महारथी पौरव, शकनरेश, पह्रवराज तथा दूरददेश के नरेश भी निमन्त्रित किये जाने चाहिये। सुरारि, नदीज, भूपाल कर्णवेष्ट, नील, वीरधर्मा , पराक्रमी भूमिपाल, दुर्जय दन्तवक्त्र, रुक्मी, जनमेजय, आषाढ, वायुवेग, राजा पूर्वपाली, भूरितेजा, देवक, पुत्रों सहित एकलव्य, करूष-देश के बहुत से नरेश, पराक्रमी क्षेमधूर्ति काम्बोजनरेश, ऋषिकदेश के राजा, पश्चिम द्वीपवासी नरेश, जयत्सेन, काश्य, पञ्चनद प्रदेश के राजा, दुर्धर्ष क्राथपुत्र, पर्वतीय नरेश, राजा जनक के पुत्र, सुशर्मा, मणिमान, योतिमत्सक, पाशुराज्य के अधिपति, पराक्रमी धृष्टकेतु, तुण्ड, दण्डधार, वीर्यशाली बृहत्सेन, अपराजित, निषादराज, श्रेणिमान, वासुमान, बृहद्वल, महौजा, शत्रुनगरी पर विजय पाने वाले बाहु, पुत्रसहित पराक्रमी राजा समुद्रसेन, उद्भव, क्षेमक, राजा वाटधान, श्रुतायु, दृढ़ायु, पराक्रमी शाल्वपुत्र, कुमार तथा युद्धदुर्मद कलिंगराज- इन सब के पास शीघ्र ही रण-निमन्त्रण भेजा जाय; मुझे यही ठीक जान पड़ता है। मत्स्यराज! ये मेरे पुरोहित विद्वान् ब्राह्मण हैं, इन्हें धृतराष्ट्र के पास भेजिये और वहाँ के लिए उचित संदेश दीजिये। दुर्योधन से क्या कहना है? शान्तनुनन्दन भीष्म जी से किस प्रकार बातचीत करनी है? धृतराष्ट्र को क्या संदेश देना है? तथा रथियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य से किस प्रकार वार्तालाप करना है? यह सब उन्हें समझा दिजिये।

इस प्रकार श्री महाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत सेनोद्योग पर्व द्रुपदवाकयविषयक चौथा अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः