महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 16 श्लोक 1-18

षोडश (16) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

Prev.png

महाभारत: द्रोण पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
वृषसेन का पराक्रम, कौरव-पाण्‍डव वीरों का तुमुल युद्ध, द्रोणाचार्य के द्वारा पाण्‍डवपक्ष के अनेक वीरों का वध तथा अर्जुन की विजय
  • संजय कहते हैं- महाराज! आपकी विशाल सेना को तितर-बितर हुई देख एकमात्र पराक्रमी वृषसेन ने अपने अस्‍त्रों की माया से रणक्षेत्र में उसे धारण किया[1]। (1)
  • उस युद्धस्‍थल में वृषसेन के छोड़े हुए बाण हाथी, घोड़े, रथ और मनुष्‍यों को विदीर्ण करते हुए दसों दिशाओं में विचरने लगे। (2)
  • महाराज! जैसे ग्रीष्‍म-ऋतु में सूर्य से निकलकर सहस्‍त्रों किरणें सब ओर फैलती हैं, उसी प्रकार वृषसेन के धनुष से सहस्‍त्रों तेजस्‍वी महाबाण निकलने लगे। (3)
  • राजन! जैसे प्रचण्‍ड आँधी से सहसा बड़े-बड़े वृक्ष टूटकर गिर जाते हैं, उसी प्रकार वृषसेन के द्वारा पीड़ित हुए रथी और अन्‍य योद्धागण सहसा धरती पर गिरने लगे। (4)
  • नरेश्वर! उस महारथी वीर ने रणभूमि में घोड़ों, रथों और हाथियों के सैकड़ों-हजारों समूहों को मार गिराया। (5)
  • उसे अकेले ही समरभूमि में निर्भय विचरते देख सब राजाओं ने एक साथ अाकर सब ओर से घेर लिया। (6)
  • इसी समय नकुल के पुत्र शतानीक ने वृषसेन पर आक्रमण किया और दस मर्मभेदी नाराचों द्वारा उसे बींध डाला। (7)
  • तब कर्ण के पुत्र ने शतानीक के धनुष को काटकर उनके ध्वज को भी गिरा दिया। यह देख अपने भाई की रक्षा करने के लिये द्रौपदी के दूसरे पुत्र भी वहाँ आ पहुँचे। (8)
  • उन्‍होंने अपने बाण-समूहों की वर्षा से कर्णकुमार वृषसेन को अनायास ही आच्‍छादित करके अदृश्‍य कर दिया। महाराज! यह देख अश्वत्‍थामा आदि महारथि सिंहनाद करते हुए उन पर टूट पड़े और जैसे मेघ पर्वतों पर जल की धारा गिराते हैं, उसी प्रकार वे नाना प्रकार के बाणों की वर्षा करते हुए तुरंत ही महारथी द्रौपदीपुत्रों को आच्‍छादित करने लगे। (9-10)
  • तब पुत्रों की प्राण रक्षा चाहने वाले पाण्‍डवों ने तुरंत आकर उन कौरव महारथियों को रोका। पाण्‍डवों के साथ पांचाल, केकय, मत्‍स्‍य, और सृंजय देशीय योद्धा भी अस्‍त्र-शस्‍त्र लिये उपस्थित थे। (11)
  • राजन! फिर तो दानवों के साथ देवताओं की भाँति आपके सैनिकों के साथ पाण्‍डवों का अत्‍यन्‍त भयंकर युद्ध छिड़ गया, जो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। (12)
  • इस प्रकार एक-दूसरे के अपराध करने वाले कौरव-पाण्‍डव वीर परस्‍पर क्रोधपूर्ण दृष्टि से देखते हुए युद्ध करने लगे। (13)
  • क्रोधवश युद्ध करते हुए उन अमित तेजस्‍वी राजाओं के शरीर आकाश में युद्ध की इच्‍छा से एकत्र हुए पक्षिराज गरुड़ तथा नागों के समान दिखायी देते थे। (14)
  • भीम, कर्ण, कृपाचार्य, द्रोण, अश्वत्‍थामा, धृष्टद्युम्न तथा सात्‍यकि आदि वीरों से वह रणक्षेत्र ऐसी शोभा पा रहा था, मानो वहाँ प्रलयकाल के सूर्य का उदय हुआ हो। (15)
  • उस समय एक-दूसरे पर प्रहार करने वाले उन महाबली वीरों में वैसा ही भयंकर युद्ध हो रहा था, जैसे पूर्वकाल में बलवान देवताओं के साथ महाबली दानवों का संग्राम हुआ था। (16)
  • तदनन्‍तर उत्ताल तरंगों से युक्‍त महासागर की भाँति गर्जना करती हुई युधिष्ठिर की सेना आपकी सेना का संहार करने लगी। इससे कौरव सेना के बड़े-बड़े रथी भाग खड़े हुए। (17)
  • शत्रुओं के द्वारा अच्‍छी तरह रौंदी गयी आपकी सेना को भागती देख द्रोणाचार्य ने कहा- 'शूरवीरों! तुम भागो मत, इससे कोई लाभ न होगा'। (18)

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागने से रोका

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः