महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 6 श्लोक 1-22

षष्‍ठ (6) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्‍डविनिर्माण पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: षष्‍ठ अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

सुदर्शन के वर्ष, पर्वत, मेरुगिरि, गंगा नदी तथा शशाकृति का वर्णन

धृतराष्ट्र बोले- बुद्धिमान् संजय! तुमने सुदर्शन द्वीप का विधिपूर्वक थोडे़ में ही वर्णन कर दिया, परंतु तुम तो तत्त्वों के ज्ञाता हो; अत: इस सम्पूर्ण द्वीप का विस्तार के साथ वर्णन करो। चन्द्रमा के शश-चिह्न में भूमि का जितना अवकाश दृष्टिगोचर होता है, उसका प्रमाण बताओ। तत्पश्‍चात् पिप्पलस्थान का वर्णन करना।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! राजा धृतराष्ट्र के इस प्रकार पूछने पर संजय ने कहना आरम्भ किया। संजय बोले- महाराज! पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर फैले हुए ये छ: वर्ष पर्वत हैं, जो दोनों ओर पूर्व तथा पश्चिम समुद्र में घुसे हुए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- हिमवान्, हेमकूट, पर्वतश्रेष्ठ निषध, वैदूर्यमणिमय नीलगिरि, चन्द्रमा के समान उज्ज्वल श्‍वेतगिरि तथा सब धातुओं से सम्पन्न होकर विचित्र शोभा धारण करने वाला श्रृंगवान पर्वत। राजन्! ये छ: पर्वत सिद्धों तथा चरणों के निवासस्थान हैं।

भरतनन्दन! इनके बीच का विस्तार सहस्रों योजन हैं। वहाँ भिन्न-भिन्न वर्ष (खण्‍ड) हैं और उनमें बहुत-से पवित्र जनपद हैं। उनमें सब ओर नाना जातियों के प्राणी निवास करते हैं, उनमें से यह भारतवर्ष है। इसके बाद हिमालय से उत्तर हैमवतवर्ष है। हेमकूट पर्वत से आगे हरिवर्ष की स्थिति बतायी जाती है। महाभाग! नीलगिरि के दक्षिण और निषधपर्वत के उत्तर पूर्व से पश्चिम की ओर फैला हुआ माल्यवान् नामक पर्वत है। माल्यवान् से आगे गन्धमादन पर्वत है। इन दोनों के बीच में मण्‍डलाकार सुवर्णमय मेरुपर्वत है, जो प्रात:काल के सूर्य के समान प्रकाशमान तथा धूमरहित अग्नि-के समान कान्तिमान है। उसकी ऊंचाई चौरासी हजार योजन हैं।

राजन्! वह नीचे से चौरासी हजार योजन तक पृथ्‍वी के भीतर घुसा हुआ है। प्रभो! मेरुपर्वत ऊपर-नीचे तथा अगल-बगल सम्पूर्ण लोकों को आवृत करके खड़ा है। उसके पार्श्‍वभाग में ये चार द्वीप बसे हुए हैं। भारत! उनके नाम ये हैं- भद्राश्‍व, केतुमाल, जम्बूद्वीप तथा उत्तर कुरु! उत्तर कुरु द्वीप में पुण्‍यात्मा पुरुषों का निवास हैं। एक समय पक्षिराज गरुड़ के पुत्र सुमुख ने मेरु पर्वत पर सुनहरे शरीर वाले कौवों को देखकर सोचा कि यह सुमेरू पर्वत उत्तम, मध्‍यम तथा अधम पक्षियों में कुछ भी अन्तर नहीं रहने देता है। इसलिये मैं इसका त्याग दूंगा। ऐसा विचार करके वे वहाँ से अन्यत्र चले गये। ज्योतिर्मय ग्रहों में सर्वश्रेष्‍ठ, सूर्यदेव, नक्षत्रोंसहित चन्द्रमा तथा वायुदेव भी प्रदक्षिण क्रम से सदा मेरूगिरि की परिक्रमा करते रहते हैं। महाराज! वह पर्वत दिव्य पुष्‍पों और फलों से सम्पन्न है। वहाँ से सभी भवन जाम्बूनद नामक सुवर्ण से विभूषित हैं। उनसे घिरे हुए उस पर्वत की बड़ी शोभा होती है।

राजन्! उस पर्वत पर देवता, गन्धर्व, असुर, राक्षस तथा अप्सराएं सदा क्रीड़ा करती रहती हैं। वहाँ ब्रह्मा, रुद्र तथा देवराज इन्द्र एकत्र हो पर्याप्त द‍क्षिणा वाले नाना प्रकार के यज्ञों का अनुष्‍ठान करते हैं। उस समय तुम्बुरु, नारद, विश्वावसु, हाहा और हूहू नामक गन्धर्व उन देवेश्वरों के पास जाकर भाँति-भाँति के स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति करते हैं। राजन्! आपका कल्याण हो। वहाँ महात्मा सप्तर्षिगण तथा प्रजापति कश्‍यप प्रत्येक पर्व पर सदा पधारते हैं। भूपाल! उस मेरु पर्वत के ही शिखर पर दैत्यों के साथ शुक्राचार्य निवास करते हैं। ये सब रत्न तथा ये रत्नमय पर्वत शुक्राचार्य के ही अधिकार में हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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