महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 49 श्लोक 1-20

एकोनचत्‍वारिंश (49) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: एकोनचत्‍वारिंश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


अभिमन्‍यु का कालिकेय, वसाति और कैकय रथियों को मार डालना एवं छ: महारथियों के सहयोग से अभिमन्‍यु का वध और भागती हुई अपनी सेना को युधिष्ठिर का आश्वासन देना

  • संजय कहते हैं– राजन! भगवान श्रीकृष्‍ण की बहिन सुभद्रा को आनन्दित करने वाला तथा श्रीकृष्‍ण के ही समान चक्ररूपी आयुध से सुशोभित होने वाला अतिरथी वीर अभिमन्‍यु उस युद्धस्‍थल में दूसरे श्रीकृष्‍ण के समान प्रकाशित हो रहा था। (1)
  • हवा उसके केशान्‍तभाग को हिला रही थी। उसने अपने हाथ में चक्र नामक उत्‍तम आयुध उठा रखा था। उस समय उसके शरीर और उस चक्र को– जिसकी ओर दृष्टिपात करना देवताओं के लिये भी अत्‍यन्‍त क‍ठिन था देखकर समस्‍त भूपालगण अत्‍यन्‍त उद्विग्‍न हो उठे और उन सब ने मिलकर उस चक्र के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। (2)
  • तब महार‍थी अभिमन्‍यु ने एक विशाल गदा हाथ में ले ली। शत्रुओं ने उसे धनुष,रथ, खड्ग और चक्र से भी वंचित कर दिया था। इसलिये गदा हाथ में लिये हुए अभिमन्‍यु ने अश्वत्‍थामा पर धावा किया। (3-4)
  • प्रज्‍वलित वज्र के समान उस गदा को ऊपर उठी हुई देख नरश्रेष्‍ठ अश्वत्‍थामा अपने रथ की बैठक से तीन पग पीछे हट गया। (5)
  • उस गदा से अश्वत्‍थामा के चारों घोड़ों तथा दोनों पार्श्‍वरक्षकों को मारकर बाणों से भरे हुए शरीर वाला सुभद्राकुमार साही के समान दिखायी देने लगा। (6)
  • तदनन्‍तर उसने सुबलपुत्र कालिकेय को मार गिराया और उसके पीछे चलने वाले सतहत्‍तर गान्‍धारों का भी संहार कर डाला। (7)
  • इसके बाद दस वसातीय रथियों को मार डाला। केकयों के साथ रथों और दस हाथियों को मारकर दु:शासनकुमार के घोड़ों सहित रथ को भी गदा के आघात से चूर-चूर कर डाला। (8)
  • आर्य! इससे दु:शासनपुत्र कुपित हो गदा हाथ में लेकर अभिमन्‍यु की ओर दौड़ा और इस प्रकार बोल– 'अरे! खड़ा रह, खड़ा रह।' (9)
  • वे दोनों वीर एक-दूसरे के शत्रु थे। अत: गदा हाथ में लेकर एक दूसरे का वध करने की इच्‍छा से परस्‍पर प्रहार करने लगे। ठीक उसी तरह, जैसे पूर्वकाल में भगवान शंकर और अन्धकासुर परस्‍पर गदा आघात करते थे। (10)
  • शत्रुओं को संताप देने वाले वे दोनों वीर रणक्षेत्र में गदा के अग्रभाग से एक दूसरे को चोट पहुँचाकर नीचे गिराये हुए दो इन्‍द्रध्‍वजों के समान पृथ्‍वी पर गिर पड़े। (11)
  • तत्‍पश्‍चात कुरुकुल की कीर्ति बढ़ाने वाले दु:शासनपुत्र ने पहले उठकर उठते हुए सुभद्राकुमार के मस्‍तक पर गदा का प्रहार किया। (12)
  • गदा के उस महान वेग ओर परिश्रम से मोहित होकर शत्रुवीरों का नाश करने वाला अभिमन्‍यु अचेत हो पृथ्‍वी पर गिर पड़ा। राजन! इस प्रकार उसे युद्धस्‍थल में बहुत-से योद्धाओं ने मिलकर एकांकी अभिमन्‍यु को मार डाला। (13-14)
  • जैसे हाथी कभी सरोवर को मथ डालता है, उसी प्रकार सारी सेना क्षुब्‍ध करके व्‍याघों के द्वारा जंगली हाथी की भाँति मारा गया वीर अभिमन्‍यु वहाँ अद्भुत शोभा पा रहा था। (15)
  • इस प्रकार रणभूमि में गिरे हुए शूरवीर अभिमन्‍यु को आपके सैनिकों ने चारों ओर-से घेर लिया। जैसे ग्रीष्म ऋतु में जंगल को जलाकर आग बुझ गयी हो, जिस प्रकार वायु वृक्षों की शाखाओं को तोड़-फोड़कर शान्‍त हो रही हो, जैसे संसार को संतप्त करके सूर्य अस्‍ताचल को चले गये हों, जैसे चन्द्रमा पर ग्रहण लग गया हो तथा जैसे [समुद्र]] सूख गया हो, उसी प्रकार समस्‍त कौरव सेना को संतप्‍त करके पूर्ण चन्‍द्रमा के समान मुख वाला अभिमन्‍यु पृथ्‍वी पर पड़ा था; उसके सिर के बड़े-बड़े बालों (काकपक्ष) से उसकी आँखे ढक गयी थीं। उस दशा में उसे देखकर आपके महारथी बड़ी प्रसन्‍नता के साथ बारंबार सिंहनाद करने लगे। (16-19)
  • प्रजानाथ! आपके पुत्रों को तो बड़ा हर्ष हुआ; परंतु पाण्‍डव वीरों के नेत्रों से आँसू बहने लगे। (20)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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