महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 50 श्लोक 1-16

पंचाशत्‍तम (50) अध्‍याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचाशत्‍तम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

संजय द्वारा युधिष्ठिर के प्रधान सहायकों का वर्णन

  • धृतराष्‍ट्र ने पूछा- संजय! हमारी प्रसन्‍नता और सहायता के लिये यहाँ हस्तिनापुर में बहुत-सी सेना एकत्र हो गयी है, यह समाचार सुनकर पाण्‍डवराज धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने क्‍या कहा? (1)
  • सूत! भविष्‍य में होने वाले युद्ध के लिये उद्यत होकर राजा युधिष्ठिर कैसी तैयारी कर रहे हैं? उनके भाइयों और पुत्रों में से कौन-कौन-से लोग उनसे किसी कार्य के लिये आज्ञा पाने की इच्‍छा से उनका मुँह जोहते रहते हैं? (2)
  • युधिष्ठिर धर्म के ज्ञाता हैं और धर्म के आचरण में सदा तत्‍पर रहते हैं। मेरे मंदबुद्धि पुत्रों ने अपने कपटपूर्ण बर्ताव से उन्‍हें कुपित कर दिया है। वहाँ कौन-कौन ऐसे हैं, जो इन्‍हें बारंबार शांत रहने की सलाह देकर युद्ध से रोकते हैं? (3)
  • संजय ने कहा- महाराज! आपका कल्‍याण हो। पांचाल और पाण्‍डव सभी राजा युधिष्ठिर के मुख की ओर देखते रहते हैं और वे इन सबको विभिन्‍न कार्यों के लिये आज्ञा देते हैं। (4)
  • जब कुंतीपुत्र युधिष्ठिर सामने आते हैं, तब पाण्‍डवों तथा पांचालों के रथ समूह पृथक-पृथक श्रेणियों में खड़े होकर उनका अभिनंदन करते हैं। (5)
  • जैसे आकाश उदयकाल में उद्दीप्‍त तेजस्‍वी सूर्यदेव का अभिनंदन करता है, उसी प्रकार, मानो तेज के पुंज का उदय होता हो, इस तरह दिखायी देने वाले कुंतीनंदन युधिष्ठिर समस्‍त पांचालगण अभिनंदन करते हैं। (6)
  • ग्‍वालिये और गड़रियों से लेकर पांचाल, केकय और मत्‍स्‍यदेशों के राजवंश तक सभी लोग पाण्‍डुपुत्र यधिष्ठिर सम्‍मान करते हैं। (7)
  • ब्राह्मणों, क्षत्रियों तथा वैश्‍यों की कन्‍याएं भी खेलती-खेलती युद्ध के लिये सुसज्जित युधिष्ठिर को देखने के लिये उनके पास आ जाती हैं। (8)
  • धृतराष्‍ट्र ने पूछा- संजय! बताओ, पाण्‍डव लोग धृष्‍टद्युम्‍न की सेना तथा अन्‍यान्‍य सोमकवंशियों की विशाल वाहिनी के सिवा और किस-किस की सहायता पाकर हम लोगों के साथ युद्ध करने को उद्यत हुए हैं? (9)
  • वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय! कौरवों की सभा में राजा धृतराष्‍ट्र के इस प्रकार पूछने पर संजय बांरबार लम्‍बी सांस खीचते हुए दीर्घकाल तक गहरी चिंता में निमग्‍न से हो गये और सहसा बिना किसी विशेष कारण के ही वे मूर्च्छित होकर गिर पड़े। तब विदुरजी ने उस राजसभा में धृतराष्‍ट्र से कहा-‘महाराज! ये संजय मूर्च्छित होकर धरती पर गिर पड़े हैं। उनकी बुद्धि और चेतना लुप्‍त-सी हो रही है, अत: अभी कुछ बोल नहीं सकते’। (10-12)
  • धृतराष्‍ट्र बोले- निश्चय ही संजय ने महारथी कुंतीपुत्रों को देखा है। जान पड़ता है, उन पुरुषसिंह पाण्‍डवों ने इसके मन को अत्‍यंत उद्विग्‍न कर दिया है। (13)
  • वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय! इतने में ही संजय को चेत हो आया और वे आश्‍वस्‍त होकर कौरव-सभा में धृतराष्‍ट्र से बोले। (14)
  • संजय ने कहा- राजेन्‍द्र! मैंने महारथी कुंतीपुत्रो का दर्शन किया है। वे अज्ञातवास के समय मत्‍स्‍यनरेश विराट के घर में छिपकर रहने के कारण अत्‍यंत दुबले हो गये हैं। (15)
  • महाराज! पाण्‍डवों ने जिन लोगों की सहायता पाकर युद्ध के लिये तैयारी की है, उनका परिचय देता हूँ, सुनिये। पहली बात यह है कि उन्‍हें वीरवर धृष्‍टद्युम्‍न का पूर्ण सहयोग प्राप्‍त हुआ है, जिससे सबल होकर उन पाण्‍डवों ने आप लोगों पर चढ़ाई करने की तैयारी की है। (16)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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