द्विपन्चाशत्तम (52) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: द्विपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
राजन! उग्र तपस्या करते हुए उसका बहुत समय व्यतीत हो गया। पिता ने अपने जीवनकाल में उसका किसी के साथ ब्याह कर देने का प्रयत्न किया; परंतु उस अनिन्द्य सुन्दरी ने विवाह की इच्छा नहीं की। उसे अपने योग्य कोई वर ही नहीं दिखायी देता था। तब वह उग्र तपस्या के द्वारा अपने शरीर को पीड़ा देकर निर्जन वन में पितरों तथा देवताओं के पूजन में तत्पर हो गयी। राजेन्द्र! परिश्रम से थक जाने पर भी वह अपने आपको कृतार्थ मानती रही। धीरे-धीरे बुढ़ापा और तपस्या ने उसे दुर्बल बना दिया। जब वह स्वयं एक पग भी चलने में असमर्थ हो गयी, तब उसने परलोक में जाने का विचार किया। उसकी देहत्याग की इच्छा देख देवर्षि नारद ने उससे कहा- ‘महान व्रत का पालन करने वाली निष्पाप नारी! तुम्हारा तो अभी विवाह संस्कार भी नहीं हुआ, तुम तो अभी कन्या हो। फिर तुम्हें पुण्यलोक कैसे प्राप्त हो सकते हैं? तुम्हारे सम्बन्ध में ऐसी बात मैंने देवलोक में सुनी है। तुमने तपस्या तो बहुत बड़ी की है; परंतु पुण्यलोकों पर अधिकार नहीं प्राप्त किया है’। नारद जी की यह बात सुनकर वह ऋषियों की सभा में उपस्थित होकर बोली- ‘साधुशिरोमणे! आपमें से जो कोई मेरा पाणिग्रहण करेगा, उसे मैं अपनी तपस्या का आधा भाग दे दूंगी’। उसके ऐसा कहने पर सबसे पहले गालव के पुत्र श्रृंगवान ऋषि ने उसका पाणिग्रहण करने की इच्छा प्रकट की और सबसे पहले उसके सामने यह शर्त रखी- ‘शोभने! मैं एक शर्त के साथ आज तुम्हारा पाणिग्रहण करूंगा। विवाह के बाद तुम्हें एक रात मेरे साथ रहना होगा। यदि यह स्वीकार हो तो मैं तैयार हूं’। तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसने मुनि के हाथ में अपना हाथ दे दिया। फिर गालव पुत्र ने शास्त्रोक्त रीति से विधिपूर्वक अग्नि में हवन करके उसका पाणिग्रहण और विवाह-संस्कार किया। राजन! रात्रि में वह दिव्य वस्त्राभूषणों से विभूषित और दिव्य गन्धयुक्त अंगराग से अलंकृत परम सुन्दरी तरुणी हो गयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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