महाभारत आदि पर्व अध्याय 62 श्लोक 1-21

द्विषष्टितम (62) अध्‍याय: आदि पर्व (अंशावतरण पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: द्विषष्टितम अध्‍याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

महाभारत की महत्ता

जनमेजय ने कहा- द्विजश्रेष्ठ! आपने कुरुवंशियों के चरित्ररुप महान् महाभारत-नामक सम्‍पूर्ण इतिहास का बहुत संक्षेप से वर्णन किया है। निष्‍पाप तपोधन! अब उस विचित्र अर्थ वाली कथा को विस्‍तार के साथ कहिये; क्‍योंकि उसे वास्‍तारपूर्वक सुनने के लिये मेरे मन में बड़ा कौतुहल हो रहा है विप्रवर! आप पुन: पूरे विस्‍तार के साथ यह कथा सुनावें। मैं अपने पूर्वजों के इस महान् चरित्र को सुनते-सुनते तृप्त नहीं हो रहा हूँ। सब मनुष्‍यों द्वारा जिनकी प्रशंसा की जाती है, उन धर्मज्ञ पाण्‍डवों ने जो युद्ध-भूमि में समस्‍त अवध्‍य सैनिकों का भी वध किया था, इसका कोई छोटा या साधारण कारण नहीं हो सकता। नरश्रेष्ठ पाण्‍डव शक्तिशाली और निरपराध थे तो भी उन्‍होंने दुरात्‍मा कौरवों के लिये हुए महान क्‍लेशों को कैसे चुपचाप सहन कर लिया? द्विजोत्तम! अपनी विशाल भुजाओं से सुशोभित होने वाले भीमसेन में तो दस हजार हाथियों का बल था। फि‍र उन्‍होंने क्‍लेश उठाते हुए भी क्रोध को किसलिये रोक रखा था?

द्रुपदकुमारी कृष्णा भी सब कुछ करने में समर्थ, सतीसाध्‍वी देवी थीं। धृतराष्ट्र के दुरात्‍मा पुत्रों द्वारा सताये जाने पर भी उन्‍होंने अपनी क्रोधपूर्ण दृष्टि से उन सबको जलाकर भस्‍म क्‍यों नहीं कर दिया? कुन्ती के दोनों पुत्र भीमसेन और अर्जुन तथा माद्रीनन्‍दन नकुल और सहदेव भी उस समय दुष्ट कौरवों द्वारा अकारण सताये गये थे। उन चारों भाइयों ने जुए के दुर्व्‍यसन में फंसे हुए राजा युधिष्ठिर का साथ क्‍यों दिया? धर्मात्‍माओं में श्रेष्ठ धर्मपुत्र धर्म के ज्ञाता थे, महान् क्‍लेश में पड़ने योग्‍य कदापि नहीं थे, तो भी उन्‍होंने वह सब कैसे सहन कर लिया? भगवान् श्रीकृष्‍ण जिनके सारथि थे, पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन अकेले ही बाणों की वर्षा करके समस्‍त सेनाओं को, जिनकी संख्‍या बहुत बड़ी थी, किस प्रकार यमलोक पहुँचा दिया? तपोधन! यह सब वृतान्‍त आप ठीक-ठीक मुझे बताइये। उन महारथी वीरों ने विभिन्न स्‍थानों और अवसरों में जो-जो कर्म किये थे, वह सब सुनाइये।

वैशम्‍पायन जी बोले- महाराज! इसके लिये कुछ समय नियत कीजिये; क्‍योंकि इस पवित्र आख्‍यान का श्रीव्‍यास जी के द्वारा जो क्रमानुसार वर्णन किया गया है, वह बहुत विस्‍तृत है और वह सब आपके समक्ष कहकर सुनाना है। सर्वलोकपूजित अमिततेजस्‍वी महामना महर्षि व्‍यास जी के सम्‍पूर्ण मत का यहाँ वर्णन करूँगा। असीम प्रभावशाली सत्‍यवतीनन्‍दन व्‍यास जी ने पुण्‍यात्‍मा पाण्‍डवों की यह कथा एक लाख श्‍लोकों में कही है। जो विद्वान् इस आख्‍यान को सुनाता है और जो मनुष्‍य सुनते हैं, वे ब्रह्मलोक में जाकर देवताओं के समान हो जाते हैं। यह ऋषियों द्वारा प्रशंसित पुरातन इतिहास श्रवण करने योग्‍य सब ग्रन्‍थों में श्रेष्ठ है। यह वेदों के समान ही पवित्र तथा उत्तम है। इसमें अर्थ और धर्म का पूर्णरुप से उपदेश किया जाता है। इस परमपावन इतिहास से मोक्ष बुद्धि प्राप्त होती है। जिनका स्‍वभाव अथवा विचार खोटा नहीं है, जो दानशील, सत्‍यवादी और आस्तिक हैं, ऐसे लोगों को व्‍यास द्वारा विचरित वेदस्‍वरुप इस महाभारत को जो श्रवण कराता है, वह विद्वान अभीष्ट अर्थ को प्राप्त कर लेता है। साथ ही वह भ्रूणहत्या जैसे पाप को भी नष्ट कर देता है, इसमें संशय नहीं है। इस इतिहास को श्रवण करके अत्‍यन्‍त क्रूर मनुष्‍य भी राहु से छूटे हुए चन्‍द्रमा की भाँति सब पापों से मुक्त हो जाता है। यह ‘जय’ नामक इतिहास विजय की इच्‍छा वाले पुरुष को अवश्‍य सुनना चाहिये। इसका श्रवण करने वाला राजा भूमि पर विजय पाता और सब शत्रुओं को परास्‍त कर देता है। यह पुत्र की प्राप्ति कराने वाला और महान मंगलकारी श्रेष्ठ साधन है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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