महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 66 श्लोक 1-21

षट्षष्टितम (66) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: षट्षष्टितम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


जूता, शकट, तिल, भूमि, गौ और अन्न के दान का माहात्‍म्‍य

युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! गर्मी के दिनों में जिसके पैर जल रहे हों, ऐसे ब्राह्मण को जो जूते पहनाता है, उसका जो फल मिलता है, वह मुझे बताइये।

भीष्म जी ने कहा- युधिष्ठिर! जो एकाग्रचित्त होकर ब्राह्मणों के लिये जूते दान करता है, वह सब संकटों को मसल डालता है और कठिन विपत्ति से भी पार हो जाता है। इतना ही नहीं, वह शत्रुओं के ऊपर विराजमान होता है। प्रजानाथ! उसे जन्मान्तर में खच्चरियों से जुता हुआ उज्ज्वल रथ प्राप्त होता है। कुन्तीकुमार! जो नये बैलों से युक्त शकट दान करता है, उसे चांदी और सोने से जटित रथ प्राप्त होता है।

युधिष्ठिर ने पूछा- कुरुनन्दन! तिल, भूमि, गौ और अन्न का दान करने से क्या फल मिलता है? इसका फिर से वर्णन कीजिये।

भीष्म जी ने कहा- कुन्तीनन्दन! कुरुश्रेष्ठ! तिलदान का जो फल है, वह मुझसे सुनो और सुनकर यथोचित रूप से उसका दान करो। ब्रह्मा जी ने जो तिल उत्पन्न किये हैं, वे पितरों के सर्वश्रेष्ठ खाद्य पदार्थ हैं। इसलिये तिल दान करने से पितरों को बड़ी प्रसन्नता होती है। जो माघ मास में ब्राह्मणों को तिल दान करता है, वह समस्त जन्तुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नहीं करता। जो तिलों के द्वारा पितरों का पूजन करता है, वह मानो सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लेता है। तिल-श्राद्ध कभी निष्काम पुरुष को नहीं करना चाहिये। प्रभो! यह तिल महर्षि कश्‍यप के अंगों से प्रकट होकर विस्तार को प्राप्त हुए हैं; इसलिये दान के निमित्त इनमें दिव्यता आ गयी है।

तिल पौष्टिक पदार्थ हैं। वे सुन्दर रूप देने वाले और पापनाशक हैं, इसलिये तिल-दान सब दानों से बढ़कर है। परम बुद्धिमान महर्षि आपस्तम्ब, शंख, लिखित तथा गौतम- ये तिलों का दान करके दिव्यलोक को प्राप्त हुऐ हैं। वे सभी ब्राह्मण स्त्री-समागम से दूर रहकर तिलों का हवन किया करते थे, तिल गौर घृत के समान हवी के योग्य माने गये हैं। इसलिये यज्ञों में गृहित होते हैं एवं हरेक कर्मों में उनकी आवश्‍यकता है। अतः तिल दान सब दानों से बढ़कर है। तिल दान यहाँ सब दानों में अक्षय फल देने वाला बताया जाता है। पूर्व काल में परंतप राजर्षि कुशिक ने हविष्य समाप्त हो जाने पर तिलों से ही हवन करके तीनों अग्नियों को तृप्त किया था; इससे उन्हें उत्तम गति प्राप्त हुई।

कुरुश्रेष्ठ! इस प्रकार जिस विधि के अनुसार तिल दान करना उत्तम बताया गया है, वह सर्वोत्तम तिल दान का विधान यहाँ बताया गया। महाराज इसके बाद यज्ञ की इच्छा वाले देवताओं और स्वयम्भू ब्रह्मा जी के समागम होने पर उनमें परस्पर जो बातचीत हुई थी, उसे बता रहा हूँ इस पर ध्यान दो।

पृथ्वीनाथ! भूतल के किसी भाग में यज्ञ करने की इच्छा वाले देवता ब्रह्मा जी के पास जाकर किसी शुभ देश की याचना करने लगे, जहाँ यज्ञ कर सकें।

देवता बोले- भगवन! महाभाग! आप पृथ्वी और सम्पूर्ण स्वर्ग के स्वामी हैं; अतः हम आपकी आज्ञा लेकर पृथ्वी पर यज्ञ करेंगे। क्योंकि भूस्वामी जिस भूमि पर यज्ञ करने की अनुमति नहीं देता, उस भूमि पर यदि यज्ञ किया जाये तो उसका फल नहीं होता। आप सम्पूर्ण चराचर जगत के स्वामी हैं; अतः पृथ्वी पर यज्ञ करने के लिये हमें आज्ञा दीजिये।

ब्रह्मा जी ने कहा- काश्यपनन्दन सुरश्रेष्ठगण! तुम लोग पृथ्वी के जिस प्रदेश में यज्ञ करोगे, वही भूभाग मैं तुम्हें दे रहा हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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