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महाभारत: उद्योग पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 21-31 का हिन्दी अनुवाद
पाण्डवों के यहाँ से लौटे हुए संजय का कौरव सभा में आगमन
- वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! इस प्रकार महर्षि सनत्सुजात और बुद्धिमान विदुरजी के साथ बातचीत करते हुए राजा धृतराष्ट्र की सारी रात बीत गयी। (1)
- वह रात बीतने पर जब प्रभात काल आया, तब सब राजा लोग सूत पुत्र संजय को देखने के लिये बड़े हर्ष के साथ सभा में आये। (2)
- धृतराष्ट्र आदि समस्त कौरवों ने भी पाण्डवों की धर्मार्थ युक्त बातें सुनने की इच्छा से उन सुंदर एवं विशाल राजसभा में प्रवेश किया, जो चूने से पुती होने के कारण अत्यंत उज्ज्वल दिखायी देती थी। सुवर्णमय प्रांगण उसकी शोभा बढ़ा रहे थे। वह सभा चंद्रमा की श्वेत रश्मियों के समान प्रकाशित हो रही थी। वह देखने में अत्यंत मनोहर थी और उसने भीतर चंदन मिश्रित जल से छिड़काव किया गया था। (3-4)
- उस राजसभा में सुवर्ण, काष्ठ, मणि तथा हाथी दाँत के बने हुए सुंदर-सुंदर आसन सुरुचिपूर्ण ढंग से बिछे हुए थे और उनके ऊपर चादरें फैला दी गयी थीं। (5)
- भरतश्रेष्ठ! भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, शल्य, कृतवर्मा,जयद्रथ, अश्वत्थामा, विकर्ण,सोमदत्त, बाह्लिक, परम बुद्धिमान विदुर, महारथी युयुत्सु तथा अन्य सभी शूरवीर नरेश धृतराष्ट्र को आगे करके उस सुंदर सभा में एक साथ प्रविष्ट हुए। (6-7)
- राजन! दु:शासन, चित्रसेन, सुबलपुत्र शकुनि, दुर्मुख, दु:सह, कर्ण, उलूक और विविंशति-इन सबने अमर्ष में भरे हुए कुरूराज दुर्योधन को आगे करके उस राजसभा में ठीक वैसे ही प्रवेश किया, जैसे देवता लोग इन्द्र की सभा में प्रवेश करते हैं। (8-9)
- जनमेजय! उस समय परिघ के समान सुदृढ़ भुजाओं वाले उन शूरवीर नरेशों के प्रवेश करने से वह सभा उसी प्रकार शोभा पाने लगी, जैसे सिंहो के प्रवेश करने से पर्वत की कन्दरा सुशोभित होती है। (10)
- महान धनुष धारण करने वाले तथा सूर्य के समान कांतिमान उन समस्त महातेजस्वी नरेशों ने सभा में प्रवेश करके वहाँ बिछे हुए विचित्र आसनों को सुशोभित किया। (11)
- भारत! जब वे सब राजा आकर यथा योग्य आसनों पर बैठ गये,तब द्वारपाल ने सूचना दी कि संजय राजसभा के द्वार पर उपस्थित हैं। यह वही रथ आ रहा है, जो पाण्डवों के पास भेजा गया था। रथ को अच्छी तरह वहन करने वाले सिंधु देशीय घोड़ों से जुते हुए इस रथ पर हमारे दूत संजय शीघ्र आ पहुँचे हैं। (12-13)
- द्वारपाल के इतना कहते ही कानों में कुण्डल धारण किये संजय रथ से नीचे उतरकर राजसभा के निकट आया और महामना महीपालों से भरी हुई उस सभा के भीतर प्रविष्ट हुआ। (14)
- संजय ने कहा- कौरवो! आपको विदित होना चाहिये कि मैं पाण्डवों के यहाँ जाकर लौटा हूँ। पाण्डव लोग अवस्थाक्रम के अनुसार सभी कौरवों का अभिनंदन करते हैं। (15)
- उन्होंने बड़े-बूढ़ों को प्रणाम कहलाया है। जो समवयस्क हैं, उनके साथ मित्रोचित बर्ताव का संदेश दिया है तथा नवयुवकों को भी उनकी अवस्था के अनुसार सम्मान देकर उनसे प्रेमालाप की इच्छा प्रकट की है। (16)
- पहले यहाँ से जाते समय महाराज धृतराष्ट्र ने मुझे जैसा उपदेश दिया था, पाण्डवों के पास जाकर मैंने वैसी ही बातें कहीं हैं। राजाओ! अब भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन ने जो धर्म के अनुकुल उत्तर दिया है, उसे आप लोग ध्यान देकर सुनें। (17)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अंतर्गत यानसंधिपर्वमें संजयके लौटनेसे संबंध रखनेवाला सैंतालीसवां अध्याय पूरा हुआ।
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