द्वाविंश (22) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्रीपर्व: द्वाविंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
अच्युत! इसमें अनुराग रखने वाली इसकी पत्नियाँ यद्यपि रक्षा में लगी हुई हैं तथापि गीदडि़याँ उन्हें डरवाकर जयद्रथ की लाश को उनके निकट से गहरे गड्ढे की ओर खींचे लिये जा रही हैं। यह काम्बोज और यवन देश की स्त्रियाँ सिन्धु और सौवीर देश के स्वामी महाबाहु जयद्रथ को चारों ओर से घेर कर वैठी हैं और वह उन्हीं के द्वारा सुरक्षित हो रहा है। जनार्दन! जिस दिन जयद्रथ द्रौपदी को हरकर केकयों के साथ भागा था, उसी दिन यह पाण्डवों के द्वारा वन्य हो गया था परन्तु उस समय दु:शला का सम्मान करते हुए उन्होंने जयद्रथ को जीवित छोड़ दिया था। श्रीकृष्ण! उन्हीं पाण्डवों ने आज फिर क्यों नहीं उसका सम्मान किया? देखो, वहीं यह मेरी बेटी दु:शला जो अभी बालिका है, किस तरह दुखी हो हो कर विलाप कर रही है? और पाण्डवों को कोसती हुई स्वंय ही अपनी छाती पीट रही है। श्रीकृष्ण! मेरे लिये इससे बढ़कर महान दुख की बात और क्या होगी कि यह छोटी अवस्था की मेरी बेटी विधवा हो गयी तथा मेरी सारी पुत्रबधुएँ भी अनाथा हो गयीं। हाय! हाय, धिक्कार है। देखो, देखो दु:शला शोक और भय से रहित-सी होकर अपने पति का मस्तक न पाने कारण इधर-उधर दौड़ रही है। जिस वीर ने अपने पुत्र को बचाने की इच्छा वाले समस्त पाण्डवों को अकेले रोक दिया था, वही कितनी ही सेनाओं का संहार करके स्वंय मृत्यु के अधीन हो गया। मतवाले हाथी के समान उस परम दुर्जय वीर को सब ओर से घेरकर ये चन्द्रमुखी रमणियाँ रो रही हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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