महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 136 श्लोक 1-16

षट्-त्रिंशदधिकशततम (136) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: षट्-त्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


दान लेने और अनुचित भोजन करने का प्रायश्चित्त

युधिष्ठिर ने कहा- पितामह! आपने भोज्यान्न और अभोज्यान्न सभी तरह के मनुष्यों का वर्णन किया, किन्तु इस विषय में मुझे पूछने योग्य एक संदेह उत्पन्न हो गया। उसका मेरे लिये समाधान कीजिये।

प्रायः ब्राह्मणों को ही हव्य और कव्य का प्रतिग्रह लेना पड़ता है और उन्हें ही नाना प्रकार के अन्न ग्रहण करने का अवसर आता है। ऐसी दशा में उन्हें पाप लगते हैं, उनका क्या प्रायश्चित्त है? यह मुझे बतावें।

भीष्म जी ने कहा- राजन! महात्मा ब्राह्मणों को प्रतिग्रह लेने और भोजन करने के पाप से जिस प्रकार छुटकारा मिलता है, वह प्रायश्चित्त मैं बता रहा हूँ, सुनो।

युधिष्ठिर! ब्राह्मण यदि घी का दान ले तो गायत्री मन्त्र पढ़कर अग्नि में समिधा की आहुति दे। तिल का दान लेने पर भी यही प्रायश्चित्त करना चाहिये। ये दोनों कार्य समान हैं। फल का गुद्दा, मधु और नमक का दान लेने पर उस समय से लेकर सूर्योदय तक खड़े रहने से ब्राह्मण शुद्ध हो जाता है। सुवर्ण का दान लेकर गायत्री मन्त्र का जप करने और खुले तौर पर काले लोहे का दंड धारण करने से ब्राह्मण उसके दोष से छुटकारा पाता है।

नरश्रेष्ठ! इसी प्रकार धन, वस्त्र, कन्या, अन्न, खीर और ईख के रस का दान ग्रहण करने पर भी सुवर्ण दान के समान ही प्रायश्चित करे। गन्ना, तेल और कुशों का प्रतिग्रह स्वीकार करने पर त्रिकाल स्नान करना चाहिये। धान, फूल, फल, जल, पूआ, जौ की लपसी और दही-दूध का दान लेने पर सौ बार गायत्री मन्त्र का जप करना चाहिये। श्राद्ध में जूता और छाता ग्रहण करने पर एकाग्रचित्त हो यदि सौ बार गायत्री मन्त्र का जप करे तो उस प्रतिग्रह के दोष से छुटकारा मिल जाता है। ग्रहण[1] के समय अथवा अशौच में किसी के दिये हुए खेत का दान स्वीकार करने पर तीन रात उपवास करने से उसके दोष से छुटकारा मिलता है। जो द्विज कृष्ण पक्ष में किये हुए पितृश्राद्ध का अन्न भोजन करता है, वह एक दिन और एक रात बीत जाने पर शुद्ध होता है।

ब्राह्मण जिस दिन श्राद्ध का अन्न भोजन करे, उस दिन संध्या, गायत्री जप और दुबारा भोजन त्याग दे। इससे उसकी शुद्धि होती है। इसीलिये अपराह्णकाल में पितरों के श्राद्ध का विधान किया गया है। (जिससे सबेरे की संध्योपासना हो जाये और शाम को पुनर्भोजन की आवश्यकता ही न पड़े) ब्राह्मणों को एक दिन पहले श्राद्ध का निमन्त्रण देना चाहिये, जिससे वे पूर्वोक्त प्रकार से विशुद्ध पुरुषों के यहाँ यथावत रूप से भोजन कर सकें। जिसके घर किसी की मृत्यु हुई हो, उसके यहाँ मरणाशौच के तीसरे दिन अन्न ग्रहण करने वाला ब्राह्मण बारह दिनों तक त्रिकाल स्नान करने से शुद्ध होता है। बारह दिनों तक स्नान का नियम पूर्ण हो जाने पर तेरहवें दिन वह विशेष रूप से स्नान आदि के द्वारा पवित्र हो ब्राह्मणों को हविष्य भोजन करावे। तब उस पाप से मुक्त हो सकता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुछ लोग 'ग्रहसूतकयो:' का अर्थ करते हैं 'कारागारस्थाशौचवतो' इसके अनुसार जो जेल में रह आया हो तथा जो जनन-मरण सम्बंधी अशौच से युक्त हो, ऐसे लोगों का दिया हुआ क्षेत्रदान स्वीकार करने पर तीन रात उपवास करने से प्रतिग्रह दोष से छुटकारा मिलता है।

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