महाभारत विराट पर्व अध्याय 1 श्लोक 1-18

प्रथम (1) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


विराटनगर में अज्ञातवास करने के लिये पाण्डवों की गुप्त मन्त्रणा तथा युधिष्ठिर के द्वारा अपने भावी कार्यक्रम का दिग्दर्शन

अन्तर्यामी नारायण भगवान श्रीकृष्ण, (उनके नित्य सखा) नरस्वरूप नरश्रेष्ठ अर्जुन, (उनकी लीला प्रकट करने वाली) भगवती सरस्वती और (उनकी लालाओं का संकलन करने वाले) महर्षि वेदव्यास को नमस्कार करके 'जय' (महाभारत) का पाठ करना चाहिये।

जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन्! मेरे पितामह पाण्डवों ने दुर्योधन के भय से कष्ट उठाते हुए विराटनगर में अपने अज्ञातवास का समय किस प्रकार व्यतीत किया तथा दुःख में पड़ी हुई सदा ब्रह्मस्वरूप श्रीकृष्ण का नाम कीर्तन करने वाली परम सौभाग्यवती पतिव्रता द्रौपदी वहाँ अपने को अज्ञात रखकर कैसे निवास कर सकी?

वैशम्पायन जी ने कहा- राजन्! तुम्हारे प्रपितामहों ने विराटनगर में जिस प्रकार अज्ञातवास के दिन पूरे किये थे, वह बताता हूँ; सुनो। यक्षरूपधारी धर्म से इस प्रकार वरदान पाने के अनन्तर धर्मात्माओं में श्रेष्ठ धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने आश्रम पर जाकर यह सब समाचार ब्राह्मणों को बताया। भारत! ब्राह्मणों से सब कुछ बताकर जब युधिष्ठिर ने अरणी सहित मन्थनकाष्ठ पूर्वोक्त ब्राह्मण देवता को सौंप दिया, तब धर्मपुत्र महामनस्वी उन राजा युधिष्ठिर ने अपने सब भाइयों को एकत्र करके इस प्रकार कहा- ‘आज बारह वर्ष बीत गये, हम लोग अपने राज्य से बाहर आकर वन में रहते हैं। अब तेरहवाँ वर्ष आरम्भ हुआ है। इसमें बड़े कष्ट से कठिनाइयों का सामना करते हुए अत्यन्त गुप्त रूप से रहना होगा। कुन्तीनन्दन अर्जुन! तुम अपनी रुचि के अनुसार कोई उत्तम निवासस्थान चुनो, जहाँ यहाँ से चलकर हम एक वर्ष तक इस प्रकार रहें कि शत्रुओं को हमारा पता न चल सके’।

अर्जुन बोले- नरेश्वर! इसमें संदेह नहीं कि उन्हीं भगवान धर्म के दिये हुए वर के प्रभाव से हम लोग इस पृथ्वी पर विचरते रहेंगे और हमें दूसरे मनुष्य पहचान न सकेंगे तथापि मैं आपसे निवास करने योग्य कुछ रमणीय एवं गुप्त राष्ट्रों के नाम बताऊँगा, उनमें से किसी को आप स्वयं ही अपनी रुचि के अनुसार चुन लीजिये। कुरुदेश के चारों ओर बहुत-से सुरम्य जनपद हैं, जहाँ बहुत अन्न होता है। उनके नाम ये हैं- पांचाल, चेदि, मत्स्य, शूरसेन, पटच्चर, दशार्ण, नवराष्ट्र, मल्ल, शाल्व, युगन्धर, विशाल कुन्तिराष्ट्र, सौराष्ट्र तथा अवन्ती। राजन्! इनमें से कौन-सा राष्ट्र आपको निवास करने के लिये पसंद है? जिसमें हम सब लोग एक वर्ष निवास करें।

युधिष्ठिर ने कहा- महाबाहो! तुम्हारी यह बात मैंने ध्यान से सुनी है। सम्पूर्ण भूतों के अधीश्वर और प्रभावशाली भगवान धर्म ने हमारे लिये जैसा आदेश दिया है, वह सब वैसा ही होगा। उसके विपरीत कुछ नहीं होगा। तथापि हम सब लोगों को आपस में सलाह करके अवश्य ही अपने रहने के लिये कोई परम सुन्दर, कल्याणकारी तथा सुखद स्थान चुन लेना चाहिये, जहाँ हम निर्भय होकर रह सकें। (तुम्हारे बताये हुए देशों में से) मत्स्य देश के राजा विराट बहुत बलवान् हैं और पाण्डवों के प्रति उनका अनुराग भी है; साथ ही वे स्वभावतः धर्मात्मा, वृद्ध, उदार तथा हमें सदैव प्रिय हैं। भाई अर्जुन! इसलिये इस वर्ष हम लोग राजा विराट के ही नगर में रहें और उनका कार्य साधन करते हुए उनके यहाँ विचरण करें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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