महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 137 श्लोक 1-21

सप्तत्रिंशदधिकशततम (137) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

Prev.png

महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तत्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


दान से स्वर्गलोक में जाने वाले राजाओं का वर्णन

युधिष्ठिर ने पूछा- भरतनन्दन! पितामह! आप कहते हैं कि दान और तप दोनों से ही मनुष्य स्वर्ग में जाता है, परंतु मेरे मन में संशयजनित दुःख हो रहा है। आप इसका निवारण कीजिये। इस पृथ्वी पर दान और तप में से कौन-सा साधन श्रेष्ठ है, यह बताने की कृपा करें।

भीष्म जी ने कहा- युधिष्ठिर! तपस्या से शुद्ध अन्तःकरण वाले जिन धर्मात्मा राजाओं ने दान-पुण्य में तत्पर रहकर निःसन्देह बहुत-से उत्तम लोक प्राप्त किये हैं, उनके नाम बता रहा हूँ, सुनो।

राजन! लोक सम्मानित महर्षि आत्रेय अपने शिष्यों को निर्गुण ब्रह्म का उपदेश देकर उत्तम लोकों में गये हैं। उशीनर कुमार शिवि अपने प्यारे पुत्र के प्राणों को ब्राह्मण के लिये निछावर करके यहाँ से स्वर्गलोक में चले गये। काशी के राजा प्रतर्दन ने अपने प्यारे पुत्र को ब्राह्मण की सेवा में अर्पित कर दिया, जिसके कारण उन्हें इस लोक में अनुपम कीर्ति मिली और परलोक में भी वे अक्षय आनन्द का उपभोग कर रहे हैं। संकृति के पुत्र राजा रन्तिदेव ने महात्मा वसिष्ठ मुनि को विधिवत अर्ध्यदान किया, जिससे उन्हें श्रेष्ठ लोकों की प्राप्ति हुई। देवावृध नामक राजा यज्ञ में सोने की सौ तीलियों वाले सुन्दर दिव्य छत्र का ब्राह्मण को दान करके स्वर्गलोक को प्राप्त हुए हैं।

ऐश्वर्यशाली राजा अम्बरीष अमित तेजस्वी ब्राह्मण को अपना सारा राज्य सौंपकर देवलोक को प्राप्त हुए। सूर्यपुत्र कर्ण अपना दिव्य कुण्डल देकर तथा महाराजा जनमेजय ब्राह्मण को सवारी और गौ दान करके उत्तम लोकों में गये हैं। राजर्षि वृषादर्भि ने ब्राह्मणों को नाना प्रकार के रत्न तथा रमणीय गृह प्रदान करके स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त किया है। विदर्भ के पुत्र राजा निमि अगस्त्य मुनि को अपनी कन्या और राज्य का दान करके पुत्र, पशु और बान्धवों सहित स्वर्गलोक में चले गये। महायशस्वी जमदग्निनन्दन परशुराम जी ने ब्राह्मण को भूमिदान करके उन अक्षय लोकों को प्राप्त किया है, जिन्हें पाने की मन में कल्पना भी नहीं हो सकती।

एक बार संसार में वर्षा न होने पर मुनिवर वसिष्ठ जी ने समस्त प्राणियों को जीवन दान दिया था, जिससे उन्हें अक्षय लोकों की प्राप्ति हुई। दशरथनन्दन भगवान श्रीरामचन्द्र जी यज्ञों में प्रचुर धन की आहुति देकर संसार में अपने महान यश की स्थापना करके अक्षय लोकों में चले गये। महायशस्वी राजर्षि कक्षसेन महात्मा वसिष्ठ को अपना सर्वस्व समर्पण करके स्वर्गलोक में गये हैं। करन्धम के पौत्र, अविक्षित के पुत्र महाराज मरुत्त ने अंगिरा के पुत्र संवर्त को कन्यादान करके शीघ्र ही स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त कर लिया। पांचाल देश के राजा धर्मात्माओं में श्रेष्ठ ब्रह्मदत्त ने ब्राह्मण को शंख नामक निधि प्रदान करके परमगति प्राप्त कर ली थी। राजा मित्रसह महात्मा वसिष्ठ मुनि को अपनी प्यारी पत्नी मदयन्ती सेवा के लिये देकर स्वर्गलोक में चले गये। मनुपुत्र राजा सुद्युम्न महात्मा लिखित को धर्मतः दण्ड देकर परम उत्तम लोकों में गये। महान यशस्वी राजर्षि सहस्रचित्य ब्राह्मण के लिये अपने प्यारे प्राणों की बलि देकर श्रेष्ठ लोकों में गये हैं। महाराजा शतद्युम्न ने मौद्गल्य नामक ब्राह्मण को समस्त कामनाओं से परिपूर्ण सुवर्णमय गृह दान देकर स्वर्ग प्राप्त किया है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः