सप्तत्रिंशदधिकशततम (137) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तत्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-32 का हिन्दी अनुवाद
महातेजस्वी शाल्वराज द्युतिमान महर्षि ऋचीक को राज्य देकर सर्वोत्तम लोकों में चले गये। राजर्षि मदिराश्व अपनी सुन्दरी कन्या विप्रवर हिरण्यहस्त को देकर देवताओं के लोक में चले गये। प्रभावशाली राजर्षि लोमपाद ने मुनिवर ऋष्यश्रृंग को अपनी शान्ता नाम वाली कन्या दान की थी, इससे उनकी सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण रूप से सफल हुईं। राजर्षि भगीरथ अपनी यशस्विनी कन्या हंसी का कौत्स ऋषि को दान करके अक्षय लोकों में गये हैं। राजा भगीरथ ने कोहल नामक ब्राह्मण को एक लाख सवत्सा गौएँ दान कीं, जिससे उन्हें उत्तम लोकों की प्राप्ति हुई। युधिष्ठिर! ये तथा और भी बहुत-से राजा दान और तपस्या के प्रभाव से बारंबार स्वर्गलोक को जाते और पुनः वहाँ से इस लोक में लौट आते हैं। जिन गृहस्थों ने दान और तपस्या के बल से उत्तम लोकों पर विजय पायी है, उनकी कीर्ति इस लोक में तब तक प्रतिष्ठित रहेगी, जब तक कि यह पृथ्वी स्थिर रहेगी। युधिष्ठिर! यह शिष्ट पुरुषों का चरित्र बताया गया है। ये सब नरेश दान, यज्ञ और संतानोत्पादन करके स्वर्ग में प्रतिष्ठित हुए हैं। कौरवधुरंधर! तुम भी सदा दान करते रहो। तुम्हारी बुद्धि दान और यज्ञ की क्रिया में संलग्न हो धर्म की उन्नति करती रहे। नृपश्रेष्ठ! अब तुम्हें जिस विषय में संदेह होगा, उसे मैं कल सबेरे बताऊँगा, क्योंकि इस समय संध्या काल उपस्थित है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में एक सौ सैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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