महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 31 श्लोक 1-18

एकत्रिंश (31) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (पुत्रदर्शन पर्व)

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महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: एकत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


व्यास जी के द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय तथा उनके कहने से सब लोगों का गंगा-तट पर जाना


व्यास जी ने कहा- "भद्रे गांधारी! आज रात में तुम अपने पुत्रों, भाइयों और उनके मित्रों को देखोगी। तुम्हारी वधुएँ तुम्हें पतियों के साथ-साथ सोकर उठी हुई-सी दिखायी देंगी। कुन्ती कर्ण को, सुभद्रा अभिमन्यु को तथा द्रौपदी पाँचों पुत्रों को, पिता को और भाइयों को भी देखेगी। जब राजा धृतराष्ट्र ने, तुमने और कुन्ती ने भी मुझे इसके लिये प्रेरित किया था, उससे पहले ही मेरे हृदय में यह (मृत व्यक्तियों के दर्शन कराने का) निश्चय हो गया था। तुम्हें क्षत्रिय-धर्मपरायण होकर तदनुसार ही वीरगति को प्राप्त हुए उन समस्त महामनस्वी, नरश्रेष्ठ वीरों के लिये कदापि शोक नहीं करना चाहिये। सती-साध्वी देवि! यह देवताओं का कार्य था और इसी रूप में अवश्य होने वाला था; इसलिये सभी देवताओं के अंश इस पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए थे। गन्धर्व, अप्सरा, पिशाच, गुह्यक, राक्षस, पुण्यजन, सिद्ध, देवर्षि, देवता, दानव तथा निर्मल देवर्षिगण- ये सभी यहाँ अवतार लेकर कुरुक्षेत्र के समरांगण में वध को प्राप्त हुए हैं। गन्धर्वों के लोक में बुद्धिमान गन्धर्वराज धृतराष्ट्र के नाम से विख्यात हैं, वे ही मनुष्य लोक में तुम्हारे पति धृतराष्ट्र के रूप में अवतीर्ण हुए हैं। अपनी महिमा से कभी च्युत न होने वाले राजा पांडु को तुम मरुद्गणों से भी श्रेष्ठतम समझो।

विदुर धर्म के अंश थे। राजा युधिष्ठिर भी धर्म के ही अंश हैं। दुर्योधन को कलियुग समझो और शकुनि को द्वापर। शुभदर्शने! अपने दुःशासन आदि पुत्रों को राक्षस जानो। शत्रुओं का दमन करने वाले बलवान भीमसेन को मरुद्गणों के अंश से उत्पन्न मानो। इन कुन्तीपुत्र धनंजय को तुम पुरातन ऋषि ‘नर’ समझो। भगवान श्रीकृष्ण नारायण ऋषि के अवतार हैं। नकुल और सहदेव दोनों को अश्विनी कुमार समझो। कल्याणि! जो केवल वैर बढ़ाने के लिये उत्पन्न हुआ था और कौरव-पांडवों में संघर्ष पैदा कराने वाला था, उस कर्ण को सूर्य समझो। जिस पांडव पुत्र को छः महारथियों ने मिलकर मारा था, उस सुभद्राकुमार अभिमन्यु के रूप में साक्षात चन्द्रमा ही इस भूतल पर अवतीर्ण हुए थे। (एक रूप से चन्द्रलोक में रहते थे और दूसरे से भूतल पर)।

शोभने! तपने वालों में श्रेष्ठ सूर्य देव अपने शरीर के दो भाग करके एक से सम्पूर्ण लोकों को ताप देते रहे और दूसरे भाग से कर्ण के रूप में अवतीर्ण हुए। इस तरह कर्ण को तुम सूर्यरूप जानो। तुम्हें यह भी ज्ञात होना चाहिये कि जो द्रौपदी के साथ अग्नि से प्रकट हुआ था, वह धृष्टद्युम्न अग्नि का शुभ अंश था और शिखण्डी के रूप में एक राक्षस ने अवतार लिया था। द्रोणाचार्य को बृहस्पति का और अश्वत्थामा को रुद्र का अंश जानो। गंगापुत्र भीष्म को मनुष्योनि में अवतीर्ण हुआ एक वसु समझो। महाप्रज्ञे! शोभने! इस प्रकार ये देवता कार्यवश मानव शरीर में जन्म ले अपना काम पूरा कर लेने पर पुनःस्वर्ग लोक को चले गये हैं। तुम सब लोगों के हृदय में इनके लिये पारलौकिक भय के कारण जो चिरकाल से दुःख भरा हुआ है, उसे आज दूर कर दूँगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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