षट्चत्वारिंशदधिकशततम (146) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: षट्चत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
कबूतर की यह बात सुनकर व्याध ने कहा- ‘इस समय मुझे सर्दी का कष्ट है; अत: इससे बचाने का कोई उपाय करो। उसके ऐसा कहने पर पक्षी पृथ्वी पर बहुत–से पत्ते लाकर रख दिये और आग लाने के लिये अपने पंखों द्वारा यथा शक्ति बड़ी तेजी से उड़ान लगायी। वह लुहार के घर जाकर आग ले आया और सूखे पत्तों पर रखकर उसने वहाँ अग्नि प्रज्वलित कर दी। इस प्रकार आग को बहुत प्रज्वलित करके कबूतर ने शरणागत अतिथि से कहा- ‘भाई अब तुम्हें कोई भय नहीं है। तुम निश्चिन्त होकर अपने सारे अंगों को आग से तपाओ। तब उस व्याध ने ‘बहुत अच्छा’ कहकर अपने सारे अंगों को तपाया। अग्नि का सेवन करके उसकी जान में जान आयी। तब वह कबूतर से कुछ कहने को उद्यत हुआ। शास्त्रीय विधि से सत्कार पा उसने बड़े हर्ष में भरकर डबडबायी हुई आंखों से कबूतर की ओर देखकर कहा-‘भाई! अब मुझे भूख सता रही है; इसलिये तुम्हारा दिया हुआ कुछ भोजन करना चाहता हूँ।’ उसकी बात सुनकर कबूतर बोला- ‘भैया मेरे पास सम्पत्ति तो नहीं है, जिससे मैं तुम्हारी भूख मिटा सकूं। हम लोग वन वासी पक्षी हैं। प्रतिदिन चुगे हुए चारे से ही जीवन निर्वाह करते हैं। मुनियों के समान हमारे पास कोई भोजन का संग्रह नहीं रहता है’। ऐसा कहकर कबूतर का मुख कुछ उदास हो गया। वह इस चिन्ता में पड़ गया कि अब मुझे क्या करना चाहिये ? भरतश्रेष्ठ! वह अपनी कापोती वृति की निन्दा करने लगा। थोड़ी देर में उसे कुछ याद आया और उस पक्षी ने बहेलिये से कहा- ‘अच्छा, थोड़ी देर तक ठहरिये। मैं आपकी तृप्ति करूंगा’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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