प्रथम (1) अध्याय: कर्ण पर्व
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महाभारत: कर्ण पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर निर्मल प्रभात काल आने पर दैव के अधीन हुए समस्त कौरवों ने शास्त्रोक्त विधि के अनुसार शौच, स्नान, संध्या-वन्दन आदि आवश्यक कार्य पूर्ण किया। भरतनन्दन! प्रतिदिन के आवश्यक कार्य सम्पन्न करके आश्वस्त हो उन्होंने सैनिकों को कवच आदि धारण करके तैयार हो जाने की आज्ञा दी तथा कौतुक एवं मांगलिक कृत्य पूर्ण करके कर्ण को सेनापति बनाकर वे सब-के-सब दही, पात्र, घृत, अक्षत, गौ, अश्व, कण्ठभूषण तथा बहुमूल्य वस्त्रों द्वारा श्रेष्ठ ब्राह्मणों का आदर सत्कार करके सूत, मागध और बन्दीजनों द्वारा विजयसूचक आशीर्वादों से अभिवन्दित हो युद्ध के लिये निकले। राजन! इसी प्रकार पाण्डव भी पूर्वाह्न में किये जाने वाले नित्यकर्मों का अनुष्ठान करके तुरंत ही शिविर से बाहर निकले। तदनन्तर एक दूसरे को जीतने की इच्छा वाले कौरवों और पाण्डवों में भयंकर रोमान्चकारी युद्ध आरम्भ हो गया। राजन! कर्ण के सेनापति हो जाने पर उन कौरव-पाण्डव सेनाओं में दो दिनों तक अद्भुत युद्ध हुआ। उस युद्ध में शत्रुओं का महान संहार करके कर्ण धृतराष्ट्रपुत्रों के देखते देखते अर्जुन के हाथ से मारा गया। तदनन्तर संजय ने तुरंत हस्तिनापुर में जाकर कुरुक्षेत्र में जो घटना घटित हुई थी, वह सब धृतराष्ट्र से कह सुनायी। जनमेजय बोले- ब्राह्मन! गंगानन्दन भीष्म तथा महारथी द्रोण को मारा गया सुनकर ही बूढ़े राजा अम्बिकानन्दन धृतराष्ट को बड़ी भारी वेदना हुई थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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