षष्टितम (60) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: षष्टितम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
उस समय अपनी भुजाएं ऊपर उठाये हुए महात्मा बलराम जी का रूप अनेक धातुओं के कारण विचित्र शोभा पाने वाले महान श्वेतपर्वत के समान जान पड़ता था। महाराज! हलधर को आक्रमण करते देख अर्जुन सहित अस्त्रवेत्ता भाइयों के साथ खड़े हुए बलवान भीमसेन तनिक भी व्यथित नहीं हुए। उस समय विनयशील, बलवान श्रीकृष्ण ने आक्रमण करते हुए बलराम जी को अपनी मोटी एवं गोल-गोल भुजाओं द्वारा बड़े प्रयत्न से पकड़ा। राजेन्द्र! वे श्याम-गौर यदुकुलतिलक दोनों भाई परस्पर मिले हुए कैलास और कज्जल पर्वतों के समान शोभा पा रहे थे। राजन! संध्याकाल के आकाश में जैसे चन्द्रमा और सूर्य उदित हुए हों, वैसे ही उस रणक्षेत्र में वे दोनों भाई सुशोभित हो रहे थे। उस समय श्रीकृष्ण ने रोष से भरे हुए बलराम जी को शान्त करते हुए से कहा- 'भैया! अपनी उन्नति छः प्रकार की होती है -अपनी बुद्धि, मित्र की वृद्धि और मित्र के मित्र की वृद्धि तथा शत्रु पक्ष में इसके विपरीत स्थिति अर्थात शत्रु की हानि, शत्रु के मित्र की हानि तथा शत्रु के मित्र के मित्र की हानि। अपनी और अपने मित्र की यदि इसके विपरीत परिस्थिति हो तो मन-ही-मन ग्लानि का अनुभव करना चाहिये और मित्रों की उस हानि के निवारक के लिये शीघ्र प्रयत्नशील होना चाहिये। शुद्ध पुरुषार्थ का आश्रय लेने वाले पाण्डव हमारे सहज मित्र हैं। बुआ के पुत्र होने के कारण सर्वथा अपने हैं। शत्रुओं ने इनके साथ बहुत छल-कपट किया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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