महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-11

पंचविंश (25) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचविंश अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

संजय का युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र का संदेश सुनाना एवं अपनी ओर से भी शान्ति के लिये प्रार्थना करना

युधिष्ठिर बोले- गवल्गणकुमार सूतपुत्र संजय! यहाँ पाण्डव, सृंजय, भगवान श्रीकृष्ण, सात्यकि तथा राजा विराट- सब एकत्र हुए हैं। राजा धृतराष्ट्र ने तुम्हारे द्वारा जो संदेश भेजा है, उसे कहो। संजय बोला- मैं, अजातशत्रु युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव, भगवान श्रीकृष्ण, सात्यकि, चेकितान, विराट, पांचाल देश के बूढ़े नरेश द्रुपद तथा उनके पुत्र वृषतवंशी धृष्टद्युम्न को भी आमन्त्रित करता हूँ। मैं कौरवों की भलाई चाहता हुआ जो कुछ कह रहा हूँ, मेरी उस वाणी को आप सब लोग सुनें। राजा धृतराष्ट्र शान्ति का आदर करते है [1] उन्होंने बड़ी उतावली के साथ मेरे लिये शीघ्रता पूर्वक रथ तैयार कराया और मुझे यहाँ भेजा। मैं चाहता हूँ कि भाई, पुत्र तथा स्वजनों सहित राजा धृतराष्ट्र का यह शान्ति संदेश पाण्डवों को रुचिकर प्रतीत हो और दोनों पक्षों में सन्धि स्थापित हो जाय।
कुन्ती के पुत्रो! आप लोग अपने दिव्य शरीर, दयालु एवं कोमल स्वभाव और सरलता आदि गुणों तथा सम्पूर्ण धर्मों से युक्त हैं। आप लोगों का उत्तम कुल में जन्म हुआ है। आप लोगों में क्रूरता का सर्वथा अभाव है। आप लोग उदार, लज्जाशील कर्मों के परिणाम को जानने वाले हैं। भयंकर सैन्य संग्रह करने वाले पाण्डवों! आप लोगो में ऐसा सत्त्वगुण भरा है कि आपके द्वारा कोई नीच कर्म बन ही नहीं सकता। यदि आप लोगों में कोई दोष होता तो वह सफेद वस्त्र में काले दाग की भाँति चमक उठता [2]। जिसमें सब का विनाश दिखायी देता है, जिससे पूर्णतः पाप का उदय होता है, जो नरक का हेतु है, जिसके अन्त में अभाव ही हाथ लगता है जिसमें जय तथा पराजय दोनों समान हैं, उस युद्ध जैसे कठोर कर्म के लिये कौन समझदार मनुष्य कभी उद्योग करेगा?
जिन्होंने जाति और कुटुम्ब के हितकर कार्यों का साधन किया है, वे धन्य हैं। वे ही पुत्र, मित्र तथा बान्धव कहलाने योग्य हैं। कौरवों को चाहिये कि वे निन्दित जीवन का परित्याग कर दें, कौरव कुल का अभ्युदय अवश्यम्भावी हो। कुन्ती कुमारो! यदि आप लोग समस्त कौरवों को निश्चित रूप से अपना शत्रु मानकर उन्हें दण्ड देंगे, कैद करेंगे अथवा उनका वध कर डालेंगे तो उस दशा में जो आपका जीवन होगा, वह आपके द्वारा कुटुम्बीजनों का वध होने के कारण अच्छा नहीं समझा जायेगा। वह निन्दित जीवन तो मृत्यु के समान ही होगा। भगवान श्रीकृष्ण, चेकितान और सात्यकि आप लोगों के सहायक हैं। आप लोग महाराज द्रुपद के बाहुबल से सुरक्षित हैं। ऐसी दशा में इन्द्र सहित समस्त देवताओं को अपने सहायक रूप में पाकर भी कौन सा ऐसा मनुष्य होगा, जो आप लोगों को जीतने का साहस करेगा? राजन! इसी प्रकार द्रोणाचार्य, भीष्म, अश्वत्थामा, शल्य, कृपाचार्य आदि वीरों तथा अन्य राजाओं सहित कर्ण के द्वारा सुरक्षित कौरवों को युद्ध में जीतने का साहस कौन कर सकता है?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. युद्ध नहीं चाहते
  2. छिप नहीं सकता

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