महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 18 श्लोक 1-13

अष्टादश (18) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टादश अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन के द्वारा हाथियों सहित दण्डधार और दण्ड आदि का वध तथा उनकी सेना का पलायन


संजय कहते हैं- राजन! पाण्डव-सेना के उत्तर भाग में दण्डधार के द्वारा मारे जाते हुए रथी, हाथी, घोड़े और पैदलों का आर्तनाद गूँज उठा। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अपना रथ लौटाकर गरुड़ और वायु के समान वेग वाले घोड़ों को हाँकते हुए ही अर्जुन से कहा- ‘पार्थ! यह मगध निवासी दण्डधार भी बड़ा पराक्रमी है। इसके पास शत्रुओं को मथ डालने वाला गजराज है। इसे युद्ध की उत्तम शिक्षा मिली है तथा यह बलवान भी है, इन सब विशेषताओं के कारण यह पराक्रम में भगदत्त से तनिक भी कम नहीं है। ‘अतः पहले इसका वध करके तुम पुनः संशप्तकों का संहार करना। ‘इतना कहते-कहते श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दण्डधार के निकट पहुँचा दिया।

मागध वीरों में सर्वश्रेष्ठ दण्डधार अंकुश धारण करके हाथी द्वारा युद्ध करने में अपना सानी नहीं रखते थे। जैसे ग्रहों में केतु ग्रह का वेग असह्य होता है, उसी प्रकार उनका आक्रमण भी शत्रुओं के लिए असहनीय था। जैसे धूमकेतु नामक उत्पात ग्रह सम्पूर्ण भूमण्डल के लिए अनिष्ट कारक होता है, उसी प्रकार उस भयंकर वीर ने वहाँ शत्रुओं की सम्पूर्ण सेना को मथ डाला। उनका हाथी खूब सजाया गया था, वह गजासुर के समान बलशाली, महामेघ के समान गर्जना करने वाला तथा शत्रुओं को रौंद डालने वाला था। उस पर आरूढ़ होकर दण्डधार अपने बाणों से सहस्रों रथों, घोड़ों, मतवाले हाथियों और पैदल मनुष्यों का भी संहार करने लगे। उनका वह हाथी रथों पर पैर रखकर सारथि और घोड़ों सहित उन्हें चूर-चूर कर डालता था। पैदल मनुष्यों को भी पैरों से ही कुचल डालता था। हाथियों को भी दोनों पैरों तथा सूँड से मसल देता था। इस प्रकार वह गजराज कालचक्र के समान शत्रु-सेना का संहार करने लगा। वे अपने बलवान एवं श्रेष्ठ गजराज के क्षरा लोहे के कवच तथा उत्तम आभूषण धारण करने वाले घुड़सवारों को घोड़ों और पैदलों सहित पृथ्वी पर गिराकर कुचलवा देते थे।

उस समय जैसे मोटे नरकुलों के कुचले जाते समय ‘चर-चर ‘की आवाज होती है, उसी प्रकार उन सैनिकों के कुचले जाने पर भी होती थी। तदनन्तर जहाँ धनुष की टंकार और पहियों की घर्घराहट का शब्द गूँज रहा था, मृदंग, भेरी और बहुसंख्यक शंखों की ध्वनि हो रही थी तथा जहाँ रथ, घोड़े और हाथी सहस्रों की संख्या में मरे हुए थे, उस समरांगण में पूर्वोक्त गजराज के समीप अर्जुन अपने उत्तम रथ के द्वारा जा पहुँचे। तब दण्डधार ने अर्जुन को बारह और भगवान श्रीकृष्ण को सोलह उत्तम बाण मारे। फिर तीन-तीन बाणों से उनके घोड़ों को घायल करके वे बारंबार गर्जने और अट्टहास करने लगे। तत्पश्चात अर्जुन ने अपने भल्लों द्वारा प्रत्यञ्चा और बाणों सहित दण्डधार के धनुष तथा सजे-सजाये ध्वज को भी काट गिराया। फिर हाथी के महावतों तथा पादरक्षकों को भी मार डाला। इससे गिरिव्रज के स्वामी दण्डधार अत्यन्त कुपित हो उठे। उन्होंने गण्डस्थल से मद की धारा बहाने वाले, वायु के समान वेगशाली, मदोन्मत्त गजराज के द्वारा अर्जुन और श्रीकृष्ण को अत्यन्त घबराहट में डालने की इच्छा से उसे उन दोनों की ओर बढ़ाया और तोमरों उसने उन दोनों पर प्रहार किया। तब अर्जुन ने हाथी की सूँड़ के समान मोटी दण्डधार की दोनों भुजाओं तथा पूर्ण चन्द्रमा के समान मनोहर मुखवाले उनके मस्तक के भी तीन छुरों से एक साथ ही काट डाला। फिर उन्होंने उनके हाथी को सौ बाण मारे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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