महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 140 श्लोक 1-29

चत्‍वारिंशदधिकशततम (140) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

Prev.png

महाभारत: उद्योग पर्व: चत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-29 का हिन्दी अनुवाद

भगवान श्रीकृष्ण का कर्ण को पाण्डव पक्ष में आ जाने के लिये समझाना

  • धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! राजपुत्रों तथा सेवकों से घिरे हुए, शत्रुवीरों का संहार करने वाले, अप्रमेयस्वरूप, भगवान श्रीकृष्ण जब राधानन्दन कर्ण को रथ पर बिठाकर हस्तिनापुर से बाहर निकल गये, तब उन्होंने उससे क्या कहा? गोविन्द ने सूतपुत्र कर्ण को क्या सान्त्वनाएं दीं? (1-2)
  • संजय! मेघ के समान गम्भी‍र स्वर से बोलने वाले भगवान श्रीकृष्णर ने उस समय कर्ण से जो मधुर अथवा कठोर वचन कहा हो- वह सब मुझे बताओ। (3)
  • संजय बोले- भारत! अप्रमेयस्वरूप मधुसूदन श्रीकृष्ण ने राधानन्दन कर्ण से जो तीक्ष्ण, मधुर, प्रिय, धर्म-सम्मत, सत्य, हितकर एवं हृदयग्राह्म बातें क्रमश: कहीं थीं, उन सबको आप मुझसे सुनिये। (4-5)
  • श्रीकृष्ण ने कहा- राधानन्दन! तुमने वेदों के पारंगत ब्राह्मणों की उपासना की है। तत्त्व ज्ञान के लिये संयम-नियम से रहकर दोष-दृष्टि का परित्याग करके उन ब्राह्मणों से अपनी शंकाएं पूछी हैं। (6)
  • कर्ण! सनातन वैदिक सिद्धान्त क्या है? इसे तुम अच्छी तरह जानते हो। धर्मशास्त्रों के सूक्ष्मं विषयों के भी तुम परिनिष्ठित विद्वान हो। (7)
  • कर्ण! कन्या के गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न होता है, उसके दो भेद बताये जाते हैं- कानीन और सहोढ होते हैं, जो विवाह से पहले उत्पन्न होता है, वह कानीन है और जो विवाह के पहले गर्भ में आकर विवाह के बाद उत्पन्न होता है, वह सहोढ कहलाता है। वैसे पुत्र की माता का जिसके साथ विवाह होता है, शास्त्रज्ञों ने उसी को उसका पिता बताया है। (8)
  • कर्ण! तुम्हारा जन्म भी इसी प्रकार हुआ है; तुम कुन्ती के कन्यावस्था में उत्पन्न हुए पुत्र हो; अत: तुम भी धर्मानुसार पाण्डु के ही पुत्र हो। इसलिये आओ, धर्मशास्त्रों के नियम के अनुसार तुम्हीं राजा होओगे। (9)
  • पिता के पक्ष में कुंती के सभी पुत्र तुम्हारे सभी सहायक हैं और मातृपक्ष में समस्त वृष्णिवंशी तुम्हारे साथ हैं। पुरुषश्रेष्ठ! तुम अपने इन दोनों पक्षों को जान लो। (10)
  • तात! मेरे साथ यहाँ से चलने पर आज पाण्डवों को तुम्हारे विषय में यह पता चल जाये कि तुम कुन्ती के ही पुत्र हो और युधिष्ठिर से भी पहले तुम्हारा जन्म हुआ है। (11)
  • पाँचों भाई पाण्डव, द्रौपदी के पाँचों पुत्र तथा किसी से परास्त न होने वाला सुभद्राकुमार वीर अभिमन्यु- ये सभी तुम्हारे चरणों का स्पर्श करेंगे। (12)
  • इसके सिवा, पाण्डवों की सहायता के लिये आये हुए समस्त राजा,राजकुमार तथा अन्धक और वृष्णिवंश के योद्धा भी तुम्हारे चरणों में नतमस्तक होंगे। (13)
  • बहुत से राजपुत्र और राजकन्याएं तुम्हारे लिये सोने,चांदी तथा मिट्टी के बने हुए कलश, औषधसमूह, सब प्रकार के बीज, सम्पूर्ण रत्न और लता आदि अभिषेक-सामग्री लेकर आयेंगी। (14-15)
  • विशुद्ध हृदय वाले द्विजश्रेष्ठ धौम्य आज तुम्हारे लिये होम करें और चारों वेदों के विद्वान ब्राह्मण तथा सदा ब्राह्मणोचित धर्म के पालन में स्थित रहने वाले पाण्डवों के पुरोहित धौम्यजी भी तुम्हारा राज्याभिषेक करें। (16)
  • इसी प्रकार पाँचों भाई पुरुषसिंह पाण्डव, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, पांचाल और चेदिदेश के नरेश तथा मैं-ये सब लोग तुम्हें पृथ्वीपालक-सम्राट के पद पर अभिषिक्त करेंगे। कठोर व्रत का पालन करने वाले धर्मपुत्र धर्मात्मा कुन्तीनंदन राजा युधिष्ठिर तुम्हारे युवराज होंगे, जो हाथ मे श्वेत चंवर लेकर तुम्हारे पीछे रथ पर बैठेंगे और महाबली कुन्तीुकुमार भीमसेन राज्याभिषेक होने के पश्चाात तुम्हारे मस्त्क पर महान श्वेत छत्र धारण करेंगे। (17-20)
  • सैकड़ों क्षुद्र घण्टिकाओं की सुमधुर ध्वजनि से युक्त, व्या‍घ्र-चर्म से आच्छादित तथा श्वेत घोड़ों से जुते हुए तुम्हारे रथ को अर्जुन सारथी बनकर हांकेंगे और अभिमन्यु‍ सदा तुम्हारी सेवा के लिये निकट खड़ा रहेगा। (21-22)
  • नकुल, सहदेव, द्रौपदी के पाँच पुत्र, पांचालदेशीय क्षत्रिय तथा महारथी शिखण्डी- ये सब तुम्हारे पीछे-पीछे चलेंगे। (23)
  • मैं तथा समस्त अन्धक और वृष्णिवंश के लोग भी तुम्हारा अनुसरण करेंगे। प्रजानाथ! दशार्ह तथा दशार्णकुल के समस्त क्षत्रिय तुम्हारे परिवार हो जायेंगे। (24)
  • महाबाहो! तुम अपने भाई पाण्डवों के साथ राज्य भोगो। जय, होम तथा नाना प्रकार के मांगलिक कर्मों में संलग्न रहो। (25)
  • द्रविड़, कुन्तल, आन्ध्र, तालचर चूचुप तथा वेणुप देश के लोग तुम्हारे अग्रगामी सेवक हों। (26)
  • सूत, मागध और वन्दीजन नाना प्रकार की स्तुतियों द्वरा तुम्हारा यशोगान करें और पाण्डव लोग महाराज वसुषेण कर्ण की विजय घोषित कर दें। (27)
  • कुन्तीकुमार! नक्षत्रों से घिरे हुए चन्द्रमा की भाँति तुम अपने अन्य भाईयों से घिरे रहकर राज्य का पालन और कुन्ती को आनन्दित करो। (28)
  • तुम्हारे मित्र प्रसन्न हों और शत्रुओं के मन में व्यथा हो। कर्ण! आज से अपने भाई पाण्डवों के साथ तुम्हारा एक अच्छे बन्धु् की भाँति स्नेहपूर्ण बर्ताव हो। (29)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तकर्गत भगवद्यानपर्व में श्री कृष्णेवाक्य विषयक एक सौ चालीसवाँ अध्यामय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः